Thursday, November 21, 2024
spot_img

ब्रिगेडियर जॉन निकल्सन

ब्रिगेडियर जॉन निकल्सन एक क्रूर आयरिश सेनापति था। वह किसी भी कीमत पर दिल्ली पर फिर से अधिकार करना चाहता था। जब दिल्ली में क्रांतिकारियों की सेना अंग्रेजी सेना पर भारी पड़ने लगी, तभी ब्रिगेडियर जॉन निकल्सन भारतीय सिपाहियों का काल बनकर आ गया!

जिस समय मेरठ एवं दिल्ली में गदर आरम्भ हुआ था उस समय ब्रिगेडियर जॉन निकल्सन अपने मित्र हर्बर्ट एड्वर्ड्स के साथ पेशावर में नियुक्त था। उसे भी दिल्ली के लिए रवाना कर दिया गया किंतु वह पेशावर से रवाना भी नहीं हुआ था कि पंजाब के नौशेरा में विद्रोह हो गया।

ब्रिगेडियर जॉन निकल्सन ने नौशेरा के विद्रोह को बड़ी कठोरता से दबाया और दिल्ली के लिए रवाना हो गया। विलियम डेलरिम्पल ने लिखा है कि जॉन निकल्सन प्रोटेस्टेण्ट ईसाई था किंतु चापलूस हिन्दुस्तानियों का एक समूह उसे निकल सेन कहता था और उसे विष्णु का अवतार बताता था। निकल्सन इन चापलूसों को जब-तब कोड़ों से पिटवाता था क्योंकि वे लोग उसके सामने जमीन तक झुकते थे और उसके नाम का जाप करते थे।

जॉन निकल्सन के बारे में कहा जाता था कि जब वह रावलपिंडी में था तब उसने अपने हाथों से एक कबीले के सरदार का सिर काटा था। निकल्सन उस सिर को यादगार के रूप में अपनी मेज पर रखता था। भारतीय मुसलमानों के बारे में जॉन निकल्सन की राय अच्छी नहीं थी।

उसका कहना था कि हिंदुस्तानियों से बदतर सिर्फ अफगानी ही हो सकते हैं। विलियम डेलरिम्पल ने लिखा है कि अफगानियों के बारे में उसकी यह राय इसलिए बनी थी क्योंकि अफगानियों ने ई.1842 के आंग्ल-अफगान युद्ध में जॉन निकल्सन के भाई का बेरहमी से कत्ल कर दिया तथा उसका गुप्तांग काटकर उसके मुंह में ठूंस दिया था।

लाल किले की दर्दभरी दास्तान - bharatkaitihas.com
TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

जब निकल्सन अपनी सेना लेकर अफगानिस्तान से दिल्ली आ रहा था तो मार्ग में एक दिन भारतीय बावर्चियों ने निकल्सन और उसके साथी अंग्रेज अधिकारियों का डिनर बनाने में कुछ देरी कर दी। इस पर निकल्सन ने उन्हें पास के ही एक पेड़ पर फांसी से लटका दिया और अपनी सेना को बताया कि उसे अपने जासूसों से सूचना मिली थी कि ये हिन्दुस्तानी बावर्ची अंग्रेज अधिकारियों के खाने में जहर मिलाने वाले हैं। निकल्सन तो अब दुनिया में नहीं है किंतु उसने अपनी डायरी में लिखा है कि जब उसने इन भारतीय खानसामाओं द्वारा बनाया गया सूप एक बंदर को पिलाया तो वह बंदर ऐड़ियां रगड़ते हुए मर गया।

जॉन निकल्सन ने अपने साथी सैन्य अधिकारी हर्बर्ट एड्वर्ड्स को सुझाव दिया कि निकल्सन और एड्वर्ड्स मिलकर कम्पनी सरकार के समक्ष एक बिल पेश करें जिससे दिल्ली की अंग्रेज औरतों और बच्चों के हत्यारों के शरीरों से उनकी जिंदा खाल खींच ली जाए या उन्हें जीवित ही जला दिया जाए या उनकी देह में कीलें ठोकी जाएं। जिन भारतीयों ने अंग्रेज स्त्री एवं बच्चों की हत्या की है, उन्हें केवल साधारण फांसी देकर मारना उनके लिए पर्याप्त दण्ड नहीं है।

जब हर्बर्ट एड्वर्ड्स ने निकल्सन के सुझाव को मानने से मना कर दिया तो निकल्सन ने कहा कि वह अकेले ही इस प्रस्ताव को पेश करेगा तथा भारतीय लोगों से अंग्रेजों की हत्या का बदला लेगा। निकल्सन की ही तरह जॉन लॉरेंस भी भारतीय लोगों को कड़ी सजा देने के पक्ष में था।

14 अगस्त 1857 को ब्रिगेडियर जॉन निकल्सन अपने 4 हजार 200 सैनिकों के साथ दिल्ली पहुंचा। उसकी सेना को फ्लाइंग कॉलम कहा जाता था तथा यह किसी भी नगर का घेरा डालने में अनुभवी थी। जैसे ही क्रांतिकारियों को इस अंग्रेजी सेना के आने की सूचना मिली, क्रांतिकारी सैनिकों ने इस सेना पर हमला करके उसे तितर-बितर करने का प्रयास किया किंतु क्रांतिकारी सैनिकों को सफलता नहीं मिली।

25 अगस्त 1857 को ब्रिगेडियर निकल्सन ने नजफगढ़ पर आक्रमण किया जहाँ क्रांतिकारी सैनिक मोर्चा बांधकर बैठे हुए थे। यद्यपि इस समय तक मानसून की वर्षा आरम्भ हो चुकी थी तथा रास्तों में स्थान-स्थान पर पानी भरा हुआ था, तथापि निकल्सन की सेना ने नजफगढ़ पहुंचकर क्रांतिकारी सैनिकों को नजफगढ़ से भगा दिया। क्रांतिकारी सैनिकों के लिए यह पराजय बहुत बड़ा झटका थी।

जॉन निकल्सन ने दिल्ली में पड़े भारतीय क्रांतिकारी सैनिकों के हथियार छीनकर उन्हें सूली पर चढ़ाना श्ुरु कर दिया। अंग्रेज सेनापति प्रायः बागियों को तोपों के सामने बांधकर उन्हें उड़ाते थे किंतु निकल्सन ने बागियों के लिए बारूद खर्च करना उचित नहीं समझा। उसे लगता था कि अंग्रेजी बारूद का उपयोग किसी बेहतर काम के लिए करना उचित होगा।

पूरे आलेख के लिए देखें यह वी-ब्लॉग-

निकल्सन ने दिल्ली के क्रांतिकारी सैनिकों पर इतने अत्याचार किए कि उसके किस्से विक्टोरियन युग की दास्तानें बन गए। उसके लिए कहा जाता है कि वह कभी सोता नहीं था और उसे किसी भी चीज का खौफ नहीं था। वह आदमी को तलवार के एक ही वार से दो हिस्सों में काट देता था और कत्ल करने के बाद कहता था कि तलवार की धार बुरी नहीं है।

निकल्सन न तो किसी को गिरफ्तार करता था और न किसी का कोर्ट मार्शल करता था। वह तो क्रांतिकारी सैनिकों को बैलगाड़ी में पटककर बांध लेता था और यूनियन जैक के नीचे एक साथ छः-छः क्रांतिकारियों को सूली पर चढ़ा देता था, यही उसका न्याय था।

विलियम डेलरिम्पल ने लिखा है- ‘हो सकता है कि निकल्सन हिंसा का अवतार हो लेकिन उसका पागलपन इन मौजूदा हालात के लिए बहुत उपयुक्त था।’

जब सर जॉन लॉरेंस ने निकल्सन को लिखा कि- ‘देसी बागियों के कोर्ट मार्शल बहाल होने चाहिए तथा दी गई सजाओं की फेहरिस्त बननी चाहिए।’

इस पर संगदिल निकल्सन ने उस आदेशपत्र के पीछे एक लाइन लिखकर उसे वापस भेज दिया कि- ‘बगावत की सजा केवल मौत है।’

अंग्रेज अधिकारियों ने कई सौ भारतीय सिपाहियों को बिना कोर्ट मार्शल किए ही फांसी पर लटका दिया, गोलियों से उड़ा दिया और पेड़ों से बांधकर तोपों से उड़ा दिया था। कम्पनी सरकार के इन हैवानों से कोई कुछ कहने या पूछने वाला नहीं था। इस काम में अकेला निकल्सन ही जोर-शोर से भाग नहीं ले रहा था अपितु दो अंग्रेज और भी थे।

इनमें से पहला अंग्रेज था लोअर कोर्ट का मजिस्ट्रेट थियोफिलिस मेटकाफ जिसके कपड़े तिलंगों ने उतार लिए थे और दूसरा था विलियम हॉडसन जिसके जासूस दिल्ली में चप्पे-चप्पे पर मौजूद थे!

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source