Thursday, November 21, 2024
spot_img

17. महमूद ने थार के रेगिस्तान में बने पत्थरों के आश्चर्यों को तोड़ दिया!

जहरीले सांप-बिच्छुओं से भरे थार मरुस्थल में महमूद गजनवी अपने तीस हजार ऊंट सवारों के साथ तेजी से चला जा रहा था। कुछ दिनों की यात्रा के बाद उसे लोद्रवा का दुर्ग दिखाई दिया। यह पीले पत्थरों से निर्मित दुर्ग था जो तेज धूप में ऐसे चमकता था मानो पूरा दुर्ग सोने की भारी शिलाओं से बनाया गया हो। रेत के सागर में पत्थरों का यह मजबूत किंतु छोटा दुर्ग किसी आश्चर्य से कम नहीं था। इन दिनों भाटी बच्छराज लोद्रवा का शासक था। जब बच्छराज को ज्ञात हुआ कि महमूद तीस हजार ऊंटों को लेकर आ रहा है तो बच्छराज अपने दुर्ग में युद्ध की तैयारी करके बैठ गया।

यद्यपि बच्छराज के पास सैनिक-शक्ति बहुत कम थी किंतु बच्छराज का दमन किए बिना महमूद आगे नहीं बढ़ सकता था क्योंकि यदि वह ऐसा करता तो वह आगे से सौराष्ट्र की और पीछे से लोद्रवा की सेनाओं द्वारा घेर लिया जाता। कुछ दिनों की घेराबंदी एवं संक्षिप्त युद्ध के बाद लोद्रवा का दुर्ग भंग कर दिया गया। भटनेर से आकर लोद्रवा में बसे यदुवंशी भाटियों ने थार की प्यासी धरती पर अंतिम सांसें लीं।

इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-

यह इतिहास की कैसी विडम्बना थी कि एक दिन इन्हीं भाटियों के किसी पूर्वज गजसिंह ने गजनी का दुर्ग बनाया था और आज गजनी से आया एक आक्रांता भाटियों के दुर्ग उजाड़ रहा था। महमूद ने लोद्रवा नगर में पीले पत्थरों से निर्मित कई कलात्मक मंदिर देखे जो दूर से देखने पर सोने से बने हुए लगते थे। महमूद ने इन मंदिरों को भी तोड़ दिया और देवमूर्तियों को नष्ट कर दिया। लोद्रवा के इन मंदिरों एवं दुर्ग के खण्डहर आज भी राजस्थान के जैसलमेर जिले में देखे जा सकते हैं।

लोद्रवा से लगभग 100 मील दक्षिण की ओर चलने पर महमूद की सेना को पहाड़ियों का एक झुरमुट दिखाई दिया। प्रकृति भी जाने कैसे-कैसे चमतकार करती है। इस विकट रेगिस्तान के बीच पहाड़ियों का यह झुरमुट किसी चमत्कार से कम नहीं था। इन्हीं पहाड़ियों की तलहटी में एक विशाल सरोवर भी था जिसमें वर्षा का निर्मल जल भरा हुआ था। महमूद तथा उसकी सेना ने इन्हीं पहाड़ियों के बीच एक विचित्र नगर देखा। इस नगर का नाम किरातकूप था और इस नगर में घरों से अधिक देवालय बने हुए थे।

To purchase this book, please click on photo.

किरातकूप के देवालय इतने सुंदर थे जिन्हें देखकर यह कहने को मन होता था कि इन्हें इंसानी हाथों ने नहीं अपितु देवताओं ने बनाया होगा। पीले पत्थरों से बने इन गगनचुम्बी भव्य देवालयों का समूचा नगर देखकर गजनी की सेना भौंचक्की रह गई। इस स्थान पर पीले पत्थरों के चौबीस बड़े मंदिर थे जिनके भीतर सैंकड़ों देवालय बने हुए थे। इन देवालयों में प्रतिष्ठित हजारों प्रतिमाएं इतनी सजीव दिखाई देती थीं मानो स्वयं देवी-देवता ही मंदिरों में आकर बैठ गए हों। इस नगर पर राजपूतों की परमार शाखा शासन करती थी। ये मंदिर भी इन्हीं परमार शासकों ने बनवाए थे।

इस मंदिर समूह के छः मंदिरों के खण्डहर आज भी देखे जा सकते हैं। इनमें से चार मंदिर भगवान शिव को, एक मंदिर भगवान विष्णु को तथा एक मंदिर शेषावतार को समर्पित है। इनमें सबसे विशाल मंदिर भगवान सोमेश्वर का है किंतु सबसे पुराना मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। महमूद की सेना ने इस मंदिर-समूह को भंग कर दिया। देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के हाथ-पैर, मुंह, नाक, आँख आदि तोड़ दिए गए। प्रमुख देवालयों के शिखरों को ढहा दिया। पूरे मंदिर-समूह का इतना बुरा हाल किया गया कि कल तक जो मंदिर स्वर्ग से उतरी हुई कौतुकी-रचनाएं लगते थे, अब पत्थरों के ढेर से अधिक कुछ नहीं थे।

किरातकूप को अब किराडू कहा जाता है और यह राजस्थान के बाड़मेर जिले में स्थित है। किरातकूप के मंदिरों को भंग करके महमूद की सेना आगे बढ़ी और राष्ट्रकूटों की प्राचीन राजधानी हस्तिकुण्डी में जा पहुंची। मरुस्थल का दूसरा छोर आ चुका था। हरियाली फिर से मिलने लगी थी। तालाबों की कोई कमी नहीं रह गई थी। ऊंटों को हरी घास फिर से मिलने लगी थी। गांवों, घरों और खेतों में मनुष्य दिखाई देने लगे थे। महमूद ने हस्तिकुण्डी में भी कुछ भव्य मंदिरों को देखा और उन्हें भी उसी गति को पहुंचा दिया जिस गति को वह किराडू के मंदिरों को पहुंचा कर आया था।

इस नगरी के समस्त राष्ट्रकूट देश की रक्षा के लिए तिल-तिल कर कट मरे। उन्हें धरती पर सुलाकर ही महमूद यहाँ से आगे बढ़ सका। ध्वंस, लूट, आग, हत्या, मरते हुए मनुष्यों के चीत्कार यही सब तो महमूद को आनंद देते थे।

पाठकों की सुविधा के लिए बताना समीचीन होगा कि यही राष्ट्रकूट मारवाड़ के राठौड़ों के पूर्वज थे। बहुत से लोगों का मानना है कि मारवाड़ के राठौड़ कन्नौज से आए थे किंतु सच्चाई यही है कि हस्तिकुण्डी के राष्ट्रकूट ही मारवाड़ के राठौड़ों के पूर्वज थे। हालांकि हस्तिकुण्डी मिट गया किंतु इन्हीं राठौड़ों ने आगे चलकर देश की बहुत बड़ी सेवा की।

हस्तिकुण्डी के विध्वंस से संतुष्ट होकर महमूद पालनपुर के निकट स्थित चिकुदर पहाड़ी पहुंचा। इस पहाड़ी पर चिकलोदर माता का अति प्राचीन मंदिर था। महमूद ने उस मंदिर को भी तोड़ डाला। सोमनाथ महालय अब महमूद से अधिक दूर नहीं रह गया था।

इतनी कठिनाइयां सहन करके महमूद अपने सपने को पूरा होते हुए देखना चाहता था। वह सोमनाथ रूपी स्वर्ग में नृत्य करने वाली उन हजारों अप्सराओं को गजनी ले जाकर गजनी के वेश्यालयों को सजाना चाहता था और सम्पूर्ण भारत का सोना गजनी में ले जाकर गजनी के महलों को सजाना चाहता था ताकि मध्य-एशिया के मुसलमान गजनी से ईर्ष्या करें तथा महमूद की सफलताओं के चर्चे समरकंद से लेकर खुरासान, ख्वारिज्म तथा बगदाद तक की गलियों में हों।

महमूद की आँखें नित नए सपने देख रही थीं किंतु उसके सपने बहुत बड़े थे और जिंदगी बहुत छोटी थी। महमूद नहीं जानता था कि उससे पहले भी बहुत से योद्धाओं ने ऐसे वीभत्स सपने देखे थे किंतु समय आने पर वे योद्धा समय की बाढ़ में मरी हुई चिड़िया की तरह बह गए थे। वह दिन दूर नहीं रह गया था जब महमूद के साथ भी ऐसा ही होने वाला था किंतु महमूद उस घड़ी से अनभिज्ञ था और स्वयं को अजर-अमर समझ रहा था। उस पर हिंसा का उन्माद छाया हुआ था, इसलिए इंसान उसे कीड़े-मकोड़े जैसे दिखाई देते थे।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source