यद्यपि मरहूम सुल्तान अल्लाउद्दीन के दोनों बड़े पुत्र अल्लाउद्दीन के समय से ही कारागार में बंद थे तथापि वे किसी भी समय मलिक काफूर के लिए संकट उत्पन्न कर सकते थे। इसलिए मलिक काफूर ने अल्लाउद्दीन खिलजी के दोनों बड़े शहजादों की आँखें निकलवा लीं।
मलिक काफूर ने मरहूम सुल्तान के तीसरे पुत्र मुबारक खाँ की भी आँखें निकलवाने का प्रयास किया परन्तु उसे इस कार्य में सफलता नहीं मिली क्योंकि तभी मलिका ए जहाँ ने मलिक काफूर के समक्ष प्रस्ताव भिजवाया कि मैं तुझसे विवाह करना चाहती हूँ।
मलिक काफूर ने बेगम मलिका-ए-जहाँ का यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया तथा मलिका से विवाह कर लिया। पाठकों को स्मरण होगा कि मलिक काफूर गुजरात से खरीदा गया एक हिन्दू गुलाम था जिसे किन्नर बनाकर तथा इस्लाम में परिवर्तित करके सुल्तान अल्लाउद्दीन की सेवा में पुरुष रखैल के रूप में प्रस्तुत किया गया था। इस प्रकार एक किन्नर जो जीवन भर अल्लाउद्दीन की पुरुष रखैल बनकर रहा था, उसने उसी की बेगम से विवाह कर लिया।
कुछ दिनों बाद मलिक काफूर ने मलिका की सारी सम्पत्ति छीन ली तथा मलिका को उसके पुत्र मुबारक खाँ के साथ ग्वालियर के जेल में बन्द कर दिया। इस प्रकार दुष्ट मलिक काफूर ने सल्तनत पर अपनी पकड़ को मजबूत बनाया परन्तु उसके ये समस्त प्रयत्न उस समय निष्फल सिद्ध हुए जब ग्वालियर के किले में बन्द शहजादा मुबारक खाँ कर्मचारियों को घूस देकर दुर्ग से निकल भागा और दिल्ली आ पहुँचा।
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शहजादे मुबारक खाँ ने कुछ अमीरों को अपनी ओर मिलाकर मलिक काफूर के विरुद्ध संगठन खड़ा किया तथा मलिक काफूर की हत्या कर दी। इस प्रकार दुष्ट मलिक काफूर के शासन का अंत हो गया।
आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव ने लिखा है कि मलिक काफूर ने कुछ पेशेवर हत्यारों को धन देकर मुबारक खाँ की हत्या करने के लिए नियुक्त किया। जब ये हत्यारे मुबारक खाँ के पास पहुंचे तो मुबारक खाँ ने उन हत्यारों को अधिक धन देकर खरीद लिया तथा उन्हीं से मलिक काफूर की हत्या करवा दी। अब मुबारक खाँ, अपने छोटे भाई सुल्तान शिहाबुद्दीन उमर का संरक्षक बन गया।
छः दिन बाद मुबारक खाँ ने पांच वर्षीय सुल्तान शिहाबुद्दीन उमर की आँखें निकलवा लीं और स्वयं कुतुबुद्दीन मुबारकशाह के नाम से तख्त पर बैठ गया। कुतुबुद्दीन मुबारकशाह ने तख्त पर बैठते ही मलिक काफूर के हत्यारों को पकड़ मंगवाया क्योंकि अब वे अपने लिए अधिक धन और सम्मान की मांग कर रहे थे। कुतुबुद्दीन ने उन हत्यारों पर मलिक काफूर की हत्या करने का आरोप लगाकर उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया।
मुबारक खाँ अनुभव-शून्य नवयुवक था। तख्त पर बैठने के समय उसकी आयु 17-18 वर्ष थी तथा उसने शासन में किसी भी पद का दायित्व नहीं संभाला था। दिल्ली के तख्त पर बैठने के उपरान्त उसने अपनी स्थिति को मजबूत बनाने के लिए सेना को सन्तुष्ट करने का प्रयत्न किया। उसने सैनिकों को छः महीने का वेतन पेशगी दे दिया।
मुबारकशाह ने अपने पिता अल्लाउद्दीन के समय के बनाए हुए समस्त कठोर नियमों को हटा दिया। इससे लोगों ने राहत की सांस ली तथा चारों ओर अच्छा वातावरण बना किंतु मुबारक खिलजी पुराने नियमों एवं व्यवस्थाओं के स्थान पर नये नियम अथवा नई व्यवस्थाएँ नहीं बना सका। इससे लोगों में उच्छृखंलता आ गई और उनका नैतिक स्तर बहुत गिर गया। साम्राज्य के विभिन्न भागों में उपद्रव तथा विद्रोह होने लगे।
मुबारक खाँ को सबसे पहले गुजरात में हुए विद्रोह का सामना करना पड़ा। अल्प खाँ की हत्या के बाद गुजरात में विद्रोह की अग्नि भड़क उठी थी। गुजरात ने दिल्ली से अपना सम्बन्ध विच्छेद कर लिया था। मुबारक खिलजी ने एक विशाल सेना भेजकर इस विद्रोह को शान्त किया और गुजरात में फिर से दिल्ली सल्तनत की सत्ता स्थापित की।
इन दिनों देवगिरि में यादव राजा हरपाल देव शासन कर रहा था। दिल्ली की गड़बड़ी से लाभ उठा कर उसने विद्रोह का झण्डा खड़ा कर दिया। इस पर मुबारक खाँ ने एक सेना लेकर देवगिरि पर अभियान किया। इस युद्ध में हरपाल देव परास्त हो गया। उसकी जिन्दा खाल खिंचवा ली गई और देवगिरि में एक मुसलमान शासक नियुक्त कर दिया गया।
जब सुल्तान मुबारक खाँ देवगिरि से दिल्ली लौट रहा था तब उसे असदुद्दीन के षड़यंत्र का सामना करना पड़ा जो अल्लाउद्दीन का भतीजा और मुबारक खाँ का चचेरा भाई था। असदुद्दीन ने मुबारक खाँ की हत्या करके तख्त हासिल करने का षड्यन्त्र रचा। मुबारक खाँ को इस षड्यन्त्र का पता लग गया। उसने असदुद्दीन तथा उसके साथियों की उनके सम्बन्धियों सहित हत्या करवा दी।
अब मुबारक खाँ ने खिज्र खाँ की ओर ध्यान दिया। खिज्र खाँ जिसे पहले ही अन्धा कर दिया गया था, इन दिनों अपनी स्त्री देवल देवी के साथ ग्वालियर के किले में बंद था। मुबारक खाँ ने खिज्र खाँ को आदेश भिजवाया कि वह देवल देवी को दिल्ली भेज दे। खिज्र खाँ ने इस आज्ञा का पालन नहीं किया। इसलिए उसकी भी हत्या करवा दी गई।
इसके बाद देवल देवी को दिल्ली लाया गया। मुबारक खाँ ने उसे अपने हरम में डाल लिया। पाठकों को स्मरण होगा कि अल्लाउद्दीन खिलजी ने अन्हिलवाड़ा के राजा कर्ण बघेला की रानी कमलावती को अपने हरम में डाल लिया था और उसकी पुत्री देवल देवी को खिज्र खाँ की बेगम बना दिया था। यह वही देवलदेवी थी जो मुबारक खाँ की बड़ी भाभी लगती थी किंतु अब मुबारक खाँ की बेगम बना दी गई। खिलजी राजवंश में नैतिकता का प्रश्न तो अल्लाउद्दीन खिलजी के समय से ही अप्रासंगिक हो चुका था।
आगे बढ़ने से पहले हमें इस बात पर अवश्य विचार करना चाहिए कि यह कैसा राजपरिवार था जिसने राज्य के वास्तविक उत्तराधिकारी को स्वयं ही बर्बाद करके अपने भविष्य को जलाकर राख कर दिया था!
होना तो यह चाहिए था कि अल्लाउद्दीन खिलजी अपने बड़े पुत्र खिज्र खाँ के जीवन की रक्षा करता तथा खिज्र खाँ के छोटे भाई, खिज्र खाँ को सुल्तान बनाकर राजपरिवार एवं सल्तनत को सुरक्षित बनाते किंतु खिज्र खाँ अपने ही बाप और भाइयों द्वारा छला गया और पूरी तरह बर्बाद किया गया। उसे पिता ने जेल में डाला, एक भाई ने आँखें फोड़ीं तथा दूसरे भाई ने उसकी हत्या करके उसकी पत्नी छीन ली।
ऐसी स्थिति में यह कहा जा सकता है कि अल्लाउद्दीन खिलजी तथा उसके परिवार को शत्रुओं की आवश्यकता नहीं थी, वे स्वयं ही अपने शत्रु सिद्ध हुए।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता