शाही हरम के हिंजड़े न केवल हरम पर शासन करते थे अपितु परोक्ष रूप से लाल किले की समूची सत्ता अर्थात् सम्पूर्ण मुगलिया सल्तनत पर शासन करते थे। इन्हें ख्वाजासरा कहा जाता था।
जाविद खाँ मुगलिया हरम का मुख्य ख्वाजासरा था। वह शाही हरम के हिंजड़ों का दारोगा होने के साथ-साथ मुगलिया दरबार का मनसबदार भी था तथा उसके अधीन एक सेना रहा करती थी। इस प्रकार शाही हरम के हिंजड़े वजीर एवं सेनापति भी बनते थे।
मध्य एशिया के मुस्लिम शासक हब्शी, मंगोल, तुर्की एवं तातार औरतों को शाही हरम में रक्षक-सैनिक के रूप में नियुक्त करते थे जो शारीरिक रूप से बलिष्ठ तथा तलवार चलाने की कला में निपुण होती थीं। जब मुगल भारत में आए तो वे इस परम्परा को अपने साथ लेकर आए। मारवाड़ में इन स्त्री सैनिकों को ‘उड़दा-बेगणिया’ कहा जाता था, यह शब्द ‘पर्दा-बेगम’ से अपभ्रंश होकर बना था। जब शाही बेगमें एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाया करती थीं तो ये पर्दा-बेगमें नंगी तलवारें लेकर उन्हें चारों ओर से घेरे रहती थीं।
शाही हरम के हिंजड़े अत्यंत प्राचीन काल से अस्तित्व में थे। मध्य एशिया के शाही महलों में पर्दा-बेगमों के साथ-साथ हिंजड़ों को भी नियुक्त किया जाता था। इतिहास में इसके साक्ष्य भी मिलते हैं। तुर्की की प्राचीन राजधानी इस्ताम्बूल के संग्रहालय में 8वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व का चूना पत्थर का एक पैनल मिला है जिस पर एक शाही हरम के हिंजड़े की प्रतिमा उत्कीर्ण है। यह हिंजड़ा असीरिया के शाही महल में नियुक्त था। यह पैनल निर्मूद नामक स्थान से मिला था जो अब ईराक देश में स्थित है।
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भारत के मुगल शासक अपने शाही हरम में हब्शी, मंगोल, तुर्की एवं तातारी औरतों के साथ-साथ ख्वाजासरों को भी नियुक्त करते थे। ख्वाजासरा उस पुरुष को कहते थे जिसके यौन अंग काट दिए जाते थे अथवा जो नैसर्गिक रूप से नपुंसक उत्पन्न होते थे। मुगलों के शाही हरम में इन लोगों का बड़ा समूह नियुक्त रहता था जो नंगी तलवारें एवं भाले लेकर चौबीसों घण्टे हरम का पहरा देता था। इन लोगों का दारोगा भी एक ख्वाजासरा होता था।
शाही हरम के हिंजड़े मुगल दरबार में मनसबदार भी नियुक्त किए जाते थे तथा उनके अधीन एक अच्छी-खासी सेना भी होती थी जो आवश्यकता होने पर मुगलिया हरम की रक्षा के लिए शत्रुओं एवं आक्रांताओं से युद्ध करती थी।
जब बादशाह शाही हरम में होता था तब बादशाह के अंगरक्षक का काम भीशाही हरम के हिंजड़े करते थे।अकबर ने अपने उद्दण्ड धायभाई अधम खाँ का वध इन्हीं ख्वाजासरों से करवाया था।
ख्वाजासरों की नियुक्ति यह सोचकर की जाती थी कि ये किसी स्त्री से यौन सम्बन्ध बनाने में सक्षम नहीं होते किंतु मानव देह की जैविकीय संरचना की दृष्टि से ये पुरुष ही थे तथा यौन अंगों को काट दिए जाने के बाद भी उनके भीतर की यौन इच्छाएं जीवित रहती थीं। अतः इनमें से बहुत से ख्वाजासरा शाही हरम की औरतों के साथ प्रेम सम्बन्ध बना लेते थे।
चूंकि अकबर के समय से मुगल शहजादियों के विवाह करने पर रोक लगा दी गई थी तब से मुगल शहजादियों में इन ख्वाजासरों के प्रति आकर्षण बढ़ गया था, क्योंकि किसी भी हालत में बादशाह, शहजादों एवं शाही हकीम को छोड़कर कोई भी पर-पुरुष शाही हरम में प्रवेश नहीं कर सकता था।
शहजादों एवं शहजादियों की शिक्षा के लिए भी महिला शिक्षक एवं ख्वाजासरा नियुक्त किए जाते थे। विषय विशेष के अध्ययन के लिए शिक्षक के मामले में अपवाद भी देखने को मिलता था तथा शहजादियों को उस विषय की शिक्षा देने के लिए वृद्ध एवं विख्यात व्यक्ति शिक्षक के रूप में नियुक्त किए जाते थे।
मुगलों के इतिहास में ऐसे बहुत से उदाहरण मिलते हैं जब किसी ख्वाजासरा ने शाही हरम की औरतों से सम्बन्ध बनाए। मुहम्मद शाह रंगीला की बेगम ऊधम बाई शाही हरम के दारोगा जाविद खाँ से प्रेम करती थी जो ख्वाजासरा होने के साथ-साथ मुगल दरबार में मनसबदार भी था। उसके नियंत्रण में एक बड़ी सेना रहती थी और जाविद खाँ इस सेना के साथ युद्ध के मैदानों में जाकर लड़ाइयां भी लड़ता था।
कुछ समृद्ध ‘ख्वाजासरा’ इतने अमीर हो जाते थे कि वे अपने घरों में महिलाओं को रखते थे। इन महिलाओं और ख्वाजसारों के बीच प्रेम सम्बन्ध एवं शारीरिक सम्बन्ध होते थे। शाही हरम की महिलाओं को ख्वाजासरों से कुछ ढंकने-छिपाने की जरूरत नहीं थी। इस कारण शाही हरम में नियुक्त ख्वाजासरा हरम की महिलाओं से ‘सेक्शुअल फेवर’ लेने की स्थिति में थे और बदले में वे महिलाएं भी अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए ख्वाजासरा से निकटता प्राप्त कर सकती थीं।
इस कारण हरम की महिला तथा ख्वाजासरा के बीच सम्बन्ध विकसित हो जाते थे। इस तरह के सम्बन्धों के कारण ही बहुत से रईस, ख्वाजसारों को अपने घरों में काम नहीं देते थे।
औरंगजेब कालीन इटेलियन पर्यटक मनूची ने लिखा है- ‘कुछ ख्वाजासरा मुगल शहजादियों को बेहद पसंद थे। शहजादियां उनके साथ उदार थीं और वे ख्वाजासरों से ‘उन चीजों’ का आनंद लेने का अनुरोध कर सकती थीं जिनको लिखने में शर्म आती है ….. ख्वाजासरा शाही महिलाओं के लिए बहुत अनुकूल थे और उनकी जीभ और हाथ महिलाओं की जांच में एक साथ काम करते थे।’
इस टिप्पणी को शारीरिक सम्बन्धों की प्रकृति पर एक सूक्ष्म टिप्पणी के रूप में देखा जा सकता है। मनूची ने ख्वाजासरों का यह वर्णन दिल्ली के बाजारों और वेश्याओं के अड्डों में होने वाली बातों के आधार पर किया है।
अधिकांश ख्वाजासरा बड़े धार्मिक स्वभाव के थे तथा उन्हें बादशाह की ओर से धार्मिक कार्य दिए जाते थे। अकबर कालीन मुल्ला बदायूंनी ने लिखा है कि अकबर ने ख्वाजा दौलत नजीर को इबादतों के लिए नियुक्त किया गया। वह एक ख्वाजासरा था। उस काल के ख्वाजासरों ने मस्जिदों और दरगाहों का निर्माण करवाया। आगरा में एक ख्वाजासरा द्वारा निर्मित एक मस्जिद आज भी मौजूद है।
मुगल कालीन भारतीय समाज में ख्वाजासरों की इतनी बड़ी संख्या में उपस्थिति का कारण क्या था! जब हम इस प्रश्न पर विचार करते हैं तो इसके पीछे कई कारण दिखाई देते हैं। उस काल में बहुत से माता-पिता निर्धनता के कारण अपने पुत्रों को गुलाम के रूप में बेच देते थे। गुलामों के सौदागर इन लड़कों के यौन अंग काटकर उन्हें ख्वाजासरा बनाते थे जिन्हें शाही हरम में ऊंचे दामों पर खरीद लिया जाता था।
बहुत से अमीर लोग अपनी काम-पिपासा बुझाने के लिए इन ख्वाजासरों को अपने घरों में रखते थे। जब तक इन ख्वाजासरों की आयु कम होती थी, वे अमीरों के बिस्तरों की शोभा बढ़ाते थे और जब उनकी आयु अधिक हो जाती थी तो उन्हें अन्य कार्यों पर लगा दिया जाता था। शाही हरम के हिंजड़े भी बूढ़े हो जाने के बाद उपेक्षित जीवन जीते थे।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता