गुरु नानक के उपदेशों से प्रभावित होकर बहुत से हिन्दू उनके शिष्य हो गए थे। उन्हें पंजाबी में सिक्ख कहा जाता था। सिक्खों ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए बड़े बलिदान दिए थे। जब जिन्ना को पाकिस्तान मिल गया तो उसने पंजाब के सिक्खों का नरसंहार करने की योजना बनाई ताकि सिक्ख पंजाब से भाग जाएं तथा पूरा पंजाब पाकिस्तान में शामिल हो जाए!
प्रधानमंत्री एटली की घोषणा से जिन्ना समझ गया था कि अब पाकिस्तान बनने से कोई नहीं रोक सकता फिर भी वह स्वयं को हर स्थिति के लिए तैयार रखना चाहता था। पाकिस्तान के निर्माण को स्वीकार न किए जाने की संभावित स्थिति में जिन्ना बहुत ही चालाकी से मुसलमानों को एक खूनी गृहयुद्ध के लिए तैयार कर रहा था। उसका अगला कदम बहुत निर्णायक था।
वह जानता था कि उसे पाकिस्तान मुस्लिम लीग के मंचों पर दिए गए राजनीतिक भाषणों से नहीं मिलेगा। पाकिस्तान मिलेगा मुस्लिम नेशनल गार्ड्स के चमकीले और पैने हथियारों से, जिसकी तैयारी वह पिछले सात साल से कर रहा था और सीधी कार्यवाही में वह हथियारों को सफल प्रयोग कर भी चुका था।
15 जून 1940 को बम्बई के मुस्लिम लीग अधिवेशन में मुसलमानों की जान-माल की हिफाजत के लिए मुस्लिम नेशनल गार्ड को संगठित तथा मजबूत करने के लिए प्रांतीय मुस्लिीम लीगों को दिशा-निर्देश जारी किए गए थे। तभी से यह स्पष्ट था कि मुस्लिम लीग जल्दी या बाद में एक गृहयुद्ध आरम्भ करने वाली थी।
मुस्लिम नेशनल गार्ड् को विभिन्न प्रकार के हथियारों से लड़ने, चाकू मारकर हत्या करने और धावा बोलने का प्रशिक्षण दिया जाता था। इस सेना के लिए बड़ी संख्या में हथियार एकत्रित किये गये थे और भारतीय सेना के विघटित मुस्लिम सैनिकों को लीग की सेना में भर्ती किया गया था। इस सेना का विस्तार एवं सैन्य उपकरणों से लैस होना निरंतर जारी रहता था।
इसके दो संगठन बनाये गये थे, एक था मुस्लिम लीग वालंटियर कॉर्प तथा दूसरा था मुस्लिम नेशनल गार्ड। नेशनल गार्ड मुस्लिम लीग का गुप्त संगठन था। उसकी सदस्यता गुप्त थी और उसके अपने प्रशिक्षण केंद्र एवं मुख्यालय थे जहाँ उसके सदस्यों को सैन्य प्रशिक्षण और ऐसे निर्देश दिये जाते थे जो उन्हें दंगों के समय लाभ पहुंचायें, जैसे लाठी, भाले और चाकू का इस्तेमाल। मुस्लिम नेशनल गार्ड के यूनिट कमाण्डरों को ‘सालार’ कहा जाता था।
नेशनल गार्ड के लम्बे चौड़े जवान, हथियारों से लैस होकर जिन्ना के चारों ओर बने रहकर उसकी सुरक्षा करते थे। जनवरी 1947 में पंजाब पुलिस ने मुस्लिम नेशनल गार्ड के लाहौर कार्यालय पर छापा मारा तो वहाँ से बड़ी संख्या में स्टील के हेलमेट, बिल्ले तथा सैन्य उपकरण बरामद हुए।
मुस्लिम नेशनल गार्ड के पास अपनी लारियां और जीपें थीं जिनका उपयोग हिंदू और सिक्ख क्षेत्रों पर आक्रमण करने तथा अकेले मुसाफिरों को लूटने में होता था। मुस्लिम नेशनल गार्ड के लोग अपने साथ पैट्रोल रखते थे जिसका उपयोग आगजनी में होता था। इन हथियारों से स्पष्ट हो गया कि मुस्लिम नेशनल गार्ड की योजना पंजाब के हिन्दुओं एवं सिक्खों का नरसंहार करने की थी।
अप्रेल 1947 में पंजाब सरकार के प्रमुख सचिव अख्तर हुसैन ने पंजाब के गवर्नर को रिपोर्ट दी कि मुस्लिम लीग ने 5,630 गार्ड भरती किये हैं। इसके 15 दिन बाद की रिपोर्ट में कहा गया कि मुस्लिम लीग के नेशनल गार्डों की संख्या अब लगभग 39,000 है।
मुस्लिम लीग ने सशस्त्र तैयारी करने के साथ ही उन प्रांतों में चल रही सरकारों एवं विधानसभाओं में दबाव बनाना आरम्भ किया जिन्हें वह भावी पाकिस्तान में सम्मिलित करना चाहती थी। असम में मुसलमानों का बहुमत नहीं था किंतु फिर भी मुस्लिम लीग उसे पाकिस्तान में शामिल करना चाहती थी।
इन प्रांतों से मुस्लिम लीग ने हिन्दुओं को भगाना आरम्भ कर दिया ताकि हिन्दू स्वयं ही तंग आकर मुस्लिम लीग को उसका मनचाहा पाकिस्तान दे दें। जिस समय अंतरिम सरकार में देश के धन-सम्पदा को पाकिस्तान और भारत में बांटा जा रहा था, मुस्लिम लीग लॉर्ड माउण्टबेटन येाजना को विफल बनाने का यत्न कर रही थी।
एक ओर जिन्ना हिंदुओं को काट रहा था और और सिक्खों का नरसंहार कर रहा था तो दूसरी ओर गांधीजी का मुस्लिम प्रेम और जिन्ना प्रेम दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रहा था। गांधीजी के इसी मुस्लिम प्रेम एवं जिन्ना प्रेम के चलते मिस्टर जिन्ना और गांधीजी ने एक संयुक्त वक्तव्य निकाला था और दोनों समुदायों के घटकों को परस्पर मैत्री भाव रखने के लिए कहा था।
कम से कम मुस्लिम लीग की ओर से यह वक्तव्य हिन्दुओं की आंखों में धूल झोंकने के सदृश्य था। मुस्लिम लीग ने उस वक्तव्य की अवहेलना कर यह यत्न करना आरम्भ कर दिया कि हिन्दुस्तान के वे क्षेत्र जो जिन्ना पाकिस्तान में चाहते थे और जो माउण्टबेटन योजना के अनुसार पाकिस्तान को नहीं मिले थे, उन पर यत्न-पूर्वक अधिकार कर लिया जाए।
पंजाब में विगत 10 वर्षों से यूनियनिस्ट पार्टी के मलिक खिजिर हयात खाँ की संयुक्त सरकार थी जिसमें हिन्दू, मुसलमान एवं सिक्ख तीनों शामिल थे। लीग के कार्यकर्ताओं ने गुण्डागर्दी करके पंजाब में कानून एवं व्यवस्था इतनी अधिक बिगड़ गई कि 2 मार्च 1947 को हयात खाँ की सरकार को इस्तीफा देना पड़ा और गवर्नर ने मुस्लिम लीग की सरकार बनवा दी।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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