राजा इल ने इला बनकर बुध मुनि से विवाह किया!
वाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड में राजा इल की अद्भुत एवं विस्मयकारी कथा मिलती है। इस कथा का उल्लेख अन्य पुराणों में भी किया गया है। इस कथा के अनुसार प्रजापति कर्दम के पुत्र इल बाल्हिक देश के राजा थे। वे बड़े धर्मात्मा नरेश थे तथा अपनी प्रजा का पालन पुत्र की भांति करते थे। देव, दानव, नाग, राक्षस, गंधर्व और महामनस्वी यक्ष राजा इल की स्तुति किया करते थे।
एक बार राजा इल अपनी सेना को लेकर एक सुंदर वन में शिकार खेलने के लिए गए। राजा ने उस वन में दस हजार हिंसक जंतुओं का वध किया। तत्पश्चात् वे उस प्रदेश में गए जहाँ महासेन स्वामि कार्तिकेय का जन्म हुआ था। उस वन में भगवान् शिव अपने सेवकों के सथ रहकर गिरिराजकुमारी उमा का मनोरंजन करते थे।
जिस समय राजा इल उस वन में पहुंचा, उस समय भगवान शिव स्त्री रूप धरकर उमा के साथ विचरण कर रहे थे। उन्होंने उमा का मनोरंजन करने के लिए उस वन में समस्त पुरुष वाचक संज्ञाओं को स्त्री-वाचक संज्ञाओं में बदल दिया था। इसलिए राजा इल एवं उनकी सेना के समस्त सिपाही भी अपने आप स्त्री बन गए।
जिस समय राजा इल उस वन में पहुंचा, उस समय भगवान शिव स्त्री रूप धरकर उमा के साथ विचरण कर रहे थे। उन्होंने उमा का मनोरंजन करने के लिए उस वन में समस्त पुरुष वाचक संज्ञाओं को स्त्री-वाचक संज्ञाओं में बदल दिया था। इसलिए राजा इल एवं उनकी सेना के समस्त सिपाही भी अपने आप स्त्री बन गए।
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राजा इल तथा उनके सैनिकों ने देखा कि वन में विचरण कर रहे समस्त पशु, पक्षी, सर्प एवं मनुष्य स्त्री रूप में परिवर्तित हो गए हैं। उन्होंने स्वयं को तथा अपने सैनिकों को स्त्री रूप में देखकर अत्यंत दुख का अनुभव किया। वनवासी लोगों ने राजा को बताया कि ऐसा भगवान महेश्वर की इच्छा से हुआ है। यह जानकर राजा इल भगवान महेश्वर को ढूंढते हुए उनकी शरण में पहुंचे।
राजा ने एक स्थान पर महेश्वर को पार्वती के साथ विराजमान देखा। उन्होंने राजा को देखते ही हंसकर कहा कि हे राजन् पुरुषत्व के अतिरिक्त और जो चाहे मांग लो। भगवान की यह बात सुनकर राजा बड़ा दुखी हुआ किंतु उसने भगवान शिव से कुछ नहीं मांगा और वे माता पार्वती की शरण में गए।
राजा ने कहा कि माता आपके दर्शन कभी निष्फल नहीं होते! आप समस्त लोकों को वर देने वाली हैं। अतः आप अपनी सौम्य दृष्टि से मुझ पर अनुग्रह कीजिए!
माता पार्वती ने महान् शोक से ग्रस्त राजा इल को करुणा भरी दृष्टि से देखकर कहा कि हे राजन् आप पुरुषत्व-प्राप्ति का जो वर चाहते हैं, उसके आधे भाग के दाता तो महादेव हैं और आधा वर मैं दे सकती हूँ। अतः आप अपने जीवन के शेष बचे हुए भाग में से आधा भाग स्त्री के रूप में तथा आधा भाग पुरुष के रूप में प्राप्त कर सकते हैं। आप सोचकर बताएं कि आप आधा जीवन पुरुष के रूप में किस प्रकार प्राप्त करना चाहेंगे!
इस पर राजा ने कहा कि माता मुझे एक माह के लिए अत्यंत वीरव्रती पुरुष के रूप में और एक माह के लिए अत्यंत रूपवती स्त्री के रूप में जीवन प्रदान करें। माता पार्वती ने राजा को उसकी इच्छा पूरी होने का वरदान दे दिया किंतु साथ ही यह भी कहा कि जब आप पुरुष रूप में हांेगे तो आपको अपने स्त्री-जीवन की कोई बात स्मरण नहीं रहेगी। इसी प्रकार जब आप स्त्री रूप में रहेंगे तो आपको अपने पुरुष-जीवन की कोई बात स्मरण नहीं रहेगी। इस वर को पाकर राजा बड़ा प्रसन्न हुआ तथा भगवान शिव एवं पार्वती को प्रणाम करके वहाँ से चल दिया। राजा को अब एक मास तक स्त्री रूप में ही रहना था, इसलिए उसने वह अवधि वन में ही व्यतीत करने का निश्चय किया तथा वह अपने स्त्री रूपी सैनिकों के साथ वन में विहार करने लगी। उसने अपना नाम इला रख लिया।
एक दिन जब इला पर्वतामालाओं के मध्य में स्थित एक वन में विहार कर रही थी, तब उसने एक सुंदर सरोवर देखा। उस सरोवर में चंद्रमा का पुत्र राजा बुध मुनि रूप में तपस्या कर रहा था। तपस्या के कारण बुध की देह अत्यंत कांतिमय होकर प्रकाशित हो रही थी। इस कारण इला मुनि बुध की तरफ सम्मोहित हुई और उनके निकट चली गई।
चूंकि यह सरोवर उस वन की सीमा से बाहर था जिस वन में भगवान शिव ने समस्त पुरुष वाचक संज्ञाओं को स्त्री-वाचक बना दिया था, इसलिए राजा बुध स्त्री बनने से बच गया था। वह तपस्या में इतना लीन था कि उसे कुछ ज्ञात ही नहीं था कि उसके आसपास क्या हो रहा है।
इला ने अपनी सखियों सहित उस सरोवर में उतरकर उस सरोवर का जल क्षुब्ध कर दिया। इससे इला का ध्यान भंग हुआ और उसने अत्यंत रूपवती स्त्री इला को देखा। इला को देखते ही राजा को तन-मन की सुधि नहीं रही और वह इला में आसक्त हो गया। वह सोचने लगा कि अप्सराओं से भी सुंदर यह स्त्री कौन है! न देववनिताओं में, न नागवधुओं में, न असुरनारियों में और न अप्सराओं में ही मैंने इससे पहले कभी कोई ऐसे मनोहर रूप से सुशोभित होने वाली स्त्री देखी है। यदि यह किसी और को न ब्याही गई हेा तो यह मेरी पत्नी बनने योग्य है।
ऐसा विचार करके राजा बुध जल से बाहर आ गया और सरोवर के तट पर बने आश्रम में चला गया। उसने उन समस्त स्त्रियों को अपने आश्रम में बुलाकर पूछा कि यह त्रिलोकसुंदरी नारी किसकी पत्नी है और किसलिए यहाँ आई है?
इस पर इला की सखियों ने उत्तर दिया कि यह सुंदरी हमारी सदा की स्वामिनी है। इसका कोई पति नहीं है। यह हम लोगों के साथ अपनी इच्छा से वनप्रांतर में विचरण करती है।
उन स्त्रियों का उत्तर सुनकर राजा बुध ने पुण्यमयी आवर्तनी विद्या का स्मरण किया तथा उसने इला के सम्बन्ध में समस्त बातें जान लीं। बुध ने उन सभी स्त्रियों से कहा कि तुम सब किंपुरुष अर्थात् किन्नरी होकर पर्वत के किनारे पर निवास करो और अपने लिए वहीं निवास बना लो।
तुम्हें पत्र और फल-फूल से ही अपना निर्वाह करना होगा। कुछ समय बाद तुम सब किंपुरुष नामक पतियों को प्राप्त कर लोगी। बुध की बात सुनकर समस्त इला की समस्त सखियां उस पर्वत के किनारे पर चली गईं। इस प्रकार संसार में किन्नर जाति अस्तित्व में आई। अगली कथा में देखिए- ऋषियों ने राजा इल को भगवान शिव से पुरुषत्व दिलवाया!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता