महमूद गजनवी ई.1000 से भारत पर हमले करके भारत की जनता को लूट रहा था। महमूद ने बगदाद के खलीफा को जो वचन दिया था, उसका महमूद ने निष्ठा-पूर्वक पालन किया। उसने भारत पर आक्रमणों की झड़ी लगा दी। विशाल पंजाब पर अधिकार करने के बाद वह गंगा-यमुना के दो-आब की तरफ बढ़ा। ई.1018 में महमूद गजनवी ने बुलंदशहर, मथुरा तथा कन्नौज पर आक्रमण किया। इन स्थानों पर भी उसने मंदिरों तथा नगरों को लूटा और भयंकर लूट मचायी। डॉ. ईश्वरी प्रसाद के अनुसार इस अभियान में उसे 30 लाख दिरहम मूल्य की सम्पत्ति, 55 हजार गुलाम तथा 350 हाथी प्राप्त हुए।
उस काल में मथुरा उत्तर-भारत का सर्वाधिक घना बसा हुआ नगर था। भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि होने के कारण इस नगर में सैंकड़ों कलापूर्ण मंदिर स्थित थे जिनमें से कई मंदिर तो सैंकड़ों वर्ष पुराने थे। उनमें हजारों वर्ष पुरानी मूर्तियां रखी हुई थीं।
विगत हजारों साल से भारत भर के हिन्दू धर्मावलम्बी भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि के दर्शनों के लिए आया करते थे। ये श्रद्धालु अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार मथुरा के मंदिरों में सोना-चांदी एवं सिक्के अर्पित किया करते थे। इस कारण मथुरा के मंदिरों में सोने चांदी के ढेर लगे हुए थे।
नगरकोट की लूट से प्राप्त भारी धन के बाद महमूद समझ गया था कि उसे अपने अभियानों का रुख छोटे-छोटे राजाओं की राजधानियों की बजाय भारत के प्रसिद्ध मंदिरों की तरफ करना चाहिए। यही कारण था कि इस बार महमूद ने मथुरा को अपना निशाना बनाया। ई.1018 में महमूद की लुटेरी सेना ने मथुरा में प्रवेश किया। लगाने को तो अब भी महमूद की सेना जेहाद का नारा लगाती थी किंतु वास्तव में वह एक तीर से कई निशाने साध रही थी। कुफ्र का सफाया, सम्पत्ति की लूट, साम्राज्य विस्तार, गुलामों की प्राप्ति, खलीफा की प्रसन्नता सभी कुछ तो इन मंदिरों पर आक्रमण करने से उपलब्ध हो रहा था!
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महमूद के आक्रमणों से पहले, भारत के लोग चूंकि विधर्मियों द्वारा किए जाने वाले आक्रमणों की विभीषिका से परिचित नहीं थे इसलिए वे मंदिरों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रबंध नहीं किया करते थे। जब कोई राजा किसी दूसरे राज्य पर आक्रमण करता था अथवा उस पर अधिकार कर लेता था, तब भी मंदिर की सम्पत्ति अथवा सुरक्षा को किसी प्रकार का खतरा नहीं होता था। विजेता राजा भी मंदिर में उसी प्रकार नतमस्तक होता था जिस प्रकार उस राज्य का पुराना स्वामी होता था किंतु महमूद के आक्रमण के समय दृश्य पूरी तरह बदला हुआ था।
महमूद के दरबारी लेखक उतबी ने लिखा है- ‘महमूद ने एक ऐसा नगर देखा जो योजना तथा निर्माण कला की दृष्टि से आश्चर्यजनक था। ऐसा प्रतीत होता था मानो उसके भवन स्वर्ग के हैं। किंतु नगर का सौंदर्य शैतानों की रचना का परिणाम था, इसलिए कोई बुद्धिमान व्यक्ति उसके वर्णन को सुनकर विश्वास नहीं कर सकता था। उसके चारों ओर पत्थर के बबने हुए एक हजार दुर्ग थे जिनका मंदिरों की भांति प्रयोग किया जाता था। उसके मध्य में एक सबसे ऊँचा मंदिर था जिसके सौन्दर्य और सजावट का वर्णन करने में न किसी लेखक की लेखनी समर्थ है और न किसी चित्रकार की तूलिका। उस पर मन का स्थिर करना और विचार करना भी कठिन है।’
महमूद गजनवी ने स्वयं ने अपने यात्रा-संस्मरणों में मथुरा के श्रीकृष्ण-जन्मभूमि मंदिर के बारे में लिखा है- ‘यदि कोई व्यक्ति उस जैसे भवन का निर्माण करना चाहे तो उसे एक हजार दीनार की एक लाख थैलियां व्यय करनी पड़ेंगी और कुशल से कुशल शिल्पियों की सहायता से भी वह 20 वर्षों में पूरा नहीं होगा।’
महमूद के दरबारी लेखक उतबी ने लिखा है- ‘इन मंदिरों में सोने की बहुमूल्य मूर्तियां थीं उनमें से कुछ पांच-पांच हाथ ऊँची थीं और एक-एक में 50 हजार दीनार के बराबर मूल्य की मणियां जड़ी हुई थीं। एक मूर्ति में शुद्ध ठोस नीलम जड़ा हुआ था जिसका मूल्य 400 मिश्काल था। आक्रमणकारियों को अनेक मूर्तियों के नीचे गड़ा हुआ बहुत सा धन मिला। एक मूर्ति के नीचे तो 4 लाख स्वर्ण निष्काल के मूल्य का कोष मिला। सैंकड़ों मूर्तियां चांदी से बनी हुई थीं इस कारण वे अत्यंत कीमती थीं।’
महमूद ने समस्त मथुरा नगर को धूल में मिला दिया और उसका कोना-कोना लूट लिया। निरीह लोगों को मारा-पीटा गया ताकि वे अपना धन महमूद को दे दें। बहुत से लोगों को जान से मार दिया गया। सैंकड़ों औरतों के साथ बलात्कार हुए और वे यमुनाजी में कूदकर मर गईं। श्रीकृष्ण-जन्मभूमि मंदिर के साथ ही मथुरा के हजारों मंदिर लूट लिए गए। उनमें से बहुतों को गिराया और नष्ट किया गया। मंदिरों में रखे देव-विग्रहों को अपमानित किया गया और उन्हें तोड़कर रास्तों पर फैंक दिया गया। वृंदावन में भी मथुरा की तरह हत्या, लूट, दाह और बलात्कार के नंगे नाच हुए। भारतीयों ने ऐसे दृश्य इससे पहले कभी नहीं देखे थे। बड़े से बड़े युद्ध में नागरिकों पर हाथ नहीं उठाया जाता था।
मथुरा और वृंदावन के बाद महमूद ने कन्नौज की तरफ कूच किया जहाँ कन्नौज का अंतिम गुर्जर-प्रतिहार शासक राज्यपाल शासन कर रहा था। महमूद के आगमन का समाचार सुनते ही वह भाग खड़ा हुआ। महमूद की सेना ने बिना युद्ध लड़े ही कन्नौज पर अधिकार कर लिया। यहाँ भी वही हत्या, लूट और बलात्कार के वे सब दृश्य दोहराए गए जो इससे पहले नगरकोट, भटिण्डा, मथुरा और वृंदावन में रचे गए थे।
महमूद की सेनाओं द्वारा किए गए जुल्मों को देखकर भारत की आत्मा सिसक उठी। भारत की धर्मशील, परिश्रमी एवं निरीह जनता को बचाने वाला कोई नहीं था। भारतीय राजा जो घमण्ड के कारण एक दूसरे को मच्छर के समान बताते थे, महमूद नामक आंधी में तिनके की तरह उड़ गए।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता