बाबर ने भारत पर चार आक्रमण किये। उसका पहला आक्रमण ई.1519 में बाजोर[1] पर हुआ। बाजोर में उसने जमकर कत्ले आम किया ताकि भारत में उसकी क्रूरता के किस्से उसी प्रकार फैल जायें जैसे कि तैमूरलंग के बारे में फैल गये थे। इसके बाद उसने भेरा और खुशाब पर भी हमला किया। भारी तबाही मचाकर वह यहीं से काबुल लौट गया। उसी साल उसने खैबर दर्रे के रास्ते से भारत में प्रवेश कर पेशावर पर हमला किया किंतु बदख्शां में उपद्रवों की सूचना मिलने पर वह पुनः लौट गया।
ई.1520 में उसने पुनः बाजौर, भेरा, सियालकोट और सैयदपुर पर आक्रमण किया लेकिन कांधार में उपद्रव होने की सूचना पाकर वह फिर से अफगानिस्तान लौट गया। ई.1524 में उसने तीसरी बार भारत पर आक्रमण किया और लगभग पूरा पंजाब हथिया लिया। नवम्बर 1925 में वह आगे बढ़ा तथा बदख्शां से अपने बेटे हुमायूँ को भी बुला लिया। हुमायूँ बड़ा भारी लश्कर लेकर आया। यह समाचार पाकर दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी के लालची अमीर बाबर की तरफ जा मिले। बाबर की सेना में पचास हजार सैनिक हो गये।
दिल्ली का सुल्तान इब्राहीम लोदी एक लाख सैनिक और एक हजार हाथियों के साथ बाबर का मार्ग रोक कर पानीपत के मैदान में खड़ा हो गया। अपनी फौज से दुगुनी शत्रु फौज को देखकर बाबर की खूनी ताकत घबराई नहीं। वह दूने जोश से पानीपत की ओर बढ़ा। बाबर ने तुलुगमा पद्धति का प्रयोग किया जिसमें सेना के किसी भी अंग को युद्ध के मैदान से निकाल कर शत्रु सेना के दायें अथवा बायें हिस्से पर अचानक हमला बोला जा सकता है। जब इब्राहीम लोदी की सेना तीन ओर से घिर गयी तब बाबर की तोपों ने आग उगलना आरंभ कर दिया। इब्राहीम लोदी के बीस हजार सैनिक आधे दिन में ही धराशायी हो गये और शेष मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए।
ग्वालिअर का राजा वीर विक्रमाजीत अपने हिन्दू वीरों के साथ दिल्ली की मदद करने के लिये आया था। वह अंत तक मैदान में बना रहा और अपने साथियों सहित वीरगति को प्राप्त हुआ। इब्राहीम लोदी भी युद्ध के मैदान में ही मारा गया। दिल्ली पर मंगोलों का अधिकार हो गया। बाबर ने हुमायूँ को आगरा भेज दिया और स्वयं दिल्ली चला गया।
कुछ दिन बाद बाबर अपने बेटे हुमायूँ से मिलने आगरा गया। हुमायूँ ने बड़े जोर-शोर से बाप का स्वागत किया और लूट में प्राप्त हजारों कीमती पत्थरों के साथ कोहिनूर हीरा भी भेंट किया। बाबर ने इस करामाती हीरे के बड़े किस्से सुने थे। उसे अपने भाग्य पर विश्वास नहीं हुआ कि एक दिन वह खुद इस हीरे का मालिक होगा।
इस जीत के बाद हिन्दुस्तान में अब तक लूटी गयी बेशुमार दौलत का बंटवारा किया गया। फरगा़ना, खुरासान, काशगर और ईरान से आये सिपाहियों को सोने-चांदी के आभूषण और बर्तन दिये गये। कीमती का़लीन, हीरे, जवाहरात, दास-दासी भी सिपाहियों की हैसियत के अनुसार बांटे गये। मक्का, मदीना, समरकन्द और हिरात जैसे तीर्थस्थानों को अमूल्य भेंटें भेजी गयीं। काबुल के प्रत्येक स्त्री-पुरुष और बच्चे को चांदी का एक-एक सिक्का भिजवाया गया। प्रत्येक सैनिक और शिविर रक्षक से लेकर निकृष्ट से निकृष्ट व्यक्ति तक को लूट का भाग प्राप्त हुआ।
बाबर ने दिल्ली, आगरा और ग्वालियर से लूटी गयी अपार संपदा को इतने खुले हाथों से अपने साथियों में बांटा कि उसके अपने पास कुछ न रहा। उसके लोग उसे मजाक में कलंदर कहने लगे। यहाँ तक कि दुनिया का सबसे बड़ा हीरा कोहिनूर भी उसने अपने पास न रखकर हुमायूँ को दे दिया जो अब हुमायूँ की पगड़ी में जगमगा रहा था।
[1] यह पंजाब में था। अब पाकिस्तान में चला गया है।