इधर खानखाना अपने दामाद दानियाल के मर जाने तथा अपनी बेटी के शोक में डूब जाने के दोहरे कहर से जर्जर हो चला था और उधर अकबर तथा सलीम के बीच घट रहे घटनाक्रम से उसकी चिंतायें दिन दूनी और रात चौगुनी होती जाती थीं।
आगरा से जिस तरह के समचार मिल रहे थे उनसे खानखाना समझ गया कि अब जीवन में बुरे दिनों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जायेगी। अंत में एक दिन वह भी आया जब बादशाह अकबर की मृत्यु होने, सलीम के तख्त पर बैठने तथा खुसरो की आँखें फोड़ी जाकर कैद में डाले जाने के समाचार भी खानखाना तक पहुँचे।
जब गुरु अर्जुन देव की हत्या होने का समाचार खानखाना तक पहुँचा तो खानखाना इस अत्याचार की सूचना से काँप उठा। खानखाना को दिल्ली और आगरा छोड़े हुए बारह साल बीत चले थे। इस बीच वहाँ सब कुछ बदल गया था। खानखाना के लगभग सभी पुराने मित्र या तो मृत्यु को प्राप्त हो गये थे या फिर उनका पहले का सा रुतबा न रहा था। जहाँगीर से भी उसका सम्पर्क कई वर्षों से नहीं रहा था। ऐसी स्थिति मेें जबकि जहाँगीर अकबर के विश्वस्त व्यक्तियों को चुन-चुन कर अपने मार्ग से हटा रहा था, खानखाना को समझ में नहीं आ रहा था कि वह नये बादशाह को मुजरा करने के लिये आगरा जाये या बादशाह की तरफ से किसी आदेश के आने की प्रतीक्षा करे!
एक दिन खानखाना इसी चिंता में डूबा हुआ था कि द्वारपाल ने आकर निवेदन किया- ‘बादशाह के संदेश वाहक मुकर्रबखाँ खानखाना की सेवा में हाजिर होना चाहते हैं।’ खानखाना ने मुकर्रबखाँ को अपने डेरे में आने की अनुमति दे दी। मुकर्रबखाँ ने खानखाना को शाही आदेश थमाया। बादशाह ने लिखा था- ‘बादशाह सलामत खानखाना की सेवाओं से प्रसन्न हैं तथा उसे उसी ओहदे और रुतबे पर बनाये रखने की मंजूरी देते हैं जिस ओहदे और रुतबे पर उसे मरहूम बादशाह जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर ने तैनात किया था। बादशाह सलामत यह भी आदेश देते हैं कि खानखाना उसी मेहनत और खैरख्वाही से दक्षिण विजय का काम करता रहे जो वह अब तक करता रहा है।’
खानखाना ने इस दरियादिली के लिये बादशाह सलामत नूरूद्दीन मुहम्मद जहाँगीर के प्रति अहसानमंद रहने तथा जीवन पर्यंत बादशाह के प्रति वफादार बने रहने का वचन दिया।
इसके बाद मुकर्रबखाँ ने खानखाना को एक और आदेश थमाया जिसे पढ़कर खानखाना की रूह काँप गयी। बादशाह ने मरहूम शहजादे दानियाल के समस्त पुत्रों को बादशाह सलामत की रहबरी में आगरा भेजने का हुक्म दिया था ताकि उनकी बेहतर बेहतर परवरिश और बेहतर तालीम का इंतजाम हो सके।
खानखाना जानता था कि दानियाल के बाद उसके बेटे ही जाना बेगम के जीवन का आधार बने हुए थे। यदि वे भी बादशाह ने छीन लिये तो जाना बेगम के जीवन में पूरी तरह अंधेरा छा जायेगा। खानखाना ने बहुत प्रकार से मुकर्रबखाँ को समझाने का प्रयास किया किंतु मुकर्रबखाँ अपनी बात पर अड़ा रहा कि बादशाह सलामत के आदेश की पालना हो अन्यथा इसे विद्रोह माना जायेगा।
जब कोई उपाय नहीं बचा तो खानखाना ने रोती-बिलखती जाना बेगम की गोद से उसके बेटों को छीनकर मुकर्रबखाँ को सौंप दिये।