खानखाना ने जहाँगीर को हीरे की एक खान समर्पित की जो खानखाना के बेटे अमरूल्लाह ने खानदेश के जमींदार पनजू से छीनी थी। जहाँगीर ने अत्यंत प्रसन्न होकर खानखाना का खिताब सात हजारी मनसब और सात हजारी सवार कर दिया। ये वे क्षण थे जब जहाँगीर अपने जीवन में खानखाना पर सर्वाधिक प्रसन्न हुआ। इसके बाद खानखाना के जीवन में फिर ऐसा अवसर न आया।
जहाँगीर हर तरह से खानखाना को प्रसन्न किया चाहता था और उससे निकटता दर्शाना चाहता था। इसलिये उसने इस अवसर पर खानखाना के बेटे दाराबखाँ को नादरी का खिलअत दिया[1] तथा खानखाना को सलाह देते हुए कहा- ‘हमने सुना है कि इन दिनों शाहनवाजखाँ बहुत शराब पीता है। उसे कहो कि वह इस तरह अपने को नष्ट न करे।’
जब जहाँगीर खानखाना को यह सलाह दे रहा था तब अचानक ही उसका हाथ अपने गालों पर चला गया। यह वही गाल था जिस पर एक दिन अकबर ने सलीम को शराब न पीने की नसीहत के साथ जोरदार तमाचा मारा था।
जब खानखाना बादशाह से विदा लेकर बुरहानपुर पहुँचा तो उसने पाया कि शाहनवाज अत्यधिक शराब पीने से मरणासन्न है। खानखाना ने बेटे का बहुत इलाज करवाया किंतु एक दिन मौत उसे खींचकर ले ही गयी। पत्नी माहबानो तथा दामाद दानियाल की मृत्यु के बाद खानखाना पर यह तीसरा कहर था।
जहाँगीर को जब यह समाचार मिला तो उसने खानखाना को सहानुभूति का संदेश भेजा। जहाँगीर और कुछ तो खानखाना का भला नहीं कर सकता था किंतु इतना प्रबंध उसने अवश्य किया कि खानखाना अपने बेटों और पोतों की तरक्की होते हुए देखकर प्रसन्न हो सके।
जहाँगीर ने खानखाना के दूसरे बेटे दाराबखाँ का ओहदा बढ़ाकर पाँच हजारी मनसब कर दिया। शाहनवाजखाँ की सूबेदारी के सारे क्षेत्र दाराबखाँ को दे दिये। खानखाना के तीसरे पुत्र रहमानदाद को दो हजारी जात और सात सौ सवारों का मनसब दिया। शाहनवाज के पुत्र मनुचहर को दो हजारी जात तथा एक हजारी सवार का मनसब दिया और शाहनवाज के दूसरे पुत्र तुगरल को एक हजारी जात और पाँच सौ सवार का मनसब दिया। खानखाना अपने कुनबे को इस तरह आगे बढ़ता देखकर प्रसन्न हुआ किंतु यह प्रसन्नता कुछ ही दिनों के लिये थी।
मलिक अम्बर ने भले ही मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली थी किंतु ऊदाराम ब्राह्मण के हाथ से निकल जाने के कारण वह खानखाना से बहुत नाराज रहता था और उससे बदला लेने की योजनायें बनाता रहता था। एक दिन अवसर पाकर उसने खानखाना के तीसरे बेटे रहमानदाद को मार डाला। खानखाना पर फिर से विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा। मुगलों की सेवा में वह अपने कुनबे की भेंट चढ़ाता जा रहा था। सियासत का यह घिनौना चेहरा देखकर खानखाना सकते में था। खानखाना की सेना में मलिक अम्बर का खौफ छा गया।
[1] नादरी बिना बाहों की कमरी होती थी जो जामे के ऊपर पहनी जाती थी। इसे बिना बादशाह की अनुमति के कोई नहीं पहिन सकता था।