संसार के इतिहास में जूलियस सीजर एवं क्लियोपैट्रा की गणना महान् प्रेमियों में होती है। इनकी तुलना यूरोप में रोमियो जूलियट से, मध्य एशिया में लैला मजनूं से और दक्षिण एशिया में हीर रांझा से की जाती है।
जूलियस सीजर का उत्थान
रोम के धनी-जमींदारों की भीड़ में उन दिनों दो योद्धाओं के नाम प्रमुखता से उभरकर सामने आए। पहला था पॉम्पी और दूसरा था जूलियस सीजर। सीजर ने गॉल (फ्रांस) को जीतकर ख्याति अर्जित की। कुछ समय बाद सीजर ने ब्रिटेन को जीतकर संसार को एक बार फिर से रोम का लोहा मानने के लिए विवश कर दिया। जब सीजर फ्रांस और इंग्लैण्ड में व्यस्त था तब पॉम्पी पूर्व की ओर गया और वहाँ उसने रोम के लिए कुछ क्षेत्र जीते। दोनों सेनापतियों में पुरानी प्रतिद्वंद्विता थी जो उन दिनों प्रायः प्रत्येक रोमन सेनापति के बीच पाई जाती थी।
ये दोनों धनी-जमींदार युवक अत्यंत महत्त्वाकांक्षी थे तथा एक दूसरे को नीचा दिखाने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देते थे। इस शत्रुता के चलते वे सीनेट के आदेशों की भी अवहेलना करने लगे। अंत में इन दोनों प्रतिद्वंद्वियों में खुला युद्ध हुआ। दोनों सेनापतियों की सेनाओं के बीच यूनान के ‘फारसैल’ नामक स्थान पर भयानक लड़ाई हुई जिसमें पॉम्पी पराजित हो गया और मिस्र की तरफ भाग गया। जूलियस सीजर भी पॉम्पी का पीछा करता हुआ मिस्र पहुँच गया।
मिस्र में उन दिनों टॉलेमी (बारहवें) का पुत्र ‘टॉलेमी (तेरहवां)’ एवं टॉलेमी (बारहवें) की पुत्री ‘क्लियोपैट्रा (सप्तम्)’ मिस्र पर संयुक्त रूप से शासन कर रहे थे। जब तक जूलियस सीजर मिस्र पहुँचकर पॉम्पी को घेर पाता, मिस्र के राजा टॉलेमी (तेरहवें) ने पॉम्पी को पकड़कर उसकी हत्या कर दी। इससे पहले कि जूलियस सीजर मिस्र से वापस रोम लौटता, रानी क्लियोपैट्रा ने सीजर से गुप्त-स्थान पर भेंट करने की प्रार्थना भिजवाई। जूलियस सीजर को महारानी क्लियोपैट्रा का संदेश पाकर हैरानी हुई।
शत्रुओं की भूमि पर शत्रुओं की महारानी से गुप्त रूप से मिलना किसी षड़यंत्र का हिस्सा भी हो सकता था किंतु सीजर ने महारानी से मिलने का निर्णय किया और पूरी तैयारी के साथ क्लियोपैट्रा से मिलने पहुँच गया।
सौन्दर्य का महासागर महारानी क्लियोपैट्रा
जब जूलियस सीजर ने महारानी क्लियोपैट्रा को देखा तो अवाक् होकर देखता ही रह गया। उसे लगा कि सौन्दर्य और प्रकाश का कोई महापुंज ही नारी देह में सिमट कर आ खड़ा हुआ है। उस समय तक क्लियोपैट्रा को यौवन की चौखट पर पांव रखे हुए अधिक दिन नहीं हुए थे तथा वह दैहिक सौन्दर्य के चरम पर थी।
जब उसने पहली ही भेंट में जूलियस सीजर को अपलक अपनी ओर देखते हुए पाया तो वह समझ गई कि उसने जिस उद्देश्य से सीजर को आमंत्रित किया है, उसे पूरा होने में अब कोई कठिनाई नहीं होगी। इस भेंट का मुख्य उद्देश्य यही था कि वह रोमन सेनापति को अपने दैहिक आकर्षण के पाश से बांध सके। ताकि सीजर क्लियोपैट्रा के उस राजनीतिक प्रस्ताव को स्वीकार कर ले जिससे रोम और मिस्र दोनों का इतिहास एवं भूगोल सदा के लिए बदल जाने वाला था।
रानी क्लियोपैट्रा ने सीजर के समक्ष प्रस्ताव रखा कि वह मिस्र के राजा टॉलेमी (तेहरवें) के विरुद्ध रानी क्लियोपैट्रा को सैनिक सहायता प्रदान करे। यदि टॉलेमी मारा जाता है तो मिस्र पर रानी क्लियोपैट्रा का अधिकार होगा और रोम को मिस्र की अधीनता से मुक्त कर दिया जाएगा। सीजर जानता था कि यदि वह रोम को मिस्र के चंगुल से निकाल लेगा तो रोम के गणराज्य पर बिना किसी बाधा के नियंत्रण कर लेगा। इसलिए सीजर ने मिस्र की रानी का यह प्रस्ताव तुरंत स्वीकार कर लिया।
क्लियोपैट्रा के सौन्दर्य की विश्व इतिहास में अत्यधिक चर्चा हुई है। उसके बारे में कहा जाता है कि उसके सौन्दर्य ने संसार का नक्शा और इतिहास दोनों बदल कर रख दिए। विख्यात फ्रांसीसी लेखक पैस्कल ने लिखा है- ‘यदि क्लियोपैट्रा की नाक कुछ छोटी होती तो दुनिया की सूरत बिल्कुल बदल गई होती।’
मिस्र के टॉलेमी राजवंश में ‘क्लियोपेट्रा’ नाम की सात रानियां हुई हैं। क्लियोपैट्रा मूलतः सिल्युक वंश के राजा ‘अंतियोख महान’ की पुत्री एवं पाँचवे टॉलेमी की पत्नी का नाम था किंतु ‘क्लियोपेट्रा’ नाम की ख्याति बारहवें टॉलेमी की पुत्री ओलीतिज़ क्लियोपैट्रा के कारण हुई।
इस क्लियोपैट्रा का जन्म ई.पू.69 में हुआ था। उससे पूर्व इस वंश में इस नाम की छः रानियाँ हो चुकी थीं। जूलियस सीजर के समय में जो क्लियोपैट्रा मिस्र पर शासन कर रही थी, उसे मिस्र के इतिहास में क्लियोपैट्रा (सप्तम) कहते हैं तथा उसका नाम क्लियोपैट्रा फिलेपाटर था।
जिस समय मिस्र के राजा बारहवें टॉलेमी ने रोम पर आक्रमण किया था, तब राजकुमारी क्लियोपैट्रा केवल 10 साल की थी तथा वह अपने पिता के साथ सैनिक अभियान पर रोम गई थी। क्लियोपैट्रा की बड़ी बहन ‘बेरेनीस (चतुर्थ)’ ने अपने पिता की अनुपस्थिति का लाभ उठाते हुए राज्य पर अधिकार कर लिया और स्वयं मिस्र की रानी बन गई।
तीन साल बाद जब उसका पिता बारहवां टॉलेमी रोम पर विजय प्राप्त करके पुनः मिस्र लौटा तो उसने अपनी बड़ी पुत्री बेरेनीस (चतुर्थ) को पकड़कर मार डाला और स्वयं फिर से मिस्र का शासक हुआ। जब क्लियोपैट्रा 17 साल की हुई तो उसके पिता बारहवें टॉलेमी की मृत्यु हो गई। टॉलेमी वंश में यह परम्परा थी कि जब कोई राजा मर जाता था तो उसकी किसी पुत्री का विवाह राजा के बड़े पुत्र के साथ कर दिया जाता था तथा उन दोनों को संयुक्त रूप से अगला शासक बनाया जाता था।
पिता की वसीयत के अनुसार राजकुमारी क्लियोपैट्रा का विवाह क्लियोपैट्रा के छोटे भाई के साथ कर दिया गया और दोनों को संयुक्त रूप से मिस्र का राजा एवं रानी बनाया गया। मिस्र का यह नया राजा मिस्र के इतिहास में तेरहवें टॉलेमी के नाम से विख्यात हुआ।
सत्रह वर्ष की आयु राजनीति को समझने के लिए अधिक नहीं होती किंतु क्लियोपैट्रा ने अपने पिता के साथ युद्ध के मैदानों में रहकर राजनीति के पाठ पढ़े थे। उसने रोम जैसी महान् सभ्यता को मिस्र के अधीन होते हुए देखा था।
यहाँ तक कि क्लियोपैट्रा ने अपने पिता के हाथों अपनी विद्रोही पुत्री को मौत के घाट उतरते हुए भी देखा था और अब इतनी कम उम्र में उसने पिता का आश्रय खो दिया था। इसलिए वह अल्पायु में ही परिपक्व हो गई। उसे सेनाओं का संचालन करना और राजदूतों से व्यवहार करना आ गया था। उसकी व्यक्तिगत आकांक्षाएं भी विस्तार ले चुकी थीं और अब वह राजनीति के क्रूर गगन में लम्बी उड़ान भरने को तैयार थी।
विश्व इतिहास में क्लियोपैट्रा एक ऐसी सुन्दर, कामुक, मक्कार और प्रभावशाली रानी के रूप में याद की जाती है जिसके रहस्यों पर कई पर्दे पड़े हैं। उसने मिस्र के जनजीवन में कई प्रथाओं का प्रचलन किया। इस कारण उसकी तुलना मिस्र की देवी आइसिस तथा रोम की देवी वीनस से की जाती है। वैसे भी मिस्र में शासकों की मूर्तियाँ बनाकर उन्हें देवी-देवताओं की तरह पूजने की परम्परा थी।
यह परम्परा टॉलेमी वंश के साथ यूनान से आई थी। रानी क्लियोपैट्रा की अनेक मूर्तियां, पेंटिंग और सिक्के मिले हैं जिनमें वह देवी आइसिस तथा वीनस की तरह दर्शाई गई है। रानी क्लियोपैट्रा जितनी सुंदर और मोहक थी, उससे कहीं ज्यादा कामुक, चतुर, षड्यंत्रकारी और क्रूर थी।
इतना होने पर भी प्रेम, समर्पण और विश्वास की दुनिया में भी उसका नाम बहुत ऊपर है। यद्यपि क्लियोपैट्रा की मातृ भाषा ग्रीक थी तथापि वह मिस्र की पहली टॉलेमियन रानी थी जिसने मिस्री भाषा सीख कर मिस्र के लोगों को आदर प्रदान किया। वह अपने युग की महान् नौसैनक कमाण्डर, चिकित्सा-लेखक तथा राजनीतिज्ञ भी थी।
रानी क्लियोपैट्रा अपने छोटे भाई टॉलेमी (तेरहवें) की पत्नी बनकर उसके साथ संयुक्त शासक के रूप में राज्य भोगने लगी किंतु शीघ्र ही उन दोनों में झगड़ा हो गया। यह झगड़ा इतना बढ़ा कि देश की सेनाएं दो भागों में बंट र्गईं और मिस्र में गृह-युद्ध छिड़ गया।
आगे चलकर क्लियोपैट्रा ने राजनीति में सफल होने के लिए कई पुरुषों से विवाह किए एवं कई पुरुषों से शारीरिक सम्बन्ध बनाए। उसके बारे में कहा जाता था कि वह राजाओं और सैन्य अधिकारियों को अपनी सुंदरता के मोहपाश में बांधकर अपने बिस्तर तक खींच लाती थी और अपना काम निकल जाने पर उन्हें मौत के घाट उतार देती थी।
जब क्लियोपैट्रा ने जूलियस सीजर की सेनाओं को मिस्र की धरती पर देखा तो उसने जूलियस सीजर से अपने पति और मिस्र के संयुक्त राजा के विरुद्ध सहयोग मांगा। रोम की स्वतंत्रता के विचार, स्वयं के उत्थान की संभावना एवं क्लियोपैट्रा के सौंदर्य के प्रभाव के कारण जूलियस सीजर क्लियोपैट्रा का सहयोग करने के लिए तैयार हो गया। क्लियोपैट्रा ने जूलियस को अपने महल में आमंत्रित किया और उसकी प्रेयसी बन गई।
इसके बाद टॉलेमी (तेरहवें) एवं उसकी रानी क्लियोपैट्रा (सप्तम्) में नए सिरे से युद्ध छिड़ गया। क्लियोपैट्रा की छोटी बहिन आरसीनोए (चतुर्थ) ने इस युद्ध में अपने बड़े भाई राजा टॉलेमी (तेरहवें) का पक्ष लिया। राजकुमारी आरसीनोए (चतुर्थ) मिस्र देश की प्रधान सेनापति भी थी। उसने अपनी सेनाओं को आदेश दिया कि वे क्लियोपैट्रा के महल को घेर लें।
जब मिस्र की सेना ने रानी क्लियोपैट्रा के महल के चारों ओर घेरा डाला तो न केवल रानी क्लियोपैट्रा अपितु रोमन सेनापति जूलियस सीजर भी रानी के महल में घिर गया। इससे पहले कि आरसीनोए की सेनाएं क्लियोपैट्रा के महल में घुस पातीं, रोम से जूलयिस सीजर की नई सेनाएं आ गईं और युद्ध का पासा पलट गया।
नील के मैदान में दोनों पक्षों में भयानक युद्ध हुआ जिसमें मिस्र का राजा तथा क्लियोपैट्रा का पति टॉलेमी (तेरहवां), मारा गया। राजकुमारी आरसीनोए को देश-निकाला देकर इफेसस भेज दिया गया। जूलियस सीजर ने क्लियोपैट्रा को उसके अन्य छोटे भाई के साथ मिस्र का संयुक्त राजा बना दिया और स्वयं रोम लौट गया। इस नए राजा को मिस्र के इतिहास में टॉलेमी (चौदहवां) कहा जाता है। अब क्लियोपैट्रा ने अपने इसी भाई से विवाह कर लिया। हालांकि जूलियस सीजर के साथ उसका प्रेम प्रसंग चलता रहा।
जूलियस सीजर को रोम के शासक की मान्यता
पॉम्पी के मार्ग से हट जाने तथा रोम की मिस्र से मुक्ति हो जाने के बाद अब जूलियस सीजर ही रोमन गणराज्य का सर्वमान्य नेता हो गया। हालांकि अब भी वह सीनेट को अपने से ऊपर मानने के लिए बाध्य था। सीनेट के कुछ सदस्यों ने प्रयास किया कि सीजर को ताज पहनाकर रोम का बादशाह घोषित कर दिया जाए किंतु सीजर रोम की सैंकड़ों वर्षों पुरानी परम्पराओं के कारण ताज पहनने एवं सम्राट बनने से हिचकिचाता रहा।
ई.पू.46 में क्लियोपैट्रा मिस्र से रोम आई तथा अपने पूर्व प्रेमी जूलियस सीजर के महल में ठहरी। इस समय तक जूलियस सीजर रोम का एकछत्र शासक बन चुका था। यद्यपि वह स्वयं को राजा नहीं कहता था, तथापि रोम का सर्वेसर्वा वही था। क्लियोपैट्रा लगभग तीन साल तक रोम में रही। जूलियस सीजर से क्लियोपैट्रा के एक पुत्र भी हुआ जिसे ‘कैसरियन’ तथा ‘टॉलेमी (पंद्रहवां)‘ भी कहा जाता है।
रानी क्लियोपैट्रा के और भी पुत्र हुए किंतु क्लियोपैट्रा ने अपने इसी पुत्र को मिस्र का अगला उत्तराधिकारी घोषित किया। जब रोम की सेना को लगा कि जूलियस सीजर का पुत्र होने के नाते मिस्र की रानी का पुत्र रोम का अगला शासक हो सकता है तो रोम की जनता ने जूलियस सीजर के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
जूलियस सीजर की हत्या
जूलियस सीजर मिस्र की कुछ परम्पराओं से बहुत प्रभावित हुआ। मिस्र में गणतंत्र नहीं था, राजतंत्र था तथा राजा को देवता माना जाता था। मिस्र में इस समय टॉलमी वंश का शासन था जो मूलतः यूनान से मिस्र आए थे और राजा को देवता मानने की परम्परा भी वे यूनान से अपने साथ लाए थे।
क्लियोपैट्रा भी इसी वंश की राजकुमारी थी और अपने पिता की मृत्यु के बाद अपने भाइयों से बारी-बारी से विवाह करके वह मिस्र पर अपने पति के साथ संयुक्त शासक के रूप में शासन करती थी। वह भी मिस्र में देवी समझी जाती थी। जूलियस सीजर ने अपने विश्वस्त सहयोगियों एवं अनुचरों के माध्यम से प्रयास किया कि रोमवासी भी जूलियस सीजर को देवता समझें। इसके बाद रोम में सीजर की मूर्तियां बनने लगीं और उनकी पूजा भी होने लगी।
सीजर का ऐसा उत्थान रोम के दूसरे धनी-जमींदार युवक सहन नहीं कर सके। इसलिए रोम में उसके विरुद्ध षड़यंत्र रचे जाने लगे। अंत में ई.पू.44 में ब्रूटस और दूसरे लोगों ने सीजर को फोरम की सीढ़ियों पर ही छुरा भौंककर मार डाला। फोरम उस भवन का नाम था जिसमें सीनेट की बैठकें हुआ करती थीं।
इस काल में रोम का शासन इटली, स्पेन, इंग्लैण्ड, फ्रांस, यूनान, एशिया-कोचक, परगैमम, कार्थेज तथा भूमध्य सागर के कई तटीय देशों तक विस्तृत था तथा क्लियोपैट्रा एवं सीजर के सम्बन्धों के कारण अब मिस्र, रोम का संरक्षित राज्य माना जाता था। उत्तर में राइन नदी के सहारे-सहारे रोमन गणराज्य की सीमा थी।
यह सचमुच ही एक विशाल राज्य था। भारत के साथ उसके व्यापारिक सम्बन्ध थे। ऐसे राज्य का स्वामी होना किसी काल्पनिक देवत्व से कई गुना बढ़कर था किंतु जूलियस सीजर न तो काल्पनिक देवत्व प्राप्त कर सका और न इतने विशाल साम्राज्य को भोगने के लिए अधिक समय तक जीवित रह सका।
इससे अधिक आश्चर्य की बात इस संसार में और क्या होगी कि इतने विशाल राज्य का स्वामी जूलियस सीजर उसी सीनेट के भवन की सीढ़ियों पर सामान्य आदमी की तरह मार दिया गया जिस सीनेट के सदस्यों को वह अपनी अंगुली के संकेतों पर नचाता रहा था।
धरती के हर कोने में और हर युग में व्यक्तिगत शत्रुताओं, धार्मिक विद्वेषों, सम्पत्ति के झगड़ों और सामंती प्रतिद्वन्द्विताओं का अंत प्रायः इसी रक्त-रंजित विधि से हुआ करता है। विश्व के हर देश में तथा हर युग में पराई स्त्री के साथ विवाहेतर सम्बन्ध, मनुष्य के पतन का कारण बनते रहे हैं, जूलियस सीजर एवं रानी क्लियोपैट्रा के सम्बन्ध इसकी जीती-जागती मिसाल हैं।
सीजर अपने समय का महान् योद्धा एवं सफल सेनापति ही नहीं था अपितु एक बड़ा लेखक भी था। उसने गॉल (फ्रांस) पर उसके द्वारा की गई चढ़ाई का बड़ा सुंदर वर्णन लिखा है जिसके लिए उसने लैटिन भाषा का प्रयोग किया। यह पुस्तक आज भी यूरोप के लगभग समस्त देशों के लाखों विद्यालयों में पढ़ाई जाती है। संसार की सैंकड़ों भाषाओं में इस पुस्तक के अनुवाद हुए हैं। यह इतिहास एवं साहित्य दोनों की दृष्टि से मूल्यवान पुस्तक है।
जूलियस सीज़र के समय के इटैलियाई गद्य लेखकों में ‘सिसरो’ का नाम बहुत प्रसिद्ध है। सिसरो की भाषा में यूनानी प्रभाव दिखाई देता है। सीज़र की हत्या के बाद सिसरो की भी हत्या कर दी गई।
क्लियोपैट्रा द्वारा रोम का त्याग
सीजर की हत्या के बाद क्लियोपैट्रा ने उसकी उत्तराधिकारी बनने का प्रयास किया किंतु सीजर के भाई के पोते ऑक्टेवियन जो कि सीजर का दत्तक पुत्र भी था, ने क्लियोपैट्रा से विद्रोह कर दिया और वह जूलियस सीजर का उत्तराधिकारी बना। रोमन इतिहास में इस राजा को ऑगस्टस सीजर कहा जाता है। रोम में सफलता न मिलने पर क्लियोपैट्रा पुनः मिस्र लौट गई किंतु मिस्र के राजा तथा क्लियोपैट्रा के पति टॉलेमी (चौदहवें) ने उसे स्वीकार नहीं किया। इस कारण दोनों के बीच झगड़ा हुआ।
क्लियोपैट्रा ने अपने इस पति को भी मार डाला और अपने पुत्र कैसरियन के साथ मिस्र की संयुक्त शासक बन गई जिसे मिस्र के इतिहास में पंद्रहवाँ टॉलेमी कहा जाता है। यह जूलियस सीजर का पुत्र था। इस प्रकार जूलियस सीजर का दत्तक पुत्र रोम का तथा जूलियस का अवैध पुत्र मिस्र का सम्राट हुआ।
कुछ समय बाद रोमन सम्राट ऑक्टेवियन ने मिस्र पर भी अधिकार कर लिया तथा राज्य पुनः क्लियोपैट्रा तथा उसके पुत्र टॉलेमी पंद्रहवें को सौंप दिया। ऑक्टेवियन ने रोम की ही तरह मिस्र की राजसभा में तीन सदस्यों का एक समूह गठित किया जिसका अध्यक्ष रोमन सम्राट ऑक्टेवियन स्वयं था तथा उसकी सहायता के लिए रोमन सेनापति मार्क एंटोनी तथा मारकस एमिलिअस लेपिडस नियुक्त किए गए।
इस समूह को ‘ऑक्टेवियन की तिकड़ी’ कहा जाता था तथा यह समूह मिस्र की रानी क्लियोपैट्रा एवं राजा टॉलेमी (पंद्रहवें) की गतिविधियों पर नियंत्रण रखता था।
ई.पू.42 में रोम में पुनः गृहयुद्ध छिड़ गया। मिस्र की रानी क्लियोपैट्रा ने रोम की इन परिस्थितियों से लाभ उठाने के लिए, अपने पूर्व प्रेमी जूलियस सीजर के दत्तक पुत्र ऑक्टेवियन द्वारा गठित तिकड़ी का पक्ष लिया। इसके साथ ही क्लियोपैट्रा ने इस तिकड़ी को तोड़ने के लिए एक चाल चली।
ई.पू.41 में टारसस नामक स्थान पर क्लियोपैट्रा ने इस तिकड़ी के सदस्यों से भेंट की और जनरल मार्क एंटोनी पर प्रेमपाश फैंका। मार्क उसके प्रेमपाश में फंस गया। दोनों ने अलेक्जेंड्रिया में एक साथ शीत ऋतु व्यतीत की और उनका प्रेम प्रसंग काफी लम्बा चला। जनरल एंटोनी से क्लियोपैट्रा के तीन बच्चे हुए। मार्क एंटोनी तथा क्लियोपैट्रा ने बाद में प्रकट रूप में विवाह भी किया।
क्लियोपैट्रा ने मिस्र में अपने और एंटोनी के संयुक्त नाम से सिक्के भी ढलवाए। अब रानी क्लियोपैट्रा ने निर्वासन भोग रही अपनी बहिन आरसीनोए (चतुर्थ) से छुटकारा पाने का प्रयास किया तथा उस पर अपने दरबार में मुकदमा चलाया। इस कार्य में जनरल मार्क एटोंनी ने प्रमुख भूमिका निभाई। आरसीनोए को दोषी घोषित करके मौत के घाट उतार दिया गया। आज से कुछ साल पहले ही आरसीनोए की कब्र खोजी गई है।
रोमन सम्राट का मिस्र पर अभियान
जब जनरल मार्क एण्टोनी ने पार्थियन सम्राज्य तथा अरमेनिया राज्य पर सैनिक अभियान किए तो क्लियोपैट्रा ने मार्क एण्टोनी को धन और सेनाएं उपलब्ध करवाईं। इस सहायता के बदले में मार्क के अधीन क्षेत्रों पर क्लियोपैट्रा के बच्चों को शासक बनाया गया जो कि मार्क के भी बच्चे थे। रोम की एक राजकुमारी ऑक्टेविया माइनर, जनरल मार्क की पत्नी थी जो कि रोम के नए शासक ऑक्टेवियन सीजर की बहिन थी।
जब ऑक्टेविया माइनर को मार्क द्वारा क्लियोपैट्रा से शादी करने के बारे में ज्ञात हुआ तो ऑक्टेविया माइनर ने मार्क से सम्बन्ध तोड़ लिए तथा उसके भाई एवं रोम के सम्राट ऑक्टेवियन सीजर ने जनरल मार्क और रानी क्लियोपैट्रा के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। रानी क्लियोपैट्रा एवं जनरल मार्क अपनी-अपनी सेनाएं लेकर रोम के सम्राट से लड़ने के लिए आए।
यह एक विचित्र स्थिति थी। रोम का सम्राट ऑक्टेवियन सीजर न केवल मिस्र की रानी क्लियोपैट्रा के पूर्व पति जूलियस सीजर के भाई का पौत्र तथा सीजर का दत्तक पुत्र था अपितु वह जनरल मार्क की पत्नी का भाई भी था। भारतीय परिप्रेक्ष्य में इन सम्बन्धों की व्याख्या नहीं की जा सकती थी कि कौन किसका क्या था तथा रोमन परिप्रेक्ष्य में इन सम्बन्धों की व्यख्या की आवश्यकता नहीं थी।
क्लियोपैट्रा के पिता के काल में रोम, मिस्र के अधीन रहा था तथा कुछ समय के लिए स्वयं क्लियोपैट्रा के भी अधीन रहा था, बाद में मिस्र रोम का संरक्षित राज्य बन गया था। जब मिस्र की साम्राज्ञी क्लियोपैट्रा रोम के सम्राट के महल में रहती थी, तब ऐसा लगने लगा था कि दोनों राज्य मिलकर एक हो गए हैं।
अब दोनों राज्यों की सेनाएं फिर एक दूसरे से युद्ध कर रही थीं। उस काल में मिस्र तथा रोम की राजनीति, मिस्र तथा रोम के राजाओं, रानियों, सेनापतियों एवं सामंतों की व्यक्तिगत आकांक्षाओं के कारण इसी प्रकार उलझ कर रह गई थी।
ई.पू.31 में एक्टियम नामक स्थान पर रोमन सेनापति एग्रिप्पा की नौसेना तथा मार्क एंटोनी एवं क्लियोपैट्रा की संयुक्त नौसेनाओं में भयानक युद्ध हुआ। क्लियोपैट्रा तथा मार्क एंटोनी की सेनाएं लगातार जीत रही थीं किंतु युद्ध के दौरान अचानक अफवाह फैलाई गई कि रानी क्लियोपैट्रा मर गई है।
इस सूचना को सुनकर मार्क एंटोनी कमजोर पड़ गया और उसकी फौजों को ऑक्टेवियन की सेनाओं से पराजित हो जाना पड़ा। इसके बाद रोमन सेनाएं लगातार जीतती रहीं और ई.पू. 30 में मिस्र में घुस गईं। क्लियोपैट्रा अपने 60 जहाजों के साथ युद्धस्थल छोड़कर सिकंदरिया भाग गई। मार्क एंटोनी भी उससे यहीं पर आ मिला। रोमन सम्राट ऑक्टेवियन की सेनाएं अब भी एंटोनी तथा क्लियोपैट्रा के पीछे लगी हुई थीं।
रानी क्लियोपैट्रा का आत्मघात
रोमन सम्राट ऑक्टेवियन सीजर चाहता था कि वह मिस्र की रानी क्लियोपैट्रा को पकड़कर रोम ले जाए तथा अपने विजय जुलूस में, पराजित क्लियोपैट्रा का सार्वजनिक प्रदर्शन करे। जब क्लियोपैट्रा को ऑक्टेवियन के इस भयानक निश्चय की जानकारी मिली तो उसने अपने अंतिम पति मार्क एंटोनी के साथ आत्मघात करने का निर्णय लिया। क्लियोपैट्रा मरना नहीं चाहती थी किंतु वह अपमानित होकर जीना भी नहीं चाहती थी इसलिए उसे मरने का निर्णय लेना पड़ा।
उसने जीना चाहा था किंतु उसकी महत्त्वाकांक्षाओं ने उसके जीने के लिए कोई रास्ता नहीं छोड़ा था। क्लियोपैट्रा संसार की सुंदरतम महिलाओं में से थी। वह चाहती थी कि दुनिया उसे इसी रूप के लिए याद करे और उसके किस्से आने वाली पीढ़ियों की जीभ पर बने रहें। इसके लिए आवश्यक था कि मृत्यु के बाद भी उसका शरीर, सौंदर्य से दमदमाता हुआ दिखाई दे और लोग उस सुंदर रानी की मृत देह को देखकर भी आहें भरें।
क्लियोपैट्रा अपने शरीर को काटना-फाड़ना नहीं चाहती थी। न मौत के बाद जहर से काला पड़ा हुआ दिखाना चाहती थी। इसलिए उसने अपने लिए एक रहस्यमय मौत का चयन किया। वह जनरल मार्क एंटोनी को लेकर एक गुप्त-गृह में चली गई। एक जहरीला कोबरा भी उनके साथ था जिसकी विष-थैली निकाली जा चुकी थी। क्लियोपैट्रा तथा मार्क ने एक ऐसे मादक पदार्थ का सेवन किया जिससे उनकी तुरंत मृत्यु हो जाए तथा शरीर भी काला नहीं पड़े।
कोबरा की उपस्थिति के कारण लोग समझें कि उनकी मृत्यु सांप के काटने से हुई है किंतु वे ये भी समझें कि रहस्यमयी शक्तियों के स्वामी होने के कारण उनका शरीर काला नहीं पड़ा। ऐसा ही हुआ। कुछ ही समय बाद जब ऑक्टेवियन सीजर के सैनिकों ने उस स्थान में प्रवेश किया तो उन्होंने दोनों की निर्जीव देह को देखा। उनकी देह पर सर्पदंश के चिह्न मौजूद थे किंतु त्वचा का रंग दमक रहा था। इतिहास के पन्नों में क्लियोपैट्रा की मृत्यु एक रहस्य बन कर रह गई। उसके बारे में तरह-तरह की बातें कही जाने लगीं।
कुछ लेखकों ने लिखा है कि जब क्लियोपैट्रा ने देखा कि ऑक्टेवियन की सेनाओं से बचा नहीं जा सकता तो उसने अंतिम दांव खेला। उसने रोमन सम्राट ऑक्टेवियन पर प्रेम का जाल फैंका। ऑक्टेवियन ने उसका प्रेम-प्रस्ताव स्वीकार कर लिया तथा क्लियोपैट्रा से कहा कि वह एंटोनी को मार डाले।
क्लियोपैट्रा ने एंटोनी को बहला-फुसलाकर साथ-साथ मरने के लिए तैयार किया और वह उसे एक समाधि भवन में ले गई। वहाँ क्लियोपैट्रा ने एक कोबरा सांप से अपने वक्ष पर दंश लगवाया जिसकी विष-थैली पहले ही निकाली जा चुकी थी। जनरल एंटोनी ने इस भ्रम में अपने जीवन का अंत कर लिया कि क्लियोपैट्रा आत्महत्या कर चुकी है। इस प्रकार एंटेानी मर गया और क्लियोपैट्रा बच गई।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि रोमन सम्राट ऑक्टेवियन ने भी क्लियोपैट्रा के साथ षड़यंत्र किया तथा मार्क के मरने के बाद एक जहरीले जंतु से कटवाकर क्लियोपैट्रा की भी हत्या कर दी। उस समय क्लियोपैट्रा केवल 39 वर्ष की थी किंतु उसके सौंदर्य का ढलान अभी बहुत दूर था।
कुछ इतिहासकार मानते हैं कि रानी क्लियोपैट्रा ने जनरल मार्क को धोखा नहीं दिया। उसने मार्क के सामने ही कोबरा से अपने शरीर पर दंश लगवाकर आत्महत्या की और जब मार्क ने देखा कि क्लियोपैट्रा मर गई है तब उसने भी आत्महत्या कर ली। वे दोनों जानते थे कि उन्हें ऑक्टेवियन के सैनिक इससे भी कहीं अधिक दर्दनाक एवं अपमान-जनक मृत्यु देंगे।
अधिकांश इतिहासकार मानते हैं कि क्लियोपैट्रा ने एक सर्प से अपने स्तन पर दंश लगवाकर आत्महत्या की थी जबकि बहुत कम इतिहासकार यह भी मानते हैं कि उसकी मौत मादक पदार्थ के सेवन से हुई थी। जर्मनी के एक शोधकर्ता ने दावा किया है कि क्लियोपैट्रा की मौत सर्पदंश से नहीं, बल्कि अफीम और हेम्लाक के मिश्रण के सेवन से हुई थी।
इस मिश्रण के प्रयोग से प्राण तुरंत निकल जाते थे तथा शरीर भी काला नहीं पड़ता था। जबकि सर्पदंश से प्राण निकलने में काफी समय लगता था और मृत्यु के समय शरीर काला पड़ जाता था।
रानी क्लियोपैट्रा के चित्रों एवं मूर्तियों के अवलोकन से मैंने यह पाया है कि उसका बायाँ वक्ष खुला रखा जाता है। इससे अनुमान होता है कि रानी ने अपने बाएं वक्ष पर सर्पदंश लगवाया होगा। रानी के चित्रों में खुला वक्ष इसी तरफ संकेत करता हुआ प्रतीत होता है।
अंतिम फराओ शासक थी क्लियोपैट्रा
यूनिवर्सिटी ऑफ ट्राइवर के इतिहासकार प्रोफेसर क्रिस्टॉफ शेफर ने अपने शोधपत्र में दावा किया है कि क्लियोपैट्रा का निधन ईसा-पूर्व 30 के अगस्त माह में हुआ था। क्लियोपैट्रा ने ईसा-पूर्व 51 से ईसा-पूर्व 30 तक मिस्र पर शासन किया था। वह मिस्र पर शासन करने वाली अंतिम फराओ शासक थी। वह यूनानी या कॉकेशियस (अफ्रीकी) रक्त-वंश की थी, इस पर आज तक बहस एवं शोध जारी है।
आधी यूनानी आधी अफ्रीकी
माना जाता रहा है कि क्लियोपैट्रा यूनानी मूल की थी किन्तु विशेषज्ञों ने उसकी बहिन आरसीनोए के अवशेषों के आधार पर यह पता लगाया है कि क्लियोपैट्रा के भाई-बहन आधे अफ्रीकी रक्त के थे। अर्थात् क्लियोपैट्रा शुद्ध रूप से यूनानी या कॉकेशियन (अफ्रीकी) नस्ल की नहीं थी बल्कि आधी यूनानी और आधी
अफ्रीकी नस्ल की थी। कुछ वर्ष पहले बीबीसी ने एक वृत्तचित्र ‘क्लियोपाट्रा पोर्ट्रेट ऑफ ए किलर’ प्रदर्शित किया था। इसमें तुर्की के इफेसस नामक स्थान पर बने एक मकबरे से प्राप्त मानव अवशेषों पर की गई खोज का विश्लेषण किया गया। इस मकबरे का फोरेंसिक तकनीक के साथ मानव विज्ञान और वास्तुशास्त्रीय अध्ययन करने के बाद विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हुए कि मकबरे में पाया गया नरकंकाल क्लियोपैट्रा की बहन राजकुमारी आरसीनोए (चतुर्थ) का है।
इस अध्ययन दल का नेतृत्व करने वाले ऑस्ट्रियाई विज्ञान अकादमी के पुरातत्व-विज्ञानी हाइक थुयेर के अनुसार क्लियोपैट्रा की बहन आरसीनोए (चतुर्थ) की माँ अफ्रीकन महिला थी। यह खुलासा एक सनसनीखेज बात है, जो टॉलेमी राजवंश के वैवाहिक सम्बन्धों पर नवीन प्रकाश डालता है।
किंवदन्तियों का संसार
इतिहास में क्लियोपैट्रा का उल्लेख अत्यंत सुंदर रानी के रूप में किया जाता है। क्लियोपैट्रा से सम्बन्धित खोजों के आधार पर यह भी दावा किया जाता है कि क्लियोपैट्रा प्रतिदिन 700 गधियों के दूध से नहाती थी जिससे उसकी त्वचा खूबसूरत बनी रहती थी। अनेक कलाकारों ने क्लियोपैट्रा के रूप-रंग और उसकी मादकता पर कई चित्र बनाए और मूर्तियां गढ़ीं।
रोमन इतिहास, ग्रीक काव्य तथा विश्व भर के साहित्य में वह इतनी लोकप्रिय हुई कि आगे चलकर विश्व की अनेक भाषाओं के साहित्यकारों ने उसे अपनी कृतियों की नायिका बनाया।
साहित्य में उसकी लोकप्रियता प्राचीन काल से लेकर मध्यकाल और आधुनिक काल में भी लगातार बनी हुई है। अंग्रेजी साहित्य के तीन नाटककारों- शेक्सपियर, ड्राइडन और बर्नाड शॉ ने अपने नाटकों में उसके व्यक्तित्व के कई पहलुओं का विस्तार किया। सबसे पहला नाटक ई.1608 में विलियम शेक्सपीयर द्वारा ‘एण्टोनी एण्ड क्लियोपैट्रा’ शीर्षक से लिखा गया जो पिछले चार सौ सालों से पूरी दुनिया में पढ़ा और खेला जाता है।
दुनिया के अन्य लेखकों ने भी क्लियोपैट्रा पर नाटक लिखे और मंचित किए। क्लियोपैट्रा पर कई फिल्में भी बन चुकी हैं। दुनिया भर के कलाकारों ने क्लियोपैट्रा के रूप वर्णन के आधार पर मूर्तियाँ गढ़ीं जो बाजारों में ऊंची कीमतों पर बिकीं और संग्रहालयों की शोभा बनीं।
रोम, मिस्र तथा सीरिया में रानी क्लियोपैट्रा के चित्रों वाले सिक्के जारी किए गए। पूरी दुनिया में उसकी पेंटिंग बनाई गईं। आज संसार में जितने चेहरे और चित्र क्लियोपैट्रा के मिलते हैं, उतने शायद ही किसी अन्य रानी के मिलते हों। क्लियोपैट्रा एक चतुर औरत थी और प्रभावशाली पुरुषों के राज जानने के लिए उनसे अंतरंग सम्बन्ध बनाती थी।
अपने शासन और अस्तित्व को बचाए रखने के लिए क्लियोपैट्रा ने हर दांव खेला। वह अनेक भाषाएँ बोल सकती थी और दूसरे देशों के राजदूतों से एक ही समय में उनकी भाषाओं में बात किया करती थी। क्लियोपैट्रा भारत के गरम मसालों, मलमल और मोतियों की दीवानी थी। वह इतनी अधिक धनी थी कि सिकंदरिया के बंदरगाह में भारतीय सामान के पूरे के पूरे जहाज खरीदा करती थी।
क्लियोपैट्रा और मार्क एंटोनी विश्व इतिहास के दो ऐसे पात्र हैं, जिनकी प्रेम कहानी को अमर कहा जाता है किंतु निश्चित रूप से यह एक दुःखान्तिका है।
फराओ राजाओं के युग का अंत
रानी क्लियोपैट्रा की मौत के साथ ही मिस्र के इतिहास में एक साथ कई युग समाप्त होते हैं। वह यूनान से आए टॉलेमी वंश की अंतिम शासक थी इसलिए क्लियोपैट्रा के अंत के साथ ही मिस्र में यूनानी राजाओं के युग का अंत हो जाता है। वह अंतिम फराओ राजा थी, इसलिए मिस्र में फराओ राजाओं के युग का समापन हो जाता है।
इन्हीं फराओ राजाओं ने मिस्र में रहस्यमय विशाल पिरामिडों का निर्माण किया था तथा उनमें देवताओं के रहस्यों के साथ विपुल स्वर्ण छिपा दिया था। क्लियोपैट्रा मिस्र के इतिहास में पिछली तीन शताब्दियों से चल रहे ‘हैलेन्सिटिक युग’ की अंतिम शासक थी इसलिए उसके अंत के साथ हैलेन्सिटिक युग का भी अंत हो जाता है।
अब मिस्र एक स्वतंत्र राज्य न रहकर रोमन साम्राज्य का हिस्सा बन जाता है। जो रोम कुछ समय के लिए ही सही, कभी मिस्र के अधीन हुआ करता था, आज वही रोम, मिस्र का स्वामी बन गया।
जूलियस सीजर एवं क्लियोपैट्रा तो काल के गाल में समा गए किंतु उनके किस्से संसार भर में छा गए। आज सैंकड़ों साल बाद भी जूलियस सीजर एवं क्लियोपैट्रा संसार के इतिहास में जीवित हैं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता