मुहम्मद बिन तुगलक के शासन काल में भारत में घट रही घटनाओं के समाचार मध्यएशिया तक भी पहुंच रहे थे। दो-आब में कर बढ़ा देने तथा राजधानी के परिवर्तन से भारत की जनता में जो असंतोष उत्पन्न हो रहा था, उससे प्रोत्साहित होकर ई.1328 में मंगोलों ने तरमाशिरीन के नेतृत्व मेंं भारत पर आक्रमण कर दिया। मंगोल सिंध नदी को पार करके दिल्ली के निकट आ गए। मुहम्मद बिन तुगलक ने मंगोलों से युद्ध करने के स्थान पर उन्हें बहुत-सा धन देकर उनसे अपना पीछा छुड़ाया।
मुहम्मद बिन तुगलक की मंगोलों को धन देने की नीति की तीव्र आलोचना की गई है। इससे मंगोलों को सुल्तान की दुर्बलता का पता लग गया और उनका भारत पर आक्रमण करने का प्रलोभन बढ़ गया परन्तु वास्तविकता यह है कि सुल्तान उन दिनों ऐसी परिस्थिति में नहीं था कि मंगोलों का सामना कर सके। सुल्तान के पास सल्तनत को नष्ट-भ्रष्ट होने तथा पराजय से बचाने का कोई दूसरा उपाय नहीं था।
मंगोलों से दोस्ती हो जाने के कुछ बरसों बाद मुहम्मद बिन तुगलक ने खुरासान पर विजय प्राप्त करने की योजना बनाई थी। इस योजना का सबसे बड़ा कारण मुहम्मद बिन तुगलक की महत्त्वाकांक्षा थी। इस समय सम्पूर्ण भारत दिल्ली सल्तनत के अधीन था और और अब मुहम्मद बिन तुगलक विदेश विजय का गौरव प्राप्त करना चाहता था।
सुल्तान के दरबार में उन दिनों कुछ खुरासानी अमीर रहते थे जिन्होंने सुल्तान को खुरासान की शोचनीय दशा के बारे में जानकारी देकर खुरासान पर आक्रमण करने के लिए प्रोत्साहित किया। इन दिनों खुरासान में अबू सईद नामक बादशाह का शासन था। वह अल्पवयस्क तथा दुराचारी था।
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अबू सईद के अमीर उससे असन्तुष्ट होकर षड्यन्त्र रच रहे थे तथा उसका संरक्षक अमीर चौगन राज्य को छीनने का प्रयास कर रहा था। अबू सईद ने चौगन की हत्या करवा दी। इससे खुरासान में बड़ी गड़बड़ी फैल गई और चौगन के पुत्र अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने का अवसर ढूँढने लगे। खुरासान के विभिन्न प्रान्तों में भी गड़बड़ी फैली हुई थी। इन परिस्थितियों में सुल्तान के लिए खुरासान विजय की योजना बनाना अस्वाभाविक नहीं था।
मुहमद बिन तुगलक ने अपनी इस योजना को कार्यान्वित करने के लिए एक विशाल सेेना तैयार की। इन सैनिकों को एक वर्ष का वेतन पहले से ही दे दिया परन्तु परिस्थितियाँ बदल जाने से सुल्तान को खुरासान योजना त्याग देनी पड़ी।
योजना को त्यागने का पहला कारण यह था कि मिस्र के राजा ने खुरासान के सुल्तान अबू सईद से मैत्री कर ली और मुहमद बिन तुगलक की सहायता करने से इन्कार कर दिया।
खुरासान आक्रमण की योजना को त्यागने का दूसरा कारण यह था कि इन्हीं दिनों चगताई अमीरों ने विद्रोह करके तरमाशिरीन को तख्त से उतार दिया जिससे अबू सईद को अपने राज्य की पूर्वी सीमा की ओर से आक्रमण की आंशका नहीं रह गई। तीसरा कारण यह था कि ऐसे दूरस्थ प्रदेश में हिन्दूकुश पर्वत के उस पार सेना तथा रसद भेजना और अपने सहधर्मियों से युद्ध करके विजय प्राप्त करना सरल कार्य नहीं था।
इतिहासकारों द्वारा मुहमद बिन तुगलक की इस योजना की तीव्र आलोचना की गई है। आलोचकों का कहना है कि मार्ग की कठिनाइयों को ध्यान में नहीं रखते हुए ऐसे सुदूरस्थ देश की विजय की योजना बनाना पागलपन था परन्तु मुहमद बिन तुगलक के समर्थकों का कहना है कि यदि खुरासान से भारत पर आक्रमण करना सम्भव है, तब भारत से खुरासान पर आक्रमण करना क्यों सम्भव नहीं है।
आलोचकों के अनुसार दो-आब के अकाल, राजधानी के परिवर्तन तथा संकेत मुद्रा की योजना विफल हो जाने से राज्य भयानक आर्थिक संकट में था, तब इस प्रकार की योजना बनाना मूर्खता ही थी परन्तु ऐसी कामनाएँ, अल्लाउद्दीन खिलजी भी कर चुका था। वास्तव में सुल्तान की योजना तर्कहीन नहीं थी। सम्भवतः परिस्थितियों के कारण ही मुहम्मद ने इस योजना को त्याग दिया था।
ई.1337 में मुहम्मद बिन तुगलक ने नगरकोट पर विजय प्राप्त करने का प्रयास किया, जो हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले में स्थित है। नगरकोट का दुर्ग एक पहाड़ी पर स्थित था और अभेद्य समझा जाता था। मुहम्मद बिन तुगलक ने एक लाख सैनिकों के साथ नगरकोट के किले पर आक्रमण कर दिया और उस पर विजय प्राप्त कर ली परन्तु सुल्तान ने फिर से वह किला वहाँ के राय को लौटा दिया और दिल्ली चला आया।
फरिश्ता का कहना है कि सुल्तान ने चीन तथा हिमाचल पर विजय प्राप्त करने की योजना बनाई। हिमाचल विजय की योजना चीन अभियान को सरल बनाने के लिए की गई थी। जियाउद्दीन बरनी का कहना है कि सुल्तान ने कराजल के पर्वतीय प्रदेश पर विजय प्राप्त करने की योजना बनाई जो चीन तथा हिन्द के मार्ग में स्थित है।
बरनी का कहना कि मुहमद बिन तुगलक ने कराजल योजना को इस उद्देश्य से बनाया था जिससे वह खुरासान पर सरलता से विजय प्राप्त कर सके परन्तु चंूकि कराजल खुरासान के मार्ग में नहीं पड़ता, अतः बरनी का मत अमान्य है।
हजीउद्दबीर का कहना है चूंकि कराजल की स्त्रियाँ अपने रूप तथा अन्य गुणों के लिए प्रसिद्ध थीं, इसलिए मुहमद बिन तुगलक उनसे विवाह करके उन्हें अपने रनिवास में लाना चाहता था। इसी ध्येय से उसने कराजल पर आक्रमण करने की योजना बनाई थी। हजीउद्दबीर का मत भी अमान्य है क्योंकि तत्कालीन इतिहासकारों के अनुसार मुहमद बिन तुगलक का आचरण बड़ा पवित्र था।
अधिकांश इतिहासकारों की धारणा है कि मुहमद बिन तुगलक ने हिमाचल प्रदेश के कुछ विद्रोही सरदारों को दिल्ली सल्तनत के अधीन करने के लिए यह योजना बनाई थी। फरिश्ता का कहना है कि सुल्तान ने चीन से धन लूटने के लिए यह योजना बनाई थी। अनुमान है कि मुहमद ने तराई प्रदेश के किसी सरदार को दबाने के लिए हिमाचल पर आक्रमण किया था।
हिमाचल अभियान के आरम्भ में मुहमद बिन तुगलक की सेना को अच्छी सफलता मिली परन्तु जब वर्षा ऋतु आरम्भ हुई तब मुहम्मद की सेना का पतन आरम्भ हो गया। वर्षा के कारण रसद का पहुँचना कठिन हो गया। इस भयानक परिस्थिति में शत्रु ने मुहमद बिन तुगलक की सेना पर आक्रमण कर दिया और उसे नष्ट-भ्रष्ट कर दिया।
कहा जाता है कि केवल दस सैनिक इस दुःखद घटना को सुनाने के लिए दिल्ली लौट सके। इतनी बड़ी क्षति होने पर भी मुहमद बिन तुगलक को अपने ध्येय में सफलता प्राप्त हो गई। चूंकि उस पहाड़ी सरदार के लिए पहाड़ के निचले प्रदेश में सुल्तान से विरोध करके बने रहना संभव नहीं था इसलिए उसने मुहमद बिन तुगलक की अधीनता स्वीकार कर ली।
कुछ इतिहासकारों ने मुहमद बिन तुगलक की इस योजना की बड़ी आलोचना की है और उसे पागल कहा है परन्तु इसमें पागलपन की कोई बात नहीं थी। पर्वतीय प्रदेश में जन-धन की क्षति होना स्वाभाविक था। अंग्रेजों को भी अफगानिस्तान एवं नेपाल में बड़ी क्षति उठानी पड़ी थी।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता