Sunday, December 22, 2024
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हे कलियुगी गौतम, ये तुमने क्या किया!

हे कलियुगी गौतम, तुम मुझे नहीं पहचानते किंतु मैं तुम्हें पहचानता हूँ। तुमने मेरे बारे में सुन अवश्य रखा है किंतु तुमने जो सुना है, उसे समझा नहीं है। तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हारा नाम मेरे नाम पर गौतम तो रख दिया किंतु तुम गौतम बन नहीं सके। आज मैं तुम्हें बताता हूँ कि गौतम होना क्या होता है!

तुम से सात हजार साल पहले भी एक गौतम हुए थे जिन्होंने समाज में उच्च आदर्शों को बनाए रखने के लिए अपनी स्त्री को पत्थर बना दिया था। ठीक समझे तुम, अहिल्या नाम ही था उनका। तुम्हारी तरह मैं भी जानता हूँ कि माता अहिल्या का कोई दोष नहीं था, उनके साथ छल हुआ था किंतु सजा उन्हें मिली। मेरी और तुम्हारी तरह गौतम मुनि भी जानते थे कि उनकी स्त्री के साथ अन्याय हुआ है किंतु उन्होंने अपनी पत्नी को न्याय देने के स्थान पर उस विराट् समाज की ओर देखा जिसके समक्ष चरित्र की उज्जवलता का आदर्श बनाए रखने के लिए अपनी पत्नी का बलिदान करना आवश्यक था, उन्होंने किया।

तुम्हारे जैसे अल्पबुद्धि के लोग गौतम मुनि के उस निर्णय को गलत बताकर उस पर घण्टों कुतर्क करते हैं किंतु वे यह नहीं समझ पाते कि कई बार कुछ निर्णय सही और गलत की परिभाषाओं से बाहर निकलकर भी लेने पड़ते हैं। गौतम ने ऐसा ही किया। क्या यह निर्णय लेते समय उनका हृदय अदम्य पीड़ा से भर नहीं गया होगा? अवश्य ही भरा होगा! हृदय पर पत्थर रखकर ही तो उन्होंने अपनी निर्दोष नारी को पत्थर बनाने का श्राप दिया होगा!

गौतम मुनि की निर्दोष नारी की इसी पीड़ा को हरने के लिए राम को आना पड़ा। वही राम जिसकी पूजा न करने के लिए तुमने भारत की राजधानी दिल्ली में हजारों भोले-भाले लोगों को शपथ दिलवाई है।

जिस तरह तुम नहीं समझते कि गौतम होना क्या होता है, उसी तरह तुम यह भी नहीं समझोगे कि राम होना क्या होता है! क्या तुमने उस राम को कभी जानने का प्रयास किया है जो शबरी के द्वार पर जाकर उसके झूठे बेरों की याचना करता है। तुम भला राम को कैसे जानोगे! वह तो अपने पिता को वचनबद्ध देखकर स्वयं ही सत्तासुख को छोड़कर जंगलों में चला आया था और तुम! तुम तो सत्तासुख पाते रहने के लिए भारत के भोले-भाले लोगों के मनमंदिरों से राम को निकालकर उन्हें फिर से वनवास देने की कुचेष्ट कर रहे हो!

हे कलियुगी गौतम! क्या तुमने जटायु का नाम सुना है? वही जटायु जिसके शरीर को अपनी गोद में रखकर राम जितना रोए थे, उतना तो अपने पिता दशरथ की मृत्यु पर भी नहीं रोए होंगे! तुम क्या जानो राम को और राम के मन में बैठे शबरी और जटायु को!

एक और गौतम के बारे में बताता हूँ जिन्होंने सामवेद के अनेक मंत्रों की रचना की थी। हो सकता है, तुमने उनका भी नाम सुना हो। न सुना हो तो आज सुन लो। सामवेद के उन्हीं मंत्रों पर गौतम ने ‘गौतम धर्मसूत्र’ की रचना की। इस ग्रंथ में उन्होंने वैदिक धर्म, वर्ण और आश्रम की विस्तृत व्याख्या की जिसमें समाज के सभी वर्गों के लोगों के लिए नियम बनाए थे।

हे कलियुगी गौतम! विष्णु और दुर्गा की पूजा करने वाले इस गौतम द्वारा बनाए गए सामाजिक नियमों को क्या कभी तुमने जाना है? तुम भला कैसे जानोगे? तुम्हारी विकृत दृष्टि स्वयं के लिए सत्ता प्राप्त करने पर टिकी रहती है, तुम्हें समाज को उन्नति की ओर ले जाने वाले गौतम सूत्र की वे महान् बातें क्योंकर पता होंगी जिनका आधार केवल दया, क्षमा, उदारता और त्याग है। क्या गौतम सूत्र में लिखी वे बातें कभी तुम्हें किसी ने नहीं बताईं जिनका संदेश मनुष्य को स्वयं कष्ट सहकर, समाज को उच्च आदर्श पर दृढ़ता पूर्वक टिकाए रखना है!

अब मैं तुम्हें अपने बारे में बताता हूँ। यह तो मैं पहले ही कह चुका हूँ कि मेरा नाम भी तुम्हारी तरह गौतम है। मैं आज से ढाई हजार साल पहले इसी पावन भारत भूमि पर हुआ था जिस पर तुम पैदा हुए हो! तुम मेरी शरण में आना चाहते हो, आओ, धर्म तुम्हें बुला रहा है, बुद्ध तुम्हें बुला रहा है। परंतु हे कलियुगी गौतम मुझ तक आने के लिए मेरा मार्ग अपनाओ।

वह कभी न करो जो मैंने कभी नहीं कहा, कभी नहीं किया। मैंने समाज से यह कभी नहीं कहा कि तुम राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा की पूजा मत करो। फिर तुमने किस लालच के वशीभूत होकर भारत के भोले-भाले लोगों को यह संदेश देने का कुत्सित कार्य किया है कि तुम हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं की पूजा मत करो। मैंने तो केवल इतना कहा था कि वीणा के तार इतने मत कसो कि वे टूट जाएं और इतने ढीले भी मत छोड़ो कि उनसे कोई राग न निकले। तुम तो वीणा के तारों को तोड़ने पर ही तुल गए हो।

हे कलियुगी गौतम! तुम शायद नहीं जानते कि मेरा नाम तो केवल सिद्धार्थ था, मुझे गौतम ऋषि किसने बनाया? सुजाता की खीर ने उसी सुजाता की खीर ने जो राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा की पूजा करने के कारण मेरे प्राण बचाने के लिए खीर लेकर आई थी! मैं तो निरा संन्यासी था, मुझे भगवान गौतम किसने कहा? राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा के पूजकों ने। मेरे शिष्य तो मुझे केवल तथागत कहते थे किंतु मुझे विष्णु का दसवां अवतार किसना कहा? राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा के भक्तों ने। मेरे समय के लोग तो मुझे केवल शाक्य मुनि कहते थे, मुझे बुद्ध किसने कहा? राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा के पूजकों ने।

मैंने कब कहा कि तुम राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा को छोड़कर मेरी शरण में आओ? तुम मेरे पास जरूर आओ किंतु राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा के आदर्शों को अपने मनमंदिर में सजा कर आओ!

मैंने कब कहा था कि आत्मा नहीं है? मैंने तो केवल इतना कहा था कि अप्प दीपो भव! मैंने कब कहा था कि परमात्मा नहीं है? मैंने तो यह कहा था कि तुम्हारे सदाचरण ही तुम्हें मोक्ष की तरफ ले जा सकते हैं। मैंने कब कहा था कि धर्म नहीं है? मैंने तो केवल इतना ही कहा था कि अहिंसा ही परमधर्म है।

राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा तुम्हें मेरी बातों से दूर कहाँ ले जाते हैं? फिर तुम भारत के भोले-भोले लोगों को उनसे दूर ले जाने की कुचेष्टा क्यों करते हो?

यदि तुम्हारे मनमंदिरों में राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा के आदर्श नहीं होंगे तो तुम भी एक दिन ऐसे ही संकट में आ जाआगे जिस प्रकार अफगानिस्तान के लोग आए थे। अफगानिस्तान का इतिहास पता है तुम्हें? आज से दो हजार साल पहले तक अफगानिस्तान में राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा के भक्त रहते थे किंतु उन्होंने भी राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा को छोड़कर मेरी शरण में आना चाहा। क्या परिणाम हुआ उसका? आज से ठीक चौदह सौ साल पहले सम्पूर्ण अफगानिस्तान अरबवासियों द्वारा तलवार की धार पर धर लिया गया। करोड़ों लोग मौत के घाट उतार दिए गए, करोड़ों लोग जीवित ही आग में झौंक दिए गए और जो बचे, वे सब अपना धर्म खोकर तालिबान द्वारा शासित हैं। यह होता है अपना धर्म छोड़कर कहीं और मुंह मारने का अर्थ! राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा को पूजने वालों ने बार-बार कहा है स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।

अपनी जड़ों से कटकर इस बेरहम दुनिया में तुम कभी भी सुरक्षित नहीं रह पाओगे। यदि भारतीय समाज टूट-टूट कर बिखर गया तो सम्पूर्ण भारत महान् विपत्ति में पड़ जाएगा। यदि तुम्हारे मनमंदिरों से राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा निकल गए तो तुम पर भी कोई देश वैसे  ही परमाणु बम लेकर टूट पड़ेगा जैसे अमरीका जापान पर टूट पड़ा था। तुम पर भी कोई आतंकवादी समूह वैसे ही टूट पड़ेगा जैसे हमास आए दिन इजराइल पर टूट पड़ता है। तुम भी किसी तालिबान से बचने के लिए हवाई जहाज के पहियों और छतों पर चढ़कर मौत को गले लगाने के लिए मजबूर हो जाओगे।

हे कलियुगी गौतम! तुम्हें पता नहीं है किंतु मैं बताता हूँ जितनी पूजा तुम मेरी करते हो, उससे कहीं अधिक पूजा राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा को पूजने वाले मेरी करते हैं! तुम राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा को पूजने वालों को छोड़ दोगे तो भी राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा को पूजने वाले तुम्हें नहीं छोड़ेंगे। तुम उनके अपने हो और वे तुम्हारे अपने हैं।

जरा सोचो जब पूरी दुनिया में पारसियों पर संकट आया तो किसने उन्हें गले लगाया? राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा को पूजने वालों ने। जब तिब्बत के बौद्धधर्मगुरु दलाई लामा पर संकट आया तो किसने उन्हें सिर आंखों पर बैठाया? राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा को पूजने वालों ने। जब तसलीमा नसरीन पर संकट आया तो किसने उसे अपनी बेटी समझ कर अपनाया? राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा को पूजने वालों ने।

हे कलियुगी गौतम! एक बात और कहता हूँ। मैं ही राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा हूँ। राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा को पूजने वाले मुझ तक ही आते हैं। तुम भारत के भोले-भाले लोगों को भटकाओ मत। तुम राम, कृष्ण, शिव और दुर्गा के साथ मेरी शरण में आओ। ये बात तुम्हारी समझ में आ जाए तो ठीक है, वरना मैं तो पहले ही कह चुका हूँ कि तुम्हारे आचरण ही तुम्हें मोक्ष की तरफ ले जा सकते हैं।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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