जब अहमदाशाह अब्दाली ने दिल्ली पर दूसरी बार आक्रमण किया तो मराठों के नेता सदाशिव राव भाऊ ने महाराजा सूरजमल से मिलकर जाट मराठा संघ बनाया ताकि अब्दाली को दिल्ली से दूर रखा जा सके।
मथुरा की युद्ध परिषद् के बाद मराठों और जाटों ने मथुरा से आगे बढ़कर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। मुगल बादशाह मूक दर्शक की भांति बैठे रहने के अतिरिक्त और कुछ नहीं कर सका। दिल्ली हाथ में आते ही सदाशिव राव भाऊ तोते की तरह आंख बदलने लगा। महाराजा सूरजमल के लाख मना करने पर भी भाऊ ने लाल किले के दीवाने खास की छतों से चांदी के पतरे उतार लिये और नौ लाख रुपयों के सिक्के ढलवा लिये।
सदाशिव राव भाऊ के सैनिकों ने दिल्ली एवं आगरा के लाल किलों, शाही महलों, मस्जिदों ताजमहल तथा अन्य मकबरों में लगे हीरे-मोती उतारने शुरु कर दिए। दिल्ली की मोती मस्जिद में औरंगजेब ने बहुत कीमती रत्न लगवाए थे, मराठों ने इन रत्नों को उतार लिया जिसके कारण मोती मस्जिद बुरी तरह से विरूपित हो गई।
सूरजमल स्वयं दिल्ली का शासक बनना चाहता था। उसे यह बात बुरी लगी और उसने भाऊ को रोकने का प्रयत्न किया किंतु भाऊ नहीं माना। सूरजमल चाहता था कि इमादुलमुल्क को फिर से दिल्ली का वजीर बनाया जाये किंतु भाऊ ने घोषणा की कि वह नारोशंकर को दिल्ली का वजीर बनायेगा। इससे सूरजमल और इमादुलमुल्क का भाऊ से मोह भंग हो गया। इस कारण जाट मराठा संघ टूटने के कगार पर आ गया। फिर भी महाराजा सूरजमल ने शांति से काम लेने का निश्चय किया।
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महाराजा सूरजमल चाहता था कि दिल्ली के बादशाह शाहआलम (द्वितीय) को मार डाला जाये क्योंकि उसने अहमदशाह अब्दाली को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया है किंतु बादशाह, भाऊ को अपना धर्मपिता कहकर उसके पांव पकड़ लेता था।
सदाशिव राव भाऊ का बादशाह शाहआलम (द्वितीय) के प्रति अनुराग देखकर सूरजमल नाराज हो गया। सूरजमल चाहता था कि दिल्ली की सुरक्षा का भार सूरजमल पर छोड़ा जाये किंतु सदाशिव राव भाऊ ने दिल्ली के महलों पर अपनी सेना का पहरा बैठा दिया। इन सब बातों से महाराजा सूरजमल खिन्न हो गया।
उसने भाऊ से कहा कि वह दीवाने आम की चांदी की छत फिर से बनवाये तथा इमादुलमुल्क को दिल्ली का वजीर बनाने की घोषणा करे, अन्यथा भाऊ को सूरजमल की सहायता नहीं मिल सकती। इस पर भाऊ ने तैश में आकर जवाब दिया- ‘क्या मैं दक्खन से तुम्हारे भरोसे यहाँ आया हूँ। जो मेरी मर्जी होगी, करूंगा। तुम चाहो तो यहाँ रहो, या चाहो तो अपने घर लौट जाओ। अब्दाली से निबटने के बाद मैं तुमसे निपट लूंगा।’
मल्हारराव होलकर तथा दत्ताजी सिन्धिया ने महाराजा सूरजमल की सुरक्षा की जिम्मेदारी ली थी किंतु वे समझ गये थे कि अब सूरजमल दिल्ली में सुरक्षित नहीं है। इसलिये उन्होंने सूरजमल के सलाहकार रूपराम कटारिया से कहा कि जैसे भी हो, सूरजमल को दिल्ली से निकल जाना चाहिये। रूपराम कटारिया ने यह बात सूरजमल को बताई। सूरजमल उसी दिन मराठों को त्यागकर बल्लभगढ़ के लिये रवाना हो गया। मल्हार राव होलकर और दत्ताजी सिन्धिया ने सूरजमल के निकल भागने की सूचना बहुत देर बाद भाऊ को दी। इस पर भाऊ, सूरजमल से बहुत नाराज हो गया। उसने सोचा नहीं था कि जाट मराठा संघ इतनी जल्दी बिखर जाएगा।
इमाद-उस-सादात का कथन है- ‘भाऊ ने सूरजमल से दो करोड़ रुपये मांगे और उसे संदेहजनक पहरे में रख दिया। संभवतः सूरजमल को इस पहरे में से निकलने के लिये विशेष प्रबंध करने पड़े।’
महाराजा सूरजमल द्वारा मराठों का त्याग करते ही मराठों पर विपत्तियां आनी आरम्भ हो गईं। अहमदशाह अब्दाली की सेनाओं को रूहेलों के राज्य से अनाज की आपूर्ति हो रही थी तथा मराठों को सूरजमल के राज्य से अनाज मिल रहा था किंतु सूरजमल के चले जाने से दिल्ली में अनाज की कमी होने लगी और अनाज के भाव अचानक बढ़ गये।
दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों को विगत कुछ वर्षों में इतना अधिक रौंदा गया था कि वहाँ से अनाज प्राप्त करना सम्भव नहीं रह गया था। भाऊ के बुरे व्यवहार के उपरांत भी सूरजमल की सहानुभूति मराठों से बनी रही। उसने मराठों को किसी तरह की क्षति पहुंचाने का प्रयास नहीं किया।
अहमदशाह अब्दाली ने सूरजमल से समझौता करने का प्रयास किया। वह चाहता था कि सूरजमल, भावी युद्ध से तटस्थ रहने की घोषणा कर दे ताकि मराठों को पूरी तरह से अकेला बनाया जा सके किंतु महाराजा सूरजमल ने अब्दाली से किसी तरह का समझौता करने का प्रस्ताव ठुकरा दिया।
जैसे-जैसे अब्दाली की सेनाएं दिल्ली के निकट आती गईं, वैसे-वैसे दिल्ली, आगरा और अन्य क्षेत्रों में रहने वाले लोग अपने परिवारों को लेकर भरतपुर राज्य में शरण लेने के लिये आने लगे। महाराजा सूरजमल ने इन शरणार्थियों के लिये अपने राज्य के दरवाजे खोल दिये। यहाँ तक कि घायल मराठा सरदार जनकोजी सिंधिया और उसका परिवार भी कुम्हेर आ गया।
मुगल बादशाह के वजीर इमादुलमुल्क ने भी अपना परिवार सूरजमल के संरक्षण में भेज दिया। उदारमना महाराजा सूरजमल ने अपने प्रबल शत्रुओं और उनके परिवारों को दिल खोलकर शरण दी। जाट मराठा संघ बिखर जाने पर भी सूरजमल मराठों के प्रति उदार बना रहा।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता