एडविना माउण्टबेटन ने जवाहर लाल नेहरू को भारत-विभाजन के लिए तैयार किया
बँटवारा ही एकमात्र रास्ता
वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन की पत्नी एडविना माउण्टबेटन ने 1947 की गर्मियों में पंजाब के दंगाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया। अस्पतालों और दंगे से तबाह गांवों में उसने साम्प्रदायिक क्रूरता के दृश्य देखे- हाथ-कटे बच्चे, पेट-कटे हुए गर्भवती औरतें, सारे परिवार में अकेला बचा रहने वाला बच्चा! ….. उसका दृढ़ विश्वास हो गया कि उसके पति और साथी ठीक कहते है, बंटवारा ही एकमात्र रास्ता है।
एडविना एडविना माउण्टबेटन के तर्क से सहमत होकर माउंटबेटन ने गांधी, नेहरू और पटेल को भारत के विभाजन के लिये तैयार किया। गांधीजी ने विभाजन को मानने से इंकार कर दिया किंतु नेहरू और पटेल मान गये। जब मौलाना ने नेहरू को विभाजन का समर्थन करते देखा तो वह दंग रह गए।
मौलाना ने लिखा है- ‘विभाजन के सबसे बड़े विरोधी जवाहरलाल नेहरू माउण्टबेटन के भारत आगमन के एक माह में ही भारत विभाजन की आवश्यकता से सहमत हो गए।’
जवाहरलाल नेहरू के विचारों में परिवर्तन के लिए माउण्टबेटन को जिम्मेदार बताते हुए मौलाना आजाद ने एडविना की भूमिका की ओर भी संकेत किया है- ‘जवाहरलाल नेहरू माउंटबेटन से प्रभावित थे किंतु नेहरू माउंटबेटन से भी अधिक एडविना से प्रभावित थे। वह न केवल अत्यंत बुद्धिमती थी अपितु अत्यधिक आकर्षक एवं मैत्रीपूर्ण स्वभाव की महिला थी। वह अपने पति की गहरी प्रशंसक थी तथा बहुत से मामलों में उसने अपने पति को अपने विचार बदलने पर विवश भी किया था।’
मौलाना ने नेहरू के विचारों में परिवर्तन के लिए नेहरू के मित्र कृष्णा मेनन को भी संभावित उत्तरदायी माना है। वे लिखते हैं- ‘नेहरू प्रायः कृष्णा मेनन की सलाह सुनते थे। मुझे यह देखकर बहुत प्रसन्नता नहीं हुई कि मेनन ने इस मामले में नेहरू को गलत सलाह दी थी।’
पटेल भारत-विभाजन के लिए पहले से तैयार थे। यह कहना गलत होगा कि सरदार पटेल को माउण्टबेटन ने भारत-विभाजन के लिए समझाया या तैयार किया। सरदार तो पहले से ही विभाजन के पक्ष में थे किंतु वे न केवल प्रमुख कांग्रेसी नेता थे अपितु उस काल की राजनीति में गांधीजी के सबसे बड़े सहायक थे, इसलिए प्रकट रूप से वे गांधीजी की नीति का समर्थन करते थे कि देश का विभाजन नहीं होना चाहिए किंतु वे जानते थे कि तत्कालीन परिस्थितियों में यह संभव नहीं था।
अबुल कलाम का दुःख
अबुल कलाम ने लिखा है- ‘मैं आश्चर्यचकित एवं दुःखी हुआ जब पेटल ने यह कहा कि हम पसंद करें या नहीं किंतु भारत में दो राष्ट्र हैं। पटेल इस बात से सहमत थे कि मुसलमानों और हिन्दुओं को अब एक देश में एकीकृत नहीं किया जा सकता।’
मौलाना एवं गांधी के विचारों में बहुत समानता थी किंतु पटेल और मौलाना के विचारों में इतना अधिक अंतर था कि मौलाना और पटेल कभी एक दूसरे की आंखों में आंखें डालकर बात नहीं करते थे। इस बात का क्या अर्थ था?
लेखक की राय में इस बात का सीधा सा अर्थ यही निकलता था कि पटेल और गांधीजी के विचारों में भी बहुत विरोध था किंतु पटेल गांधीजी का विरोध नहीं करते थे। मौलाना और गांधीजी विभाजन नहीं चाहते थे किंतु पटेल चाहते थे, और वे इसे भारत की राजनीतिक एवं साम्प्रदायिक समस्याओं के अंत के लिए एकमात्र उपाय के रूप में देख रहे थे।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता