पानीपत के मैदान में मराठा सैनिकों का कत्लेआम हो जाने के कारण हजारों मराठा परिवार भरतपुर राज्य में घुस गए। जब इन्हें किसान लूटने लगे तो जाटों की राजमाता किशोरी देवी मराठा परिवारों की रक्षा के लिए आगे आई। जाटों की राजमाता ने कहा मराठा सैनिक मेरे बच्चे हैं इन्हें मत मारो!
जनवरी 1757 की कड़कड़ाती ठण्ड में पानीपत के मैदान से जान बचाकर भागे हुए मराठा सैनिकों ने भरतपुर राज्य का मार्ग पकड़ा। उनके पास न तो खाने को अनाज था और न पीने को पानी। उनके कपड़े फट गए थे, बहुतों के पैरों में तो जूते भी नहीं बचे थे। सर्द अंधेरी रातों में भीषण जाड़े एवं पाले में ठिठुरने के अतिरिक्त उनके पास और कोई उपाय नहीं था।
पानीपत से पूना एक हजार मील दूर था। इतनी दूर तक भूखे-नंगे और पैदल चलते हुए पूना पहुंच पाना एक असंभव सा काम था। फिर भी मनुष्य जीना चाहता है और जीने के लिए हर संभव संघर्ष करना चाहता है। वह अपने घर से कितनी भी दूर क्यों न हो, हर हाल में अपनी धरती और अपने लोगों के बीच पहुंचना चाहता है। हजारों मराठा सैनिक, तीर्थयात्री एवं अन्य स्त्री-पुरुष तथा बच्चे भी इसी भावना के वशीभूत होकर महाराष्ट्र की तरफ भागे जा रहे थे।
जो मराठे कुछ दिन पहले तक अपने समक्ष किसी को कुछ गिनते नहीं थे, उन भागते हुए मराठा सैनिकों के हथियार, उनकी जेबों में रखे हुए रुपए और वस्त्र, उत्तर भारत के निर्धन लोगों ने छीन लिये। मराठा सैनिकों द्वारा पूर्व के काल में उत्तर भारत के सैंकड़ों गांव लूटे गए थे इसलिए इस क्षेत्र के लोग मराठों को पसंद नहीं करते थे और उन पर दया करने को तैयार नहीं थे। ऐसी विकट स्थिति में भरतपुर के जाटों की राजमाता किशोरी देवी को मराठों पर बड़ी दया आई। राजमाता ने घोषणा की कि मराठा सैनिक मेरे बच्चे हैं, इन्हें नहीं मारें।
जाटों की राजमाता ने समस्त भारतीयों और भारतीय राजाओं का आह्वान किया कि वे मराठा सैनिकों के प्राणों की रक्षा करें और उन्हें भोजन तथा शरण प्रदान करें। जो दुर्दशा मराठों ने उत्तर भारत के किसानों, जागीरदारों एवं राजाओं की, की थी, ठीक उसी दुर्दशा में स्वयं मराठे भी जा पहुंचे। भूखे और नंगे मराठा सैनिक किसी तरह प्राण बचाकर, महाराजा सूरजमल के राज्य में प्रविष्ठ हुए। सूरजमल ने उनकी रक्षा के लिये अपनी सेना भेजी। उन्हें भोजन, वस्त्र और शरण प्रदान की।
जाटों की राजमाता किशोरी देवी ने देश की जनता का आह्वान किया कि वे भागते हुए मराठा सैनिकों को न लूटें। मराठा सैनिकों को मेरे बच्चे जानकर उनकी रक्षा करें। राजमाता किशोरी देवी ने मराठा शरणार्थियों के लिये भरतपुर में अपने भण्डार खोल दिए। उसने सात दिन तक चालीस हजार मराठों को भोजन करवाया। ब्राह्मणों को दूध, पेड़े और मिठाइयां दीं। महाराजा सूरजमल ने प्रत्येक मराठा सैनिक को एक रुपया, एक वस्त्र और एक सेर अन्न देकर अपनी सेना के संरक्षण में मराठों की सीमा में ग्वालियर भेज दिया।
जदुनाथ सरकार ने भरतपुर राज्य में पहुंचे शरणार्थियों की संख्या 50,000 तथा अंग्रेज पादरी फादर वैंदेल ने एक लाख बताई है। ग्राण्ट डफ ने मराठा शरणार्थियों के साथ सूरजमल के व्यवहार की चर्चा करते हुए लिखा है- ‘जो भी भगोड़े उसके राज्य में आए, उनके साथ सूरजमल ने अत्यन्त दयालुता का बर्ताव किया। मराठे उस अवसर पर किये गये जाटों के व्यवहार को आज भी कृतज्ञता तथा आदर के साथ याद करते हैं।’
नाना फड़नवीस के एक पत्र में लिखा है- ‘सूरजमल के व्यवहार से पेशवा के चित्त को बड़ी सान्त्वना मिली।’
फादर वैंदेल लिखता है- ‘जाटों के मन में मराठों के प्रति इतनी दया थी कि उन्होंने उनकी सहायता की जबकि जाटों की शक्ति इतनी अधिक थी कि यदि सूरजमल चाहता तो एक भी मराठा लौटकर दक्षिण नहीं जा सकता था।’
जाटों की राजमाता किशोरीदेवी का यह कार्य भारत के इतिहास में सदा के लिए अमर हो गया।
एक लाख मराठा सैनिकों के मारे जाने के कारण मराठों की सैन्य शक्ति का बहुत ह्रास हुआ। यदुनाथ सरकार ने लिखा है- ‘इस भयंकर संघर्ष में मराठों को बुरी तरह मार खानी पड़ी। सम्पूर्ण महाराष्ट्र में शायद ही कोई ऐसा सैनिक परिवार बचा हो, जिसने पानीपत के इस पवित्र संघर्ष में अपना एक सदस्य न खोया हो।’
एक लाख मराठों का कत्ल हो जाने पर पूरा महाराष्ट्र विधवा मराठनों के करुण क्रंदन से गूंज उठा। मराठों की इस भारी पराजय से पेशवा बालाजी बाजीराव का हृदय टूट गया और 23 जून 1761 को वह हृदयाघात से मर गया। उसका पुत्र विश्वासराव पहले ही मारा जा चुका था, ऐसी स्थिति में मराठा सरदारों पर नियंत्रण रखने वाला कोई नहीं रहा। वे अपने क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति के लिये एक-दूसरे के विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगे।
पानीपत के युद्ध के बाद मराठों की तो दुर्दशा हुई ही थी किंतु मुगलों के धूल-धूसरित होने का पता पूरे देश को लग गया। वैसे तो औरंगजेब के समय से ही मुगलों की सत्ता पतन की तरफ जा रही थी तथा इस समय अपने पतन के चरम पर थी किंतु पानीपत का युद्ध समाप्त हो जाने के बाद मुगल सत्ता का नैतिक पतन भी हो गया।
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विजय मद में चूर अब्दाली ने हाथी पर बैठकर दिल्ली में प्रवेश किया। उसने बादशाह शाहआलम (द्वितीय) को एक साधारण कोठरी में बंद कर दिया। अहमदशाह अब्दाली तथा उसके सैनिकों ने बादशाह शाहआलम (द्वितीय) तथा उसके अमीरों की औरतों और बेटियों को लाल किले में निर्वस्त्र करके दौड़ाया और उन पर दिन-दहाड़े बलात्कार किये। निकम्मा शाहआलम (द्वितीय), अब्दाली के विरुद्ध कुछ नहीं कर सका।
अहमदशाह अब्दाली ने ई.1757 से ई.1761 के बीच महाराजा सूरजमल से कई बार रुपयों की मांग की। अपने राज्य की रक्षा के लिये महाराजा ने अब्दाली को कभी दो करोड़़, कभी 65 लाख, कभी 10 लाख तो कभी 6 लाख तथा अन्य बड़ी-बड़ी राशि देने के वचन दिये किंतु महाराजा ने अब्दाली को फूटी कौड़ी नहीं दी।
पानीपत की लड़ाई जीतने के बाद अब्दाली ने सूरजमल से एक करोड़ रुपया मांगा। सूरजमल ने अब्दाली के आदमियों का स्वागत किया तथा उन्हें बड़े इनाम-इकरार देकर कहा कि उसे कुछ मुहलत दी जाये, रुपये पहुंच जायेंगे। अब्दाली के आदमियों को भरोसा हो गया कि इस बार सूरजमल अवश्य ही रुपये दे देगा। इसलिये उन्हांने अब्दाली को भी आश्वस्त करने का प्रयास किया किंतु अब्दाली का धैर्य जवाब दे गया। उसने सूरजमल पर आक्रमण करने की योजना बनाई किंतु वह कार्यान्वित नहीं हो सकी। इस पर अब्दाली अड़ गया कि इस बार तो वह कुछ लेकर ही मानेगा।
महाराजा ने कहा कि उसे 6 लाख रुपये दिये जायेंगे किंतु अभी हमारे पास केवल 1 लाख रुपये ही हैं। अब्दाली केवल एक लाख रुपये ही लेकर चलता बना। उसके बाद महाराजा ने उसे कभी कुछ नहीं दिया।
जब अहमदशाह अब्दाली, लाल किले का पूरा गर्व धूल में मिलाकर अफगानिस्तान लौट गया तब मुगल शाहजादियाँ पेट की भूख मिटाने के लिये दिल्ली की गलियों में फिरने लगीं। इस प्रकार पानीपत के तृतीय युद्ध के बाद मुगल सल्तनत का लगभग अन्त हो गया। मुगलों तथा मराठों के पराभव ने अँग्रेजों के लिये मैदान साफ कर दिया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता