सोमनाथ ने हिन्दू सेनाओं एवं हिन्दू प्रजा ने तीन दिन तक महमूद गजनवी से युद्ध किया तथा उसे मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया किंतु जब सोमनाथ में महमूद का प्रतिरोध करने के लिए कोई भी जीवित नहीं बचा तो 8 जनवरी 1026 की रात्रि में महमूद ने सोमनाथ महालय के गर्भगृह में प्रवेश किया। उसने देखा कि सम्पूर्ण महालय सागवान की लकड़ी के 56 खंभों पर स्थित है जिन पर रांगा चढ़ाकर उनमें हीरे-जवाहरात जड़े गए हैं। कुछ लेखकों ने इसे सीसा बताया है जबकि सीसे ओर रांगे में अंतर होता है। रांगा टिन धातु से बनता है तथा जबकि सीसा लैड धातु से बनता है। किसी भी बर्तन अथवा धातु पर टिन से कलई की जाती है तथा लकड़ी के खम्भों पर उसकी चद्दरें चढ़ाई जाती हैं, जबकि लैड में यह विशेषता नहीं होती।
तत्कालीन मुस्लिम लेखकों द्वारा किए गए वर्णन के अनुसार सोमनाथ महालय के काष्ठ-स्तम्भों से बने मण्डप के मध्य में पत्थर का तराशी हुई 5 गज की प्रतिमा लगी हुई थी। वस्तुतः यह प्रतिमा नहीं थी शिवलिंग था किंतु गजनी के मुस्लिम लेखकों ने इसे मूर्ति समझ लिया।
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मुस्लिम लेखकों के अनुसार यह हवा में अधर था। इसे किसी भी तरह से कोई सहारा नहीं दिया गया था। कुछ लेखकों ने इस शिवलिंग की ऊंचाई पांच गज अर्थात् 15 फुट बताई है जो कि सही प्रतीत नहीं होती क्योंकि हिन्दुओं में शिवलिंग के ऊपर जलधार एवं दुग्धाभिषेक करने तथा उस पर चंदन का लेप करने की परम्परा है, इतने ऊंचे शिवलिंग पर जलाभिषेक एवं चंदन का लेप करना संभव नहीं है। अतः पंद्रह फुट का शिवलिंग बनाया जाना कठिन है। सोमनाथ का ज्योतिर्लिंग ईसा से भी सैंकड़ों साल पुराना था। उस काल में इतने बड़े शिवलिंग किसी भी अन्य शिवालय में देखने को नहीं मिले हैं। अतः शिवलिंग इतना ऊंचा नहीं रहा होगा।
महमूद गजनवी को गर्भगृह के भीतर आया देखकर शिवालय के कुछ प्रमुख पुजारी ज्योतिर्लिंग से लिपट गए। महमूद ने अपने हाथ में पकड़ी हुई लोहे की एक गुर्ज से ज्योतिर्लिंग पर भयानक प्रहार किया जिससे हजारों साल पुराने ज्योतिर्लिंग के टुकड़े बिखर गए। शिवलिंग के साथ ही उन पुजारियों के मस्तक भी बिखरे गए जो उन्होंने अपने अराध्य देव के ऊपर टिका दिए थे।
कुछ लेखकों ने लिखा है कि मंदिर के पुजारियों ने महमूद गजनवी के दामाद ख्वाजा हसन मेंहदी से कहा कि यदि महमूद इस शिवलिंग को भंग न करे तो शिवलिंग के भार से दो गुना सोना महमूद को देंगे। महमूूद ने उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया किंतु जब महमूद को सोना मिल गया तो उसने यह कहकर शिवलिंग भंग कर दिया कि मैं बुतशिकन हूँ, बुतपरस्त नहीं हूँ, न ही बुतों का सौदा करता हूँ।
कुछ लेखकों के अनुसार उस विशाल शिवलिंग के भीतर ढेरों कीमती जवाहरात निकले जो पुजारियों द्वारा दिये गए सोने से भी कई गुना अधिक मूल्यवान थे। यह बात भी सही प्रतीत नहीं होती कि शिवलिंग के भीतर से रत्न निकले होंगे क्योंकि भारत में कहीं भी भीतर से खोखले शिवलिंग नहीं मिलते। वे ठोस पत्थर से बने हुए होते हैं।
जामे उलहक्ययात व तारीख ए फरीश्ता़ में लिखा है कि सोमनाथ का शिवलिंग लोहे से बना हुआ था और मंदिर की दीवारों तथा छत में चुबंक लगाकर उसे अधर खड़ा किया गया था। जब मंदिर की एक तरफ की दीवार के पत्थर हटाए गए तो शिवलिंग एक ओर को झुक गया। यह बात सही प्रतीत नहीं होती कि शिवलिंग लोहे का बना हुआ था और चुम्बक के सहारे अधर किया गया था। भारत में लोहे के शिवलिंग नहीं बनाए जाते। वे प्रायः कीमती और मजबूत पत्थर से बनाए जाते हैं जिनमें कसौटी तथा ग्रेनाइट जैसे कठोर पत्थर प्रमुख हैं। ये पत्थर सैंकड़ों साल तक जलाभिषेक के बाद भी बहुत कम गति से घिसते हैं। अतः सोमनाथ का शिवलिंग भी किसी मूल्यवान पत्थर से बना हुआ होगा तथा पत्थरों को चुम्बक के सहारे हवा में अधर नहीं किया जा सकता।
चूंकि मुस्लिम लेखकों ने शिवलिंग के हवा में अधर होने का उल्लेख अत्यधिक विश्वास के साथ किया है, इसलिए यह मानने में कोई आपत्ति नहीं है कि शिवलिंग हवा में अधर रहा होगा किंतु उसे अधर करने के लिए किसी अन्य विधि का सहारा लिया गया होगा। जहाँ तक शिवलिंग के चारों ओर की दीवारों के पत्थर निकालने से शिवलिंग के झुकने की बात है, वह भी सही जान पड़ती है क्योंकि शिवलिंग के अधर में संतुलन का आधार वही पत्थर रहे होंगे। शिवलिंग के भंग होने के बाद जिन रत्नों के निकलने की बात कही गई है, वे रत्न या तो शिवलिंग के नीचे से निकले होंगे या मण्डप की दीवारों के पत्थर हटाने से मिले होंगे।
कहा जाता है कि शिवलिंग के टुकड़ों में से चार टुकड़े गजनी ले जाए गए जिनमें से दो टुकड़े मदीना भेज दिए गए। महालय के शिखर पर लहरा रहा भगवा झण्डा तोड़कर फैंक दिया गया तथा उसके स्थान पर हरा झण्डा लगा दिया गया। शिवलिंग भंग करने के बाद महमूद ने मंदिर लूटने का आदेश दिया। मंदिर परिसर में बने देवालयों में प्रतिष्ठित सोने-चांदी की हजारों छोटी-बड़ी मूर्तियां जिनके आगे रत्नजड़ित पर्दे लटके हुए थे, अनगिनत स्वर्ण पात्र, देवताओं के आभूषण, मंदिर के द्वार पर लगे चंदन के दरवाजे, रत्नजटित झाड़-फानूस आदि प्रत्येक मूल्यवान चीज लूट ली गई। महमूद की सेना ने इस सामग्री को ऊंटों एवं छकड़ों पर लाद लिया।
सोमनाथ का स्वर्ग भंग हो गया। महमूद गजनवी का यह अभीष्ट तो सिद्ध हुआ किंतु मंदिर की हजारों देवदासियां महमूद के सोमनाथ पहुंचने से पहले ही महालय छोड़कर चली गई थीं जिसके कारण उन्हें लूटने की अभिलाषा महमूद के मन में ही रह गई। फिर भी कुछ देवदासियां महमूद के हाथ लगीं जिन्हें महमूद ने अपने साथ ले लिया। महमूद अधिक समय तक सोमनाथ में नहीं रुक सकता था अन्यथा गर्मियां आरम्भ हो जातीं और उसके लिए मरुस्थल को लांघकर गजनी तक पहुंच पाना असंभव हो जाता। इस बात का भी पूरा खतरा था कि भारत के अन्य हिन्दू राजा अपनी सेनाएं लेकर सोमनाथ आ पहुंचते। इसलिए महमूद ने तुरंत ही गजनी वापसी का कार्यक्रम बनाया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता