लाल किले का खजाना मध्यकालीन संसार में सबसे बड़ा खजाना था। यह खजाना मुगल बादशाहों ने विगत ढाई शताब्दियों में भारत के राजाओं, जागीरदारों, मंदिरों, सेठों एवं किसानों से लूटकर एकत्रित किया था। इसी खजाने के कारण लाल किले में मानव इतिहास की सबसे बड़ी सशस्त्र डकैती हुई!
नादिरशाह के सैनिकों ने दिल्ली में तीस हजार मनुष्यों का कत्ल कर दिया। जब क़त्ल-ए-आम बंद हुआ तो लूटमार का बाज़ार खुल गया। नादिरशाह की सेनाओं को शहर के अलग-अलग हिस्सों में भेजा गया ताकि शहर का कोई हिस्सा लुटने से बच न जाए। जिन लोगों ने इस लूट का विरोध किया, उन्हें मृत्यु के हवाले कर दिया गया।
जब शहर में कत्ले-आम तथा लूट-मार के काम पूरे हो गए तो नादिरशाह ने शाही महल की ओर रुख किया। भारत में मुगलों के शासन को कुलीनों का शासन कहा जाता था। इन कुलीनों ने भारत की निर्धन जनता का रक्त निचोड़कर अपरिमित खजाना एकत्रित किया था।
लाल किले का खजाना य़द्यपि कल्पना से भी बाहर की चीज थी तथापि इस खजाने पर संक्षिप्त चर्चा करना समीचीन होगा। लाल किले का खजाना केवल मुगलों की लूट से ही तैयार नहीं हुआ था अपितु उसमें भारत के पूर्ववर्ती तुर्क लुटेरे शासकों के खजाने भी शामिल थे। जब ई.1526 में बाबर एवं हुमायूँ ने भारत पर आक्रमण किया था, तब बाबर ने दिल्ली के किलों में तथा हुमायूँ ने आगरा के लाल किले में स्थित शाही खजानों पर अधिकार कर लिया था।
इस प्रकार बाबर एवं हुमायूँ उस विशाल खजाने के अनायास ही मालिक बन गए थे जिसे ई.1193 से लेकर ई.1526 तक मुहम्मद गौरी के गुलामों, खिलजियों, तुगलकों, सैयदों एवं लोदियों द्वारा भारत की समृद्ध जनता, भारत के समृद्ध राजा एवं भारत के समृद्ध मंदिरों को लूटकर तुगलकाबाद, सीरी, सलीमगढ़, दीनपनाह एवं आगरे के लाल किले में जमा किया गया था।
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पूर्ववर्ती तुर्कों द्वारा 333 साल में जमा किया गया लाल किले का खजाना मुगलों का पेट नहीं भर सका। इसलिए अकबर, जहांगीर तथा शाहजहाँ ने अनेक हिन्दू राजवंशों के शताब्दियों पुराने खजाने छीनकर आगरा के लाल किले में जमा कर लिए। इस खजाने से भी मुगलों का पेट नहीं भरा।
इसलिए मुगलों ने ई.1526 से ई.1739 तक के काल में गंगा-यमुना के दो-आब से लेकर, रावी, चिनाव, झेलम सतलुज और व्यास नदियों में प्रवाहित होने वाले अमृत से सम्पन्न हरे-भरे पंजाब, मालवा और दक्कन के पठार तथा कृष्णा और कावेरी के दक्किनी दो-आब के किसानों की खून-पसीने की कमाई को चूसकर अपने महलों में भर लिया। बंगाल से लेकर असम तक की धरती हरा सोना उगलती थी, मुगलों ने इसे भी लूट लिया।
लाल किले का खजाना संसार भर के महंगे रत्नों से भरा हुआ था। इन्हीं रत्नों का उपयोग करके शाहजहाँ ने संसार का सबसे महंगा राजसिंहासन बनवाया था जिसे तख्त-ए-ताउस के नाम से जाना जाता था। तख्ते ताउस 3.5 गज़ लम्बा, 2 गज़ चौड़ा और 5 गज़ ऊँचा था जो कि सम्पूर्णतः ठोस सोने से बना हुआ था और उसमें 454 सेर भार के बहुमूल्य रत्न जड़े हुए थे। इन रत्नों की मीनाकरी एवं पच्चीकारी में कई सौ कारीगरों ने 7 वर्ष तक निरंतर कार्य किया था। सत्रहवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में तख्ते ताउस की लागत 2 करोड़ 14 लाख 50 हज़ार रुपये आई थी।
जब हुमायूँ ने आगरा के शाही खजाने पर अधिकार किया था तो उसे आगरा से जान बचाकर भाग रहे ग्वालियर के राजा विक्रमादित्य के परिवार से अपार सोने-चांदी एवं बहुमूल्य रत्नों के साथ-साथ कोहिनूर हीरा भी प्राप्त हुआ था जिसका मूल्य संसार के ढाई दिन के भोजन के व्यय के बराबार आंका जाता था। यह तख्ते ताउस और कोहिनूर अब भी मुहम्मदशाह रंगीला के पास थे। औरंगजेब के समय में कृषि पर वसूले जाने वाले बेतहाशा लगान के साथ-साथ हिन्दुओं से लिए जाने वाले जजिया एवं तीर्थकर से मुगल बादशाहों का खजाना दिन-दूनी रात-चौगुनी गति से भरा था।
उस समय मालगुजारी से मुगल सल्तनत को 33 करोड़ 25 लाख रुपए मिलते थे। इस आय में जकात और जजिया से मिलने वाली राशि शामिल नहीं थी।
इस प्रकार भारत के मुगल बादशाहों का खजाना संसार के समस्त बादशाहों, सुल्तानों, सम्राटों और एम्पररों के खजानों से बड़ा था। जब नादिरशाह के सिपाही मुहम्मदशाह रंगीला के खजाने को लूटने पहुंचे तो उनकी आंखें इस अकूत सम्पदा को देखकर फटी की फटी रह गईं। इस खजाने का विवरण नादिरशाह के दरबारी इतिहासकार मिर्ज़ा महदी अस्राबादी ने इस प्रकार किया है-
‘चंद दिनों के अंदर-अंदर मज़दूरों को शाही खजाना खाली करने का हुक्म दिया गया। यहाँ मोतियों और मूंगों के समंदर थे, हीरे, जवाहरात, सोने चांदी के खदाने थीं, जो उन्होंने कभी ख्वाब में भी नहीं देखीं थीं।
हमारे दिल्ली में क़याम के दौरान, शाही खजाने से करोड़ों रुपए नादिरशाह के खजाने में भेजे गए। दरबार के उमराओं, नवाबों और राजाओं ने कई करोड़ रुपए की दौलत सोने और जवाहरात की शक्ल में बतौर फिरौती दिए।
सैकड़ों मज़दूर लगभग एक महीने तक सोने चांदी के आभूषणों, बर्तनों और दूसरे सामान को पिघलाकर उनकी ईंटें ढालते रहे ताकि उन्हें ईरान तक ढोकर ले जाने में आसानी हो।’
पाकिस्तानी व्यंग्य लेखक शफ़ीक़ुर्रहमान ने ‘तुज़ुक-ए-नादरी’ में लिखा है- ‘हमने कृपा की प्रतीक्षा कर रहे मुहम्मदशाह को इजाज़त दे दी कि अगर उसकी नज़र में कोई ऐसी चीज़ है जिसको हम बतौर तोहफ़ा ले जा सकते हों और ग़लती से याद न रही हो तो बेशक़ साथ बांध दें।
लाल किले के लोग दहाड़ें मार-मार कर रो रहे थे और बार-बार कह रहे थे कि हमारे बग़ैर लाल क़िला खाली-खाली सा लगेगा। ये हक़ीक़त थी कि लाल किला हमें भी खाली-खाली लगने लगा था।’
नादिरशाह ने मुगलों के कोष से 70 करोड़ रुपये नगद, 50 करोड़ रुपये के स्वर्णाभूषण एवं जहवाहरात, रत्न जटित तख्ते ताऊस, 7 हजार घोड़े, दस हजार ऊँट, 100 हाथी तथा हजारों गुलाम लूट लिए। यदि गुलामों को छोड़ दिया जाए तो शेष सम्पत्ति की कीमत आज के मूल्यों पर दस लाख पचास हज़ार करोड़ रुपए से अधिक होती है। यह मानवीय इतिहास की सबसे बड़ी सशस्त्र डकैती थी।
नादिरशाह ने न केवल लाल किले का खजाना झाड़ू फेरकर साफ कर दिया अपितु सल्तनत के समस्त वजीरों, अमीरों एवं सेठ साहूकारों के घरों को लूटकर उन्हें कंगाल बना दिया। दिल्ली में ऐसा कोई आदमी नहीं बचा था जिसकी जेब न टटोली गई हो।
दिल्ली के साथ-साथ थानेश्वर, पानीपत और सोनीपत आदि समृद्ध नगर लुट चुके थे किंतु मुहम्मदशाह के पास अभी भी एक ऐसी चीज थी जिस पर नादिरशाह की दृष्टि नहीं पड़ी थी। वह थी। वह नायाब चीज थी- कोहिनूर हीरा। बादशाह ने कोहीनूर को अपनी पगड़ी में छिपा लिया ताकि नादिरशाह यदि खजाने में झाड़ू लगवा दे तो भी मुहम्मदशाह के पास इतना धन बच जाए कि उससे वह मुगलिया सल्तनत को बिखरने से बचा सके।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता