ई.1927 में मिस कैथरीन मेयो नामक एक अमरीकी महिला ने ‘मदर इण्डिया’ शीर्षक से एक पुस्तक लिखकर हिन्दुओं को पराधीन, पतित, घृणित तथा हेय जाति बताया। उसने भारतीय समाज में शूद्रों और महिलाओं की स्थिति को संसार के समक्ष उजागर किया। उसने दावा किया कि उसने भारत में रहकर अपनी आंखों से देखा कि भारत के उच्च जातियों के लोग निम्न जाति के लोगों से तथा पुरुष वर्ग स्त्री जाति से कितना बुरा बर्ताव करता है तथा उनका शोषण करता है। इस कारण आम हिन्दुस्तानी का जीवन बहुत कष्टमय है। भारतीय महिलाओं की स्थिति पर कटाक्ष करते हुए उसने लिखा-
‘भारतीय स्त्रियां व्यायाम करना पसंद नहीं करती हैं और उसे दबाव में करती हैं। यदि वे चाहें, तो खुली हवा में भी नहीं जाएं। एक औसत छात्रा बहुत कमजोर होती है। उसे अच्छे भोजन, व्यायाम और इलाज के लिए व्यायाम की जरूरत है किंतु उसका सीना सिकुड़ा हुआ और पीठ प्रायः झुकी हुई होती है।’
मिस कैथरीन मेयो की पुस्तक मर इण्डिया हिन्दू धर्म तथा संस्कृति पर गंभीर हमला करती है। इस पुस्तक की आड़ में मिस कैथरीन ने लिखा कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के नेता भी उच्च वर्णों में जन्मे हैं, इसलिए वे सब भी निंदनीय हैं। यह पुस्तक पूरे यूरोप में बिकने लगी जिसके कारण हिन्दू जाति की बड़ी बदनामी हुई।
मिस कैथरीन की पुस्तक मदर इण्डिया की प्रतिक्रिया में पंजाब में शिक्षा एवं समाज सुधार के क्षेत्र में कार्यरत प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय ने ‘दुखी भारत’ शीर्षक से एक मोटी पुस्तक लिखी जिसमें अमरीकियों एवं यूरोपियनों को घृणित एवं हेय बताया तथा उन्हीं पर हिन्दुओं की वर्तमान स्थिति का ठीकरा फोड़ा। लाला लाजपतराय ने मिस कैथरीन से पूछा कि अकारण ही हिंदुओं को अपमानित करने से अमरीकियों को क्या लाभ होने वाला है?
लाला लाजपत राय ने अंग्रेजों को भारत का शोषण करने के लिए धिक्कारा तथा अमीरीकियों को अपने ही देश में रह रही हबशी जाति का शोषण करने के लिए धिक्कारते हुए लिखा कि अमरीका में जितनी जाति के लोग रहते हैं या सैर के लिए आते हैं, उन सबकी पाशविक वासनाओं को तृप्त करने के लिए हबशी महिलाएं विवश की जाती हैं। इस नाम मात्र की हबशी जाति की नसों में मनुष्य की प्रत्येक जाति या उपजाति का रक्त दौड़ रहा है। वह रक्त सम्मिश्रण समस्त जाति में ही नहीं, भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में भी पाया जाता है और इस प्रकार मिश्रित हुआ है कि वह पृथक् नहीं किया जा सकता।
लाला लाजपत राय द्वारा लिखी गई पुस्तक की गूंज पूरी दुनिया में पहुंची तथा अमरीकियों एवं समस्त यूरोपियन जातियों सहित अंग्रेजों को भी इस बात का अहसास हो गया कि अब हिन्दू जाति चुप होकर बैठने वाली नहीं है। वह शीघ्र ही उठ खड़ी होगी और अंग्रेजों को कान से पकड़कर भारत से बाहर कर देगी।
लाला लाजपत राय की यह पुस्तक ही उनके जीवन की अंतिम कृति सिद्ध हुई। इस पुस्तक के प्रकाशित होने के के अगले वर्ष ही ई.1928 में अंग्रेजों ने लाला लापजत राय को भारत की सड़कों पर उस समय लाठियों से पीट-पीटकर मार दिया जिस समय वे साइमन कमीशन के विरोध में लाहौर की सड़कों पर एक जुलूस निकाल रहे थे। अंग्रेजों की ये लाठियां ही अंग्रेजी सरकार के कफन की कीलें सिद्ध हुईं और अगले 19 वर्षों में ही अंग्रेजी सरकार भी अपनी मौत मर गई।
डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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