Thursday, November 21, 2024
spot_img

28. राजा सुहेलदेव ने सालार मसूद गाजी को मार डाला!

फारसी ग्रंथ मिरात-ए-मसूदी में राजा सुहेल देव तथा गजनी के सेनापति सालार मसूद के बीच हुए युद्ध का उल्लेख किया गया है। यह ग्रंथ सत्रहवीं शताब्दी ईस्वी में मुगल बादशाह जहांगीर के समय अब्दुर्रहमान चिश्ती नामक एक दरबारी लेखक ने लिखा था। अर्थात् सुहेल देव तथा सालार मसूद के बीच हुए युद्ध के छः सौ साल बाद इस घटना का उल्लेख पहली बार हुआ। इसके अतिरिक्त आज तक कोई ऐसा समकालीन अथवा मध्यकालीन ग्रंथ नहीं मिला है जिसमें राजा सुहेलदेव तथा सालार मसूद के बीच हुए युद्ध का उल्लेख हुआ हो।

बहराइच क्षेत्र में लोक-मान्यता है कि बहराइच के राजा सुहेलदेव ने 11वीं शताब्दी के आरम्भ में बहराइच में हुए युद्ध में गजनवी के सेनापति सैयद सालार मसूद गाजी को मार डाला था। कहा नहीं जा सकता कि यह मान्यता विगत तीन सौ सालों में 17वीं सदी के ग्रंथ मिरात-ए-मसूदी के आधार पर बनी है अथवा यह पहले से ही प्रचलित है!

इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-

मिरात-ए-मसूदी के लेखक अब्दुर्रहमान चिश्ती के अनुसार ग्यारहवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में महमूद गजनवी का एक सेनापति जिसका नाम सैयद सालार साहू गाजी था, अपने 16 वर्षीय पुत्र सालार मसूद गाजी के साथ भारत पर आक्रमण करने आया। सैयद सालार साहू गाजी, गजनी के मरहूम शासक महमूद गजनवी का साला था। वह सिंधु नदी को पार करके मुल्तान, दिल्ली तथा मेरठ पर विजय प्राप्त करते हुए सतरिख पहुंचा। उसने सतरिख को भी जीत लिया जसे अब बाराबंकी कहा जाता है।

सैयद सालार साहू गाजी ने अपने पुत्र सालार मसूद गाजी को सतरिख में छोड़ा तथा स्वयं एक सेना लेकर बहराइच पर आक्रमण करने के लिए गया। सैयद सैफुद्दीन और मियाँ राजब को भी उसने अपने साथ लिया।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

बहराइच के राजा सुहेलदेव ने कुछ निकटवर्ती हिंदू राजाओं के साथ एक संघ बनाया ताकि मसूद की सेना का सामना किया जा सके। गजनी की सेना ने सैयद सालार साहू गाजी के नेतृत्व में हिन्दू सेना के संघ पर आक्रमण किया किंतु हिन्दुओं का संघ गजनी की सेना पर भारी पड़ गया तथा गजनी की सेना संकट में आ गई। इस पर सतरिख में रखी हुई मुस्लिम सेना को भी बुलाया गया। सैयद सालार साहू गाजी का 16 वर्षीय पुत्र सालार मसूद गाजी भी इस सेना के साथ था।

ई.1034 में राजा सुहेलदेव और गजनी की सेना में एक बार फिर भयानक संघर्ष हुआ जिसमें सैयद सालार साहू गाजी का पुत्र सालार मसूद गाजी मारा गया तथा उसकी सेना काट डाली गई। मसूद को बहराइच में दफना दिया गया।

जब ई.1351 में फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ दिल्ली सल्तनत का स्वामी हुआ तो उसके समय में बहराइच में सालार मसूद गाजी की दरगाह बनाई गई। कुछ विद्वानों का कहना है कि जिस स्थान पर दरगाह बनाई गई, उस स्थान पर पहले बालार्क ऋषि का आश्रम था।

वर्तमान समय में ग्यारहवीं, बारहवीं तथा तेरहवीं शताब्दी का एक भी हिन्दू अथवा मुस्लिम ग्रंथ नहीं मिलता है जिसमें बहराइच के इस युद्ध का उल्लेख हो। फिर भी 14वीं शताब्दी ईस्वी में फिरोज शाह तुगलक द्वारा बहराइच में मसूद की दरगाह बनवाए जाने से यह स्पष्ट हो जाता है कि उस काल में कोई पुस्तक उपलब्ध थी जिसमें बहराइच के इस युद्ध का तथा मसूद के मारे जाने का उल्लेख हुआ होगा।

चूंकि इस युद्ध में गजनी की सेना की हार हुई थी, इसलिए संभवतः उस काल के मुस्लिम लेखकों ने इस घटना का उल्लेख नहीं किया है। हिन्दू ग्रंथों में यदि इस घटना का उल्लेख हुआ होगा, तो वे ग्रंथ किसी काल में नष्ट हो गए होंगे। 

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि राजा सुहेलदेव का इतिहास एक अर्द्ध-पौराणिक कथा है। अर्थात् इस कथा में ऐतिहासिक तथ्यों के साथ एक प्राचीन पौराणिक कथा का मिश्रण किया गया है। पुराणों में श्रावस्ती के राजा सुहिृद देव का उल्लेख हुआ है। संभवतः इसी पौराणिक कथा को आधार बनाकर अब्दुर्रहमान चिश्ती ने राजा सुहेल देव का इतिहास लिखा। 

जब भारत में ब्रिटिश शासन हुआ तब अंग्रेज अधिकारियों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों के गजेटियर तैयार किए गए। एक ब्रिटिश गजेटियर में सुहेलदेव का उल्लेख हुआ है तथा उसे राजपूत राजा बताया गया है जिसने 21 राजाओं का संघ बनाकर मुस्लिम बादशाहों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

जब हम ई.1034 में गजनी के भारतीय अभियानों का अवलोकन करते हैं तो हम पाते हैं कि उस काल में गजनी के शासक का नाम भी मसूद था। ई.1034 के आसपास मसूद के सेनापति नियाल्तगीन ने बनारस पर अभियान किया था। अतः संभव है कि उसी दौरान एक मुस्लिम सेना बहराइच भी भेजी गई हो जिसे हिन्दुओं ने नष्ट कर दिया हो तथा सालार मसूद गाजी तथा उसका पुत्र मसूद भी उसी युद्ध में मारे गए हों।

ई.1940 में, बहराइच के एक स्थानीय स्कूली शिक्षक ने एक लंबी कविता की रचना की जिसमें राजा सुहेलदेव को जैन राजा और हिंदू संस्कृति के उद्धारक के रूप में चित्रित किया गया। संयोगवश यह कविता बहराइच अंचल बहुत लोकप्रिय हो गई। आर्य समाज, राम राज्य परिषद और हिंदू महासभा ने सुहेलदेव को हिंदूनायक के रूप में प्रदर्शित किया तथा अप्रैल 1950 में इन संगठनों ने राजा सुहेलदेव के सम्मान में एक मेला लगाने की योजना बनाई। इस पर सालार मसूद गाजी दरगाह समिति ने सरकार से मेले पर प्रतिबंध लगाने की अपील की। सरकार ने इस मेले पर प्रतिबंध लगा दिया किंतु हिन्दुओं द्वारा राजा सुहेलदेव के पक्ष में व्यापक आंदोलन चलाए जाने पर सरकार ने मेला लगाने की अनुमति दे दी।

हिन्दुओं ने बहराइच में 500 बीघा भूमि पर राजा सुहेलदेव का एक मंदिर बनाया। ई.1950 और 1960 के दशक में कुछ लोगों ने सुहेलदेव को पासी राजा बताना आरम्भ किया। पासी एक दलित समुदाय है। इसके बाद बहुत सी जातियां राजा सुहेल देव को अपनी-अपनी जाति का बताने लगीं।

वर्तमान समय में बहराइच क्षेत्र में विभिन्न जातीय-समूहों ने राजा सुहेलदेव को अपनी जाति का बताने के लिए आंदोलन चला रखे हैं। मिरात-ए-मसूदी के अनुसार सुहेलदेव ‘भर थारू’ जाति का राजा था। आधुनिक काल के भारतीय लेखकों ने उसे ‘भर राजपूत’, राजभर, थारू और जैन राजपूत के रूप में वर्णित किया है।

काल के प्रवाह में बह चुके राजा सुहेलदेव के वास्तविक इतिहास को ढूंढा जाना तो अब संभव नहीं है किंतु उपलब्ध तथ्यों के आधार पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि राजा सुहेलदेव ने अवश्य ही कुछ राजाओं का संघ बनाकर गजनी की सेनाओं का मुकाबला किया तथा युद्ध में सफलता प्राप्त की। ऐसे राष्ट्रनायक के इतिहास को किसी जातीय विवाद में घसीटकर उलझाने की बजाय उनके उज्जवल चरित्र को इतिहास में सम्मानजनक स्थान दिया जाना चाहिए।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source