जब समस्त किन्नरियां पर्वत के किनारे चली गईं तो मुनि के रूप में रह रहे राजा बुध ने इला से हँसते हुए कहा- हे सुंदरी! मैं सोम देवता का परम प्रिय पुत्र बुध हूँ। हे वरारोहे! मुझे अनुराग ओर स्नेह भरी दृष्टि से देखकर अपनाओ।
बुध की बात सुनकर इला बोली- हे सौम्य सोम कुमार! मैं अपनी इच्छा के अनुसार विचरने वाली स्वतंत्र स्त्री हूँ किंतु इस समय आपकी आशा के अधीन हो रही हूँ। अतः मुझे उचित सेवा के लिए आदेश दीजिए और जैसी आपकी इच्छा हो वैसा कीजिए।
इलाक का यह अद्भुत वचन सुनकर कामासक्त सोमपुत्र को बड़ा हर्ष हुआ। वे इला के साथ रमण करने लगे। मनोहर मुख वाली इला के साथ अतिशय रमण करने वाले कामसाक्त बुध का वैशाख मास एक क्षण के समान बीत गया। जैसे ही एक मास पूर्ण हुआ तो पूर्ण चंद्रमा के समान मनोहर मुख वाले प्रजापति पुत्र श्रीमान् इल अपनी शय्या पर जाग उठे। उन्होंने देखा कि सोमपुत्र बुध वहाँ जलाशय में तप कर रहे हैं। उनकी भुजाएं ऊपर की ओर उठी हुई हैं और वे निराधार खड़े हैं।
राजा इल ने बुध के निकट जाकर उससे पूछा- ‘भगवन् मैं अपने सेवकों के साथ दुर्गम पर्वत पर आ गया था किंतु मुझे अपनी वह सेना कहीं दिखाई नहीं दे रही है। पता नहीं वे मेरे सैनिक कहाँ चले गए!
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माता पार्वती के वचनानुसार राजर्षि इल की स्त्रीत्व प्राप्ति विषयक समस्त स्मृति नष्ट हो गई थी। उसकी बात सुनकर बुध ने इल को सांत्वना देते हुए कहा कि राजन्! आपके सारे सेवक ओलों की भारी वर्षा से मारे गए! आप भी आंधी-पानी के भय से पीड़ित होकर अस आश्रम में आकर सो गए थे। अब आप धैर्य धारण करें तथा निर्भय एवं निश्चिंत होकर फल-मूल का आहार करते हुए यहाँ सुखपूर्वक निवास कीजिए।
बुध के वचनों से राजा इल को बड़ी सांत्वना मिली किंतु अपने सेवकों एवं सेना के नष्ट हो जाने पर उन्हें दुख हुआ। इसलिए राजा इन ने बुध से कहा- हे ब्राह्मण! मैं सेवकों से रहित हो जाने पर भी अपने राज्य का परित्याग नहीं करूंगा। अब क्षण भर भी मुझसे यहाँ नहीं रुका जाएगा। इसलिए मुझे आज्ञा दीजिए। मेर धर्मपरायण ज्येष्ठ पुत्र बड़े यशस्वी हैं। उनका नाम शतबिंदु है।
अब मैं वहाँ जाकर उनका अभिषेक करूंगा, तभी वे मेरा राज्य ग्रहण करेंगे। देश में जो मेरे सेवक ओर स्त्री, पुत्र आदि परिवार के लोग सुख से रह रहे हैं, उन्हें छोड़कर मैं यहाँ नहीं रहूंगा। अतः मुझसे ऐसी कोई अशुभ बात आप न कहें जिससे मुझे अपने स्वजनों को छोड़कर यहाँ ओर अधिक रहना पड़े।
राजा इल के इतना कहने पर राजा बुध ने उसे सांत्वना देते हुए कहा- कर्दम के महाबली पुत्र! तुम्हें संताप नहीं करना चाहिए! जब तुम एक वर्ष तक यहाँ निवास कर लोगे, तब मैं तुम्हारा हित साधन करूंगा।
पुण्यकर्मा बुध का यह वचन सुनकर उस ब्रह्मवादी महात्मा के कथनानुसार राजा ने वहाँ रहने का निश्चय किया। वे एक मास तक स्त्री होकर निरंतर बुध के साथ रमण करते और एक मास तक पुरुष होकर धर्मानुष्ठान में मन लगाते थे। तदनंतर नवें मास में इला ने सोमपुत्र बुध से एक पुत्र को जन्म दिया जो बड़ा ही तेजस्वी और बलवान था। उसका नाम था- पुरुरवा।
पुरुरवा की अंगकांति अपने महाबलि पिता बुध के समान थी। वह जन्म लेते ही उपनयन के योग्य अवस्था का बालक हो गया। इस प्रकार एक वर्ष स्त्री तथा एक वर्ष पुरुष रूप में उस वन में निवास करते हुए राजा इल को एक वर्ष पूरा हो गया।
तब महायशस्वी बुध ने परम उदार महात्मा संवर्त को बुलाया। भृगुपुत्र च्यवन मुनि, अरिष्टनेमि, प्रमोदन, मोदकर और दुर्वासा ऋषि को भी आमंत्रित किया। राजा बुध ने ऋषियों से कहा- ये महाबाहु राजा इल प्रजापति कर्दम के पुत्र हैं। इनकी जैसी स्थिति है, आप सब लोग जानते हैं। अतः इस विषय में कोई ऐसा उपाय कीजिए जिससे इनका कल्याण हो।
उसी समय महात्मा कर्दम भी वहीं पर आ पहुंचे। उनके साथ पुलस्त्य, क्रतु, वषट्कार तथा महातेजस्वी ओंकार भी उस आश्रम पर पधारे। समस्त ऋषियों ने एक दूसरे को देखकर प्रसन्नता व्यक्त की तथा वे महाबली राजा इल के कल्याण के लिए अपनी-अपनी राय देने लगे।
कर्दर्म ऋषि ने कहा- आप सब लोग ध्यान देकर मेरी बात सुनें जो इस राजा के लिए कल्याणकारिणी होगी। मैं भगवान शिव के अतिरिक्त और किसी को ऐसा नहीं देखता जो इस रोग की औषधि कर सके। अश्वमेध यज्ञ से बढ़कर और कोई यज्ञ नहीं है जो महादेव को प्रसन्न कर सके। इसलिए हम सब लोग राजा इल के हित के लिए उस दुष्कर यज्ञ का अनुष्ठान करें।’
समस्त ऋषि गण मुनि कर्दम की बात से सहमत हो गए। संवर्त के शिष्य राजर्षि मरुत्त ने उस यज्ञ का आयोजन किया। इस प्रकार बुध के आश्रम के निकट वह महान् यज्ञ सम्पन्न हुआ जिससे महादेव को बड़ा संतोष हुआ। भगवान महादेव ने इल तथा समस्त ऋषियों से कहा- हे द्विजश्रेष्ठगण! मैं आपके द्वारा किए गए इस अश्वमेध यज्ञ के अनुष्ठान से बहुत प्रसन्न हूँ। बताइये मैं बाल्हीक नरेश इल का कौनसा प्रिय कार्य करूं?
इस पर समस्त ऋषियों ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे कृपा करके राजा इल को सदा के लिए पुरुषत्व प्रदान कर दें। भगवान शिव ने ऋषियों की बात मान ली और राजा को सदा के लिए पुरुषत्व प्राप्त हो गया। यह देखकर समस्त ऋषिगण भी अत्यंत प्रसन्नता के साथ अपने आश्रमों को लौट गए।
राजा इल ने बाल्हीक देश को छोड़ दिया तथा गंगा एवं यमुना के संगम पर एक नया नगर बसाया जिसका नाम प्रतिष्ठानपुर रखा। यही प्रतिष्ठानपुर आगे चलकर प्रयागराज कहलाने लगा। समय आने पर राजा इल शरीर छोड़कर परम उत्तम लोक को प्राप्त हुए तथा इला एवं बुघ के पुत्र पुरुरवा ने प्रतिष्ठानपुर का राज्य प्राप्त किया।
अगली कथा में देखिए- भरत मुनि ने उर्वशी को श्राप देकर धरती पर भेज दिया!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता