Thursday, November 21, 2024
spot_img

100. मंगोल अपनी वेश्याओं को लेकर जालोर से भाग गए!

सोमथनाथ से लौट रही अल्लाउद्दीन खिलजी की सेना के नव-मुस्लिम मंगोल सैनिकों एवं तुर्की सैनिकों के बीच गुजरात से मिले लूट के धन को लेकर संघर्ष हुआ था और मंगोल सैनिकों ने दिल्ली की सेना के विरुद्ध जालोर के चौहानों द्वारा की गई कार्यवाही में चौहानों का साथ दिया था। इस कारण अल्लाउद्दीन खिलजी के भाई उलूग खाँ एवं अल्लाउद्दीन के भांजे नुसरत खाँ को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा था। मंगोलों ने सुल्तान अल्लाउद्दीन के भतीजे की हत्या कर दी जो संभवतः उलूग खाँ का पुत्र था। मंगोलों ने नुसरत खाँ के भाई को भी मार डाला।

जब दिल्ली में बैठे सुल्तान अल्लाउद्दीन को मंगोल सैनिकों के विद्रोह के बारे में ज्ञात हुआ तो उसने दिल्ली के निकट मंगोलपुरी में रह रहे मंगोल-परिवारों को नृशंसता पूर्वक मरवा दिया। तुर्की सैनिकों द्वारा विद्रोही मंगोलों की स्त्रियों का सतीत्व लूट लिया गया तथा बच्चों को उनकी माताओं के सामने ही टुकड़े करके फैंक दिया गया। नव-मुस्लिमों की जागीरें छीन ली गईं तथा उन्हें भविष्य के लिए सल्तनत की नौकरियों से वंचित कर दिया गया। इससे नव-मुसलमानों का असन्तोष और बढ़ गया और उन्होंने सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी की हत्या करने का षड्यन्त्र रचा।

अल्लाउद्दीन खिलजी को इस षड्यन्त्र का पता लग गया। उसने अपनी सेना को आज्ञा दी कि वे नव-मुसलमानों को समूल नष्ट कर दें। जियाउद्दीन बरनी का कहना है कि सुल्तान की इस आज्ञा के जारी होते ही लगभग तीन हजार नव-मुस्लिम तलवार के घाट उतार दिए गए और उनकी सम्पत्ति छीन ली गई। जियाउद्दीन बरनी ने अल्लाउद्दीन की इस क्रूरता की निंदा की है।

जालोर में किए गए विद्रोह के बाद नव-मुस्लिमों अर्थात् मंगोलों के सरदार मुहम्मद शाह और मीर कामरू अपने सैनिकों के साथ जालोर में ही रुक गए थे। वे राजा कान्हड़देव के संरक्षण में रहने लगे। एक दिन इन मंगोल सैनिकों ने जालोर में एक गाय मारकर खाई। यह बात हिन्दू सैनिकों को ज्ञात हो गई। उन्होंने इस घटना के बारे में राजा कान्हड़देव को सूचित किया। इस पर राजा कान्हड़देव ने उनसे कहा कि हमारे राज्य में तुम लोग गाय मार कर नहीं खा सकते।

इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-

इस पर मंगोल सैनिकों ने कहा कि वे राजा कान्हड़देव के मित्र हैं, उसके अधीन नहीं हैं। हम उसका आदेश स्वीकार नहीं कर सकते। राजा कान्हड़देव ने उन्हें चेतावनी दी कि वे हमारी शरण में हैं और हमारे राज्य में रह रहे हैं अतः उन्हें राजा का आदेश मानना होगा।

मंगोल सैनिक कुछ दिन तो शांत रहे किंतु जब फिर से वही होने लगा तो कान्हड़देव के सैनिकों ने एक योजना बनाई। उन्होंने मंगोलों से कहा कि वे अपनी वेश्याएं कुछ दिनों के लिए हमें दे दें। मंगोल समझ गए कि अब उनका जालोर राज्य में रहना कठिन है, अतः वे चुपचाप अपनी वेश्याओं को लेकर रातों-रात जालोर छोड़कर भाग गए। कान्हड़देव के सैनिक यही चाहते थे, अतः उन्होंने मंगोलों को जाने से नहीं रोका।

To purchase this book, please click on photo.

मंगोल सैनिक जालोर से तो भाग आए किंतु उनके लिए भारत में रहना आसान नहीं था। वे दिल्ली लौटकर जाते तो उलूग खाँ और नुसरत खाँ उन्हें मार डालते। उन्होंने सुना था कि रणथंभौर का चौहान शासक हम्मीरदेव अपने वचन का बड़ा पक्का है तथा शरण में आए हुओं की रक्षा अपने प्राण देकर भी करता है। अतः वे जालोर से सीधे रणथंभौर की तरफ भागे।

जालोर और रणथंभौर के शासक शाकंभरी के चौहानों की ही दो शाखाएं थीं। फिर भी मंगोल सैनिकों के पास अपनी रक्षा के लिए हिन्दू राजाओं की शरण प्राप्त करने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं था। रणथंभौर के राजा हम्मीरदेव ने उन्हें शरणागत जानकर अपने दुर्ग में शरण दे दी।

जब अल्लाउद्दीन खिलजी को ज्ञात हुआ कि विद्रोही मंगोल सैनिक जालोर से रणथंभौर भाग आए हैं तो ई.1299 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने उलूग खाँ तथा नुसरत खाँ को एक सेना देकर रणथंभौर पर आक्रमण करने भेजा।

रणथंभौर के राजा हम्मीरदेव ने दुर्ग के अन्दर रहकर रक्षात्मक युद्ध करने का निश्चय किया। इस कारण अल्लाउद्दीन के सेनापति बिना किसी व्यवधान के रणथंभौर दुर्ग के निकट पहुंच गए तथा दुर्ग के चारों ओर घेरा डाल दिया। रणथंभौर का दुर्ग चित्तौड़ तथा जालोर की तरह ही अजेय एवं दुर्गम माना जाता था। यद्यपि यह दुर्ग इल्तुतमिश के समय में कुछ समय के लिए दिल्ली सल्तनत के अधीन रह चुका था किंतु इल्तुतमिश के जीवनकाल में ही यह फिर से चौहानों के अधीन आ गया था।

एक दिन जब नुसरत खाँ दुर्ग के चारों ओर घेरा डालकर पड़ी हुई अपनी सेना का निरीक्षण कर रहा था तब अचानक दुर्ग से पत्थरों की बरसात होने लगी। एक पत्थर नुसरत खाँ के सिर में आकर लगा और नुसरत खाँ मर गया। दिल्ली की सेना के लिए यह एक बड़ा धक्का था। अभी दिल्ली की सेना संभल भी नहीं पाई थी कि राजपूतों की एक सेना ने दुर्ग से बाहर निकलकर दिल्ली की सेना पर आक्रमण कर दिया। इस पर तुर्कों को घेरा उठाकर भागना पड़ा।

जब सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी को इस घटना की सूचना मिली तो उसका माथा ठनका। उसकी सेनाएं जालोर, जैसलमेर तथा रणथम्भौर से पिटकर भाग रही थीं। इसलिए अल्लाउद्दीन खिलजी ने स्वयं रणथम्भौर पर आक्रमण करने का निश्चय किया। उसने बड़ी भारी तैयारी के साथ एक और विशाल सेना के साथ दिल्ली से रणथम्भौर के लिए प्रस्थान किया।

जब अल्लाउद्दीन खिलजी दिल्ली से रणथंभौर जा रहा था तब वह मार्ग में तिलपत नामक स्थान पर रुका और उसने कुछ दिन वहीं रहकर शिकार खेलने का निश्चय किया। एक दिन जब अल्लाउद्दीन खिलजी जंगल में शिकार खेल रहा था और उसके सैनिक उससे कुछ दूर हो गए तब अवसर देखकर अल्लाउद्दीन खिलजी के भतीजे अकत खाँ ने अपने सैनिकों के साथ मिलकर सुल्तान पर प्राणघातक हमला किया। इस हमले में सुल्तान बुरी तरह से घायल हो गया परन्तु उसके प्राण बच गए। इतने में ही अल्लाउद्दीन खिलजी के सैनिक वहाँ आ गए और उन्होंने अकत खाँ तथा उसके साथियों को पकड़ कर उन्हें मार डाला।

अल्लाउद्दीन खिलजी के आदेश से अकत खाँ के समस्त भाइयों की सम्पत्ति जब्त करके उन्हें बंदी बना लिया गया जबकि इन भाइयों का इस षड़यंत्र एवं हमले से कोई सम्बन्ध नहीं था। इस दुर्घटना के बाद अल्लाउद्दीन खिलजी अपने घावों का उपचार करवाकर फिर से रणथंभौर के लिए रवाना हो गया।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source