ई.1189 में मुहम्मद गौरी ने भटिण्डा दुर्ग पर आक्रमण करके उस पर छल-पूर्वक अधिकार कर लिया। यह दुर्ग पृथ्वीराज चौहान के अधीन था। पृथ्वीराज चौहान ने उस समय कोई कार्यवाही नहीं की। वह संभवतः किसी अन्य अभियान में संलग्न था। ई.1191 में मुहम्मद गौरी ने भारत पर पुनः आक्रमण किया तथा पंजाब में स्थित सरहिंद के दुर्ग पर भी अधिकार कर लिया। इस पर पृथ्वीराज चौहान की सेनाओं ने करनाल जिले में स्थित तराइन के मैदान में मुहम्मद गौरी का रास्ता रोका। यह लड़ाई भारत के इतिहास में ‘तराइन की पहली लड़ाई’ के नाम से प्रसिद्ध है। युद्ध के मैदान में गौरी का सामना दिल्ली के राजा गोविंदराय तोमर से हुआ जो पृथ्वीराज चौहान के अधीन सामंत था तथा पृथ्वीराज का निकट सम्बन्धी भी था।
इस युद्ध के सम्बन्ध में अलग-अलग और विरोधाभासी तथ्य मिलते हैं। हिन्दू ग्रंथों एवं मुस्लिम ग्रंथों के विवरणों में काफी अंतर है। कुछ मुस्लिम ग्रंथों के अनुसार जब युद्ध क्षेत्र में पृथ्वीराज चौहान की सेना भारी पड़ने लगी तो मुहम्मद गौरी की सेना युद्ध के मैदान से भाग छूटी। सेना को भागते हुए देखकर मुहम्मद गौरी राजपूत सेना के हरावल को चीरता हुआ गोविंदराज तक जा पहुंचा तथा अपना घोड़ा उस पर कुदा कर भाले से वार कर दिया जिससे राजा गोविंदराज के दो दांत टूट गए। इस पर गोविंदराज ने सांग फैंकी जिससे गौरी की बांह में घाव हो गया।
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‘तबकात ए नासिरी’ में लिखा है कि राजा गोविंदराज के वार से मुहम्मद गौरी घायल होकर घोड़े से गिर गया और अत्यधिक रक्त बह जाने से बेसुध हो गया। तबकात ए नासिरी की अलग-अलग प्रतियों में मिले वर्णनों में भी अंतर है। इस ग्रंथ की एक प्रति में कहा गया है कि मुहम्मद को घायल हुआ देखकर एक खिलजी नवयुवक फुर्ती से मुहम्मद के घोड़े पर सवार होकर गौरी को युद्ध के मैदान से बाहर ले गया। एक अन्य ग्रंथ में लिखा है कि खिलजी सैनिक सुल्तान को अपने घोड़े पर बैठाकर बाहर ले गया। एक अन्य ग्रंथ में लिखा है कि खिलजी सैनिक अपने सुल्तान को युद्ध के मैदान से घसीटते हुए बाहर खींच ले गया।
‘तबकात ए नासिरी’ की एक अन्य प्रति में लिखा है कि जब यवन सेना भागकर सुरक्षित स्थान पर पहुंची और उसने सुल्तान को अपने साथ नहीं पाया तो वह विलाप करने लगी। ‘जैन उल मासरी’ नामक ग्रंथ में लिखा है कि मुहम्मद गौरी को उसकी सेना ने गिरते हुए नहीं देखा इसलिए कोई भी गौरी की सहायता के लिए नहीं पहुंचा। रात भर गौरी युद्ध के मैदान में बेसुध पड़ा रहा। बाद में तुर्की गुलाम आए और उठाकर ले गए।
इन समस्त वृत्तांतों पर यदि विचार किया जाए तो ऐसा लगता है कि मुहम्मद गौरी युद्ध में घायल हुआ था और उसकी सेना युद्ध के मैदान छोड़कर भाग गई थी। एक खिलजी सैनिक द्वारा मुहम्मद को पृथ्वीराज की सेना के बीच में से लेकर निकल भागने की संभवना बहुत ही क्षीण है। अवश्य ही मुहम्मद गौरी पकड़ा गया होगा, जैसा कि हिन्दू ग्रंथ लिखते हैं।
कवि चंद बरदाई ने पृथ्वीराज रासो में लिखा है कि राजा धीर पुण्ढीर ने मुहम्मद गौरी को पकड़ लिया। कवि चंद बरदाई ने यह भी लिखा है कि पृथ्वीराज ने हाथी, घोड़े एवं स्वर्ण लेकर मुहम्मद गौरी को मुक्त कर दिया। प्रबंध कोष कहता है कि पृथ्वीराज ने गौरी को पकड़ कर छोड़ दिया। प्रबंध चिंतामणि भी इसकी पुष्टि करता है। हम्मीर महाकाव्य में लिखा है कि गौरी के क्षमा-याचना करने पर पृथ्वीराज ने दया करके उसे छोड़ दिया।
कुछ जैन ग्रंथों में लिखा है कि अपनी माता कर्पूरदेवी के कहने पर पृथ्वीराज ने मुहम्मद गौरी को मुक्त कर दिया। फरिश्ता ने लिखा है कि राजपूतों ने गौरी की भागती हुई सेना का चालीस मील तक पीछा किया। मुहम्मद गौरी बुरी तरह भयभीत हो गया फिर भी लाहौर तक पहुंच गया। लाहौर में उसने अपने घावों का उपचार करवाया। इसके पश्चात् वह गजनी लौट गया। मिनहाज उस् सिराज लिखता है कि विजय के बाद राजपूत सेना पृथ्वीराज के नेतृत्व में आगे बढ़ी और तबरहिंद अर्थात् सरहिंद के किले पर पुनः अधिकार कर लिया जिसे शहाबुद्दीन ने राजपूतों से छीना था।
तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकार जमीउल हिकायत और हसन निजामी तराइन के प्रथम युद्ध का उल्लेख नहीं करते हैं, इससे स्पष्ट होता है कि इस युद्ध में मुहम्मद गौरी को पराजय के साथ-साथ अत्यंत शर्मिंदगी भी उठानी पड़ी थी। जब सम्राट पृथ्वीराज की सेना ने आगे बढ़कर तबरहिंद का दुर्ग घेर लिया तो मुहम्मद गौरी के अमीर काजी जियाउद्दीन ने चौहन सेना का डटकर मुकाबला किया तथा 13 महीने तक हिन्दुओं को दुर्ग में नहीं घुसने दिया। अंत में हिन्दुओं ने दुर्ग पर अधिकार कर लिया तथा काजी जियाउद्दीन को पकड़कर अजमेर लाया गया। काजी ने पृथ्वीराज के मंत्रियों के समक्ष प्रस्ताव रखा कि यदि उसे मुक्त करके गजनी जाने की अनुमति दी जाए तो वह सम्राट को विपुल धन प्रदान करेगा। काजी का यह अनुरोध स्वीकार कर लिया गया तथा उससे धन लेकर उसे गजनी जाने की अनुमति दे दी गई।
संभवतः इन्हीं दो घटनाओं को पृथ्वीराज रासो, हम्मीर महाकाव्य, पृथ्वीराज प्रबन्ध, सुर्जन चरित्र तथा प्रबन्ध चिन्तामणि आदि ग्रंथों में पृथ्वीराज चौहान द्वारा मुहम्मद गौरी को अनेक बार परास्त करके बंदी बनाए जाने एवं क्षमा करके मुक्त किए जाने जैसी बातें लिखी हैं। इनमें से पहले घटना तराइन के प्रथम युद्ध में मुहम्मद को बंदी बनाए जाने की है तथा दूसरी घटना सरहिंद के दुर्ग में काजी को बंदी बनाए जाने की है।
भारतीय इतिहासकारों ने पृथ्वीराज द्वारा मुहम्मद गौरी को 20-21 बार हराने और बंदी बनाकर छोड़ने जैसी बातें लिखकर इस पूरे प्रकरण को संदेहास्पद बना दिया। कोई युद्धनीति यह नहीं कहती कि शत्रु को तब तक बंदी बनाकर मुक्त करते रहो जब तक कि वह तुम्हें ही पकड़ कर नहीं मार डाले! न पृथ्वीराज ने ऐसा किया होगा! यह मिथक पृथ्वीराज रासो नामक ग्रंथ की उपज है जिसे बाद में अन्य हिन्दू लेखकों ने भी बढ़ा-चढ़ा कर लिख दिया क्योंकि पृथ्वीराज रासो पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी के बीच 21 लड़ाइयों का उल्लेख करता है जिनमें चौहान विजयी रहे किंतु वह पृथ्वीराज द्वारा मुहम्मद गौरी को केवल एक बार बंदी बनाए जाने का उल्लेख करता है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता