Sunday, December 22, 2024
spot_img

तिलंगे

अठ्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के समय तिलंगे शब्द बड़ा विख्यात हुआ। अंग्रेज अधिकारी इस शब्द से भयभीत थे तो भारतीयों के सीने इस शब्द को सुनकर गर्व से फूल जाते थे। आज भी बहुत से नौजवान जानना चाहते हैं कि तिलंगे कौन थे और कहाँ से आए थे!

अठ्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति होने से पहले अंग्रेजों की राजधानी कलकत्ता थी। इस कारण यह स्वाभाविक ही था कि उनकी सबसे बड़ी सेना कलकत्ता के पास बैरकपुर में रहती थी जिसे बंगाल आर्मी कहा जाता था।

यह एशिया की सबसे बड़ी एवं उस काल की सबसे आधुनिक फौज थी, उसके 1 लाख 39 हजार सिपाही थे जो भारत के विभिन्न स्थानों पर नियुक्त थे। स्वाभाविक ही था कि इस सेना में बंगाल, बिहार तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश के सैनिकों की संख्या अधिक होती।

पूरे आलेख के लिए देखें यह वी-ब्लॉग-

बंगाल आर्मी के इन सैनिकों को दिल्ली एवं उसके आसपास के प्रदेश में पुरबिया एवं तिलंगे कहा जाता था। 1857 में बैरकपुर की क्रांति का बिगुल बजाने वाले सिपाही यही पुरबिया थे।

लाल किले की दर्दभरी दास्तान - bharatkaitihas.com
TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

अठ्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के समय मेरठ में हथियार उठाने वाले सिपाही भी यही पुरबिया थे। सबसे पहले दिल्ली पहुंचने वाले क्रांतिकारी सैनिक भी यही पुरबिया थे। बंगाल आर्मी के इन सैनिकों को भारतीय इतिहासकारों ने क्रांतिकारी सैनिक तथा अंग्रेज इतिहासकारों ने विद्रोही सैनिक एवं बागी कहकर पुकारा है किंतु दिल्ली के लोग इन्हें पुरबिया एवं तिलंगे कहते थे। तिलंगे शब्द का वास्तविक अर्थ तो ज्ञात नहीं किंतु परम्परागत रूप से किसी की परवाह न करने वाले लड़ाके को तिलंगा कहा जाता है।

चूंकि बंगाल आर्मी के ये पुरबिया सैनिक न तो किसी की परवाह करते थे और न किसी से युद्ध या झगड़ा करने से डरते थे, संभवतः इसलिए इन्हें दिल्ली के लोगों ने तिलंगे कहा। यद्यपि तत्कालीन अंग्रेज इतिहासकारों एवं मुगल इतिहासकारों ने इन तिलंगों को असभ्य एवं मुंहफट कहा है किंतु वास्तविकता यह है कि भारत माता इन तिलंगों की चिरकाल तक ऋणी रहेगी क्योंकि इन तिलंगों ने अठ्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के समय राष्ट्रीय गौरव एवं स्वातंत्र्य की जो ज्वाला प्रज्जवलित की, वही ज्वाला अंततः 1947 में अंग्रेजी शासन को भस्म करके भारत राष्ट्र को स्वतंत्रता दिलवा सकी।

यद्यपि इन तिलंगों में से अधिकांश तिलंगे कुछ ही समय में अंग्रेजी सेनाओं द्वारा ढूंढ-ढूंढ कर मार दिए गए किंतु ये तिलंगे अपने पीछे ऐसा इतिहास छोड़ गए जिसकी मिसाल अन्य देशों के इतिहास में मिलनी असंभव है। भारत माता इन तिलंगों की सदैव ऋणी रहेगी।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source