Thursday, November 21, 2024
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मल्लिका उज्जमानी

महाराजा अजीतसिंह ने मल्लिका उज्जमानी के पिता फर्रुखसीयर की हत्या में प्रमुख भूमिका निभाई थी। इसलिए जब मल्लिका उज्जमानी बादशाह मुहम्मदशाह रंगीला की बेगम बनी तो वह महाराजा के प्राणों की प्यासी हो गई।

जब मुहम्मदशाह रंगीला ने फर्रूखसियर की पुत्री मल्लिका उज्जमानी से विवाह करके उसे बादशाह बेगम घोषित कर दिया तो फर्रूखसियर का परिवार फिर से सत्ता के केन्द्र में आ गया। बादशह बेगम बनकर फर्रूखसियर की बेटी मलिका उज्जमानी महाराजा अजीतसिंह के प्राणों की प्यासी हो गई।

कुछ साल पहले तक अजीतसिंह की पुत्री इन्द्रकुंवरी तथा मलिका उज्जमानी की माँ गौहरउन्निसा बादशाह फर्रूखसियर की बेगमें हुआ करती थीं। जब सैयद बंधुओं ने पठान सैनिकों को बादशाह फर्रूखसियर को घसीटकर लाने के लिए उसके महल में भेजा था तब मल्लिका उज्जमानी की माँ गौहरउन्निसा पठान सैनिकों के कदमों में गिर कर बादशाह के प्राणों की भीख मांग रही थीं किंतु महाराजा अजीतसिंह की बेटा इन्द्रकुंवरी एक करोड़ रुपए की सम्पत्ति के साथ अपने पिता के पास जाने की तैयारी कर रही थी।

मल्लिका उज्जमानी उन दृश्यों को भूल नहीं पाती थी। इसलिए अब फिर से सत्ता के केन्द्र में पहुंचकर पुरानी बातों का बदला लेना चाहती थी।

जिस प्रकार मुहम्मदशाह ने सैयद बंधुओं को मरवा डाला था,मल्लिका उज्जमानी चाहती थी कि महाराजा अजीतसिंह को भी मार डाला जाए। मुहम्मदशाह भी महाराजा अजीतसिंह की नीतियों से तंग आ चुका था और वह भी महाराजा से छुटकारा पाना चाहता था।

इसी तरह आम्बेर नरेश जयसिंह भी महाराजा अजीतसिंह के हाथों काफी नीचा देख चुका था क्योंकि जयसिंह के मना करने के बावजूद अजीतसिंह ने अजमेर पर अधिकार करके उसे राठौड़ राज्य का हिस्सा बना लिया था।

पूरे आलेख के लिए देखें यह वी-ब्लॉग-

ये सब लोग महाराजा अजीतसिंह के प्राणों के पीछे हाथ धोकर पड़ गए किंतु उस काल में न तो मुगलों में इतनी ताकत थी कि वे जोधपुर के राजा अजीतसिंह को घेर कर मार सकें और न आम्बेर नरेश में इतना दम था कि वह अजीतसिंह की ओर आंख उठाकर देख सके। इसलिए छल और कपट का सहारा लिया गया।

महाराजा सवाई जयसिंह की एक पुत्री का विवाह महाराजा अजीतसिंह के पुत्र अभयसिंह से हुआ था। महाराजा जयसिंह ने अपनी इसी पुत्री को मोहरा बनाकर महाराजकुमार अभयसिंह को समझाया कि महाराजा अजीतसिंह की गतिविधियों के चलते मुगल दरबार में मारवाड़ राज्य की इज्जत समाप्त हो गई है। यदि महाराजा अजीतसिंह को समाप्त कर दिया जाए तो अभयसिंह को राजा बनाकर फिर से मुगलों की मित्रता प्राप्त की जा सकती है।

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अभयसिंह से कहा गया कि यदि वह अजीतसिंह की हत्या करता है तो अभयसिंह न केवल जोधपुर का राजा बनेगा अपितु उसे मुगल दरबार में बड़ा मनसब एवं अन्य प्रदेशों की सूबेदारियां भी मिलेंगी। महाराजकुमार अभयसिंह, अपने श्वसुर की बातों में आ गया। उसने अपने छोटे भाई बखतसिंह को महाराजा अजीतसिंह की हत्या करने के लिए तैयार किया। मुगल बादशाह की तरफ से सवाई जयसिंह ने बखतसिंह को आश्वस्त किया कि यदि बखतसिंह इस काम में सहयोग करेगा तो उसे नागौर का स्वतंत्र राज्य दे दिया जाएगा तथा शाही दरबार में उच्च मनसब प्रदान किया जाएगा।

उस काल के भारत में जिस प्रकार मुगल शहजादों की हत्याएं हो रही थीं, उसी प्रकार हिन्दू राजाओं के वंश भी इस बुराई का शिकार हो गए थे और प्रत्येक राजपरिवार के राजकुमार भी एक दूसरे की हत्या करने में नहीं हिचकिचा रहे थे। माना जा सकता है कि भारत के दूषित राजनीतिक वातावरण के प्रभाव से अभयसिंह और बखतसिंह अपने पिता की हत्या करने को तैयार हो गए।

जिस अजीतसिंह की रक्षा के लिये महाराजा जसवंतसिंह की विधवा रानियां औरंगजेब के सैनिकों के हाथों तिनकों की तरह कट मरीं थीं, जिस अजीतसिंह के लिये वीर दुर्गादास तथा मुकुंददास खीची ने अपना पूरा जीवन घोड़े की पीठ पर बिताया था, जिस अजीतसिंह की रक्षा के लिये राठौड़ों ने तीस वर्ष तक युद्ध से मुंह नहीं मोड़ा था, जिस अजीतसिंह के लिये मेवाड़ियों ने औरंगजेब को अरावली की पहाड़ियों में खींचकर मार डालने का प्रयास किया था, उसी अजीतसिंह को उसके पुत्रों ने मारने का निश्चय कर लिया।

अदूरदर्शी राजकुमार अभयसिंह तथा बख्तसिंह, न तो मुगलों के षड़यंत्र को समझ पाये, न सवाई जयसिंह की दुष्टता को समझ पाये, न अपने पिता द्वारा चलाये जा रहे हिन्दू राज्य की स्थापना के अभियान का मूल्य समझ पाये। राज्य के लालच में अंधे होकर 23 जून 1724 की रात्रि में उन्होंने महाराजा अजीतसिंह की हत्या कर दी। उस समय अजीतसिंह जोधपुर के मेहरानगढ़ में स्थित अपने महल में गहरी नींद में सो रहा था।

इस प्रकार मुहम्मदशाह की बेगम मल्लिका उज्जमानी ने अपने पिता की हत्या का बदला ले लिया। मुहम्मदशाह को भी अजीतसिंह से छुटकारा मिल गया। सवाई जयसिंह को भी उत्तर भारत में अपनी शक्ति बढ़ाने का अवसर प्राप्त हो गया। राजकुमार अभयसिंह को मारवाड़ का और बखतसिंह को नागौर का राज्य मिल गया। यदि इस हत्या से किसी का नुक्सान हुआ था तो वह था हिन्दू धर्म जो वीर दुर्गादास और महावीर अजीतसिंह जैसे राजपूतों को खोकर अपने दुर्भाग्य पर आठ-आठ आँसू बहा रहा था। 

महाराजा की हत्या पर दुःख व्यक्त करते हुए तथा राजकुमार बखतसिंह को धिक्कारते हुए एक कवि ने लिखा है-

बखता बखत बायरो, क्यूं मार्यो अजमाल।

हिन्दवाणी रो सेवरो, तुरकाणी रो काल।

अर्थात्- हे बिना बख्त यानि बिना तकदीर वाले बख्तसिंह! तुमने अजमाल यानि अजीतसिंह को क्यों मारा? वह हिन्दुस्तान का रक्षक और तुर्कों का काल था!

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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