Sunday, December 22, 2024
spot_img

19. ययाति की पुत्री माधवी ने चार पुरुषों से चार पुत्रों को जन्म दिया!

हमने पिछली कथा में चर्चा की थी कि राजा ययाति ने अपनी पुत्री माधवी गालव मुनि को सौंप दी ताकि गालव मुनि माधवी की सहायता से आठ सौ श्वेत अश्वों का प्रबंध कर सकें जिनका दायां कान काला हो।

गालवमुनि ने माधवी को प्राप्त करके ययाति से कहा- ‘ठीक है, राजन्! मेरा मनोरथ पूर्ण होने के पश्चात् मैं आपसे फिर मिलूँगा।’ इतना कहकर गालव मुनि राजकन्या माधवी को अपने साथ लेकर चल दिए। गरुड़जी पुनः भगवान श्रीहरि विष्णु की सेवा में चले गए।

 गालव मुनि माधवी को लेकर अयोध्या के राजा हर्यश्व के पास पहुँचे तथा उनसे बोले- ‘राजन्! यह देवकन्या अपनी संतानों द्वारा वंश वृद्धि करनेवाली है। आप चाहें तो शुल्क देकर निश्चित अवधि तक इसे अपनी पत्नी बनाकर रख सकते हैं।’

राजा हर्यश्व ने कहा- ‘हे द्विजश्रेष्ठ! आपकी यह कन्या कई शुभ लक्षणों से युक्त और कई चक्रवर्ती पुत्रों को जन्म देने में समर्थ है। अतः उसके लिए आप समुचित शुल्क बताइए?’

 गालव मुनि बोले- ‘राजन्! इसके शुल्क के रूप में मुझे आठ सौ चंद्रमा के समान श्वेत वर्ण वाले अश्व चाहिए जिनके दाएं कान काले हों।’ यह शुल्क चुका देने पर मेरी यह शुभ लक्षणाकन्या आपके तेजस्वी पुत्रों की जननी होगी।’

पूरे आलेख के लिए देखें, यह वी-ब्लाॅग-

 यह सुनकर काम से मोहित हुए राजा हर्यश्व ने अत्यंत दीन स्वर में कहा- ‘हे ब्रह्मन्! आप जिन अश्वों की बात कर रहे हैं, मेरे पास उस तरह के केवल दो सौ अश्व हैं। आप चाहें तो दो सौ घोड़े ले लें तथा उनके बदले में, मैं इस कन्या से केवल एक संतान उत्पन्न करूंगा। अतः आप मेरे इस शुभ मनोरथ को पूर्ण करें।’

राजा की बात सुनकर गालव मुनि चिंतित हो गए किंतु माधवी ने कहा- ‘हे मुने! मुझे एक वेदवादी ब्राह्मण का वरदान है कि तुम प्रत्येक प्रसव के अंत में फिर से कन्या हो जाओगी।’ अतः आप दो सौ यथेष्ठ घोड़ों के बदले में मुझे राजा को सौंप सकते है। इस तरह चार राजाओं से दो सौ-दो सौ घोड़े लेकर आप अपनी दक्षिणा जुटा सकते हैं। इससे मेरे रूप सौन्दर्य पर कोई अंतर नहीं पड़ने वाला, अतः आप निश्चिन्त रहें।’

To purchase this book, please click on photo.

कन्या के ऐसा कहने पर गालव मुनि ने राजा हर्यश्व से कहा- ‘हे राजन! आप यथेष्ठ शुल्क का एक चौथाई भाग देकर इस कन्या को ग्रहण करें और इससे केवल एक ही संतान उत्पन्न करें। मैं समय आने पर माधवी को आपसे पुनः प्राप्त कर लूंगा।’

इस तरह उस कन्या ने अयोध्या के राजा हर्यश्व के लिए एक पुत्र को जन्म दिया जो वसुमना नाम से विख्यात हुआ।

नियत समय पर गालव मुनि पुनः अयोध्या पहुँचे। उन्होंने 200 घोड़े अमानत के रूप में राजा हर्यश्व के पास ही छोड़ दिए तथा माधवी को लेकर काशी नरेश दिवोदास के पास पहुँचे। उनके समक्ष भी गालव ने वही प्रस्ताव रखा जो उन्होंने अयोध्या नरेश के समक्ष रखा था। काशीराज के पास भी उस प्रकार के केवल 200 अश्व थे। गालव मुनि ने काशी नरेश से कहा- ‘आप भी इस देवकन्या से केवल एक संतान उत्पन्न करें। मैं समय अपने पर इस कन्या को दो दौ श्वेतवर्णी एवं श्यामकर्णी अश्वों के साथ ले जाउंगा।’

राजा दिवोदास से माधवी ने प्रतर्दन नामक पुत्र उत्पन्न किया। इसके पश्चात् माधवी पुनः गालव मुनि को मिल गई ।

अब गालव मुनि माधवी को लेकर भोज नगरी के राजा उशीनर के पास पहुंचे और उनके सामने भी अपना मनोरथ रखा। राजा उशीनर के पास भी इस प्रकार के केवल दो सौ घोड़े ही थे। अतः गालव ने माधवी को एक संतान उत्पन्न करने के लिए राजा उशीनर के पास छोड़ दिया। माधवी ने राजा उशीनर से सूर्य के समान तेजस्वी बालक को जन्म दिया जो शिबि के नाम से विख्यात हुआ। नियत अवधि के बाद गालव मुनि माधवी को लेने पहुँच गए। तभी राजा के दरबार में उन्हें पक्षिराज गरुड़ मिल गए।

गरुड़जी ने कहा- ‘ब्रह्मन्! बड़े सौभाग्य की बात है कि आपका मनोरथ पूरा हो गया।’

गालव मुनि बोले- ‘पक्षिराज! अभी तो दक्षिणा का एक चौथाई भाग जुटाना शेष है।’

गरुड़जी ने कहा- ‘अब इसके लिए तुम्हारा प्रयत्न व्यर्थ होगा, क्योंकि अब ऐसे अश्व किसी के पास नहीं है।’ इस पर गालव मुनि छः सौ अश्वों तथा माधवी को लेकर महर्षि विश्वामित्र के पास पहुंचे।

गालव मुनि ने उनसे कहा- ‘गुरुदेव! आपकी इच्छानुसार छः सौ श्ेवत वर्णी अश्व आपकी सेवा में प्रस्तुत हैं जिनका दायां कान श्यामवर्णी है। चूंकि मुझे तीन राजाओं ने माधवी से एक-एक संतान उत्पन्न करने के बदले में दो सौ – दो सौ घोड़े दिए हैं इसलिए अब मैं माधवी आपको सौंपता हूँ। आप भी इससे एक संतान उत्पन्न कर लें। इसके बाद माधवी पुनः मुझे लौटा दें।’

विश्वामित्र ने कहा- ‘गालव! तुम इसे पहले ही ले आते तो मुझे इससे चार वंश प्रवर्तक पुत्र प्राप्त हो जाते। अब मैं इस कन्या को ग्रहण करता हूँ। घोड़े मेरे आश्रम में छोड़ दो।’

माधवी ने विश्वामित्र से अष्टक नामक पुत्र को जन्म दिया। जब अष्टक बड़ा हुआ तब विश्वामित्र ने अपना राज्य तथा छः सौ श्वेतवर्णी एवं श्यामकर्णी अश्व अष्टक को सौंप दिए तथा स्वयं तपस्या करने के लिए तपोवन में चले गए।

गालव मुनि ने विश्वामित्र के ऋण से उऋण होकर माधवी को पुनः उसके पिता राजा ययाति को सौंप दिया तथा स्वयं तपस्या करने वन में चले गए ।

माधवी के पुनः लौट आने पर राजा ययाति ने अपनी पुत्री माधवी का विवाह करना चाहा किंतु माधवी ने विवाह करने से मना कर दिया तथा आजीवन अविवाहित रहने का प्रण लेकर वह भी तपस्या करने के लिए गहन वनों में चली गई!

हम पहले ही कह चुके हैं कि यह कथा किसी भी पुराण में नहीं मिलती है। ऐसा प्रतीत होता है कि हिन्दू धर्म को बदनाम करने की नीयत से इस कथा को लिखा गया है ताकि हिन्दू राजाओं एवं ऋषियों पर यह आक्षेप लगाया जा सके कि वे राजकन्याओं से वेश्यावृत्ति करवाते थे।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source