Thursday, November 21, 2024
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अध्याय – 38 – मुगल स्थापत्य कला (द)

जहाँगीर कालीन स्थापत्य

जहाँगीर को भवन निर्माण में अकबर जैसी रुचि नहीं थी। इसलिए उसके शासन में स्थापत्य का कोई विशेष विकास नहीं हुआ। जहाँगीर ने स्थापत्य की अपेक्षा चित्रकला को अधिक महत्व दिया। यद्यपि जहाँगीर के शासन-काल में बहुत कम इमारतें बनी थीं परन्तु इस काल में उपवन लगाने की नई शैली विकसित हुई। काश्मीर में जहाँगीर द्वारा बनवाया हुआ शालीमार बाग और उसके साले आसफ खाँ का बनवाया हुआ निशात बाग आज भी मौजूद है।

अकबर ने अपने जीवन काल में आगरा के बाहर सिकन्दरा में अपना मकबरा बनाने की योजना बनाई। संभवतः उसके जीवनकाल में ही इसका निर्माण कार्य भी आरम्भ हो गया किंतु इस इमारत को बाद में जहाँगीर ने पूरा करवाया। जहाँगीर की प्रिय बेगम नूरजहाँ ने आगरा में यमुना नदी के तट पर सफेद संगमरमर से अपने पिता एतिमादुद्दौला का विशाल मकबरा बनवाया। नूरजहाँ ने लाहौर के निकट जहाँगीर का मकबरा भी बनवाया। दिल्ली में बना खानखाना का मकबरा भी जहाँगीर काल की प्रमुख इमारतों में से है।

जहाँगीर के समय आगरा में निर्मित भवन: आगरा से बाहर सिकन्दरा में स्थित अकबर के मकबरे की योजना स्वयं अकबर ने बनाई थी किंतु इसका निर्माण जहाँगीर ने अकबर की मृत्यु के बाद अपनी निगरानी में करवाया। मकबरे के चारों ओर बाग लगाया गया तथा एक बड़ा एवं ऊँचा दरवाजा सफेद पत्थर की मीनारों सहित बनाया गया। यह मकबरा परम्परागत इस्लामी शैली का मकबरा नहीं है।

मुसलमानों के मकबरों में गुम्बद बनाने की प्रथा प्राचीन समय से प्रचलित थी किन्तु इस मकबरे पर कोई गुम्बद नहीं है। इसकी बनावट बौद्ध विहार जैसी है और इसका आकार पिरामिड के जैसा है। मकबरे के बाहर बने उद्यान के चारों ओर सुंदर प्रवेशद्वार हैं किंतु इसका मुख्य प्रवेश-द्वार सर्वाधिक आकर्षक है जिस पर संगमरमर का जड़ाऊ कार्य किया गया है। इसके चारों ओर तथा चारों कोनों पर संगमरमर की एक-एक ऊँची मीनार है। प्रवेश द्वार पर कुशलतापूर्वक की गई पच्चीकारी इसकी शोभा बढ़ाती है।

पर्सी ब्राउन के अनुसार ‘अब तक इस प्रकार की एक भी मीनार भारतीय स्थापत्य कला में प्रयुक्त हुई दिखाई नहीं देती है।’

यह मकबरा पाँच मंजिली इमारत है जिसमें प्रत्येक ऊपर की मंजिल नीचे की मंजिल की अपेक्षा आकार में छोटी होती गई है। इसके प्रत्येक प्रवेशद्वार पर फारसी की पंक्तियां खुदी हुई हैं। ये पंक्तियां अकबर के जीवन पर प्रकाश डालती हैं। अकबर की कब्र संगमरमर की बनी हुई है। भू-तल पर बनी कब्र असली है जबकि पहली मंजिल पर बनी कब्र नकली है।

दोनों कब्रों का निर्माण संगमरमर के पत्थरों से किया गया है तथा उन पर विभिन्न प्रकार के फूल बनाए गए हैं। कब्र के सिराहने अल्लाहु अकबर और पैरों की तरफ जल्ले-जलालहु उभरे हुए अक्षरों में खुदा हुआ है। मकबरे में अल्लाह के निन्यानवे नामों के साथ हिन्दुओं का स्वास्तिक चिह्न तथा ईसाइयों का क्रॉस भी बना हुआ हैं।

जहाँगीर काल का दूसरा प्रमुख भवन एतमादुद्दौला का मकबरा है। इसका निर्माण ई.1625 में नूरजहाँ ने अपने पिता घियासुद्दीन बेग की स्मृति में लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से आगरा में करवाया था। मुगल काल के अन्य मकबरों से अपेक्षाकृत छोटा होने से, इसे शृंगारदान भी कहा जाता है। इस मकबरे पर पैट्रा ड्यूरा की सजावट की गई है। इस मकबरे का स्थापत्य ताजमहल से साम्य रखता है। इस कारण इसे ‘बेबी ताज’ भी कहा जाता है।

कई जगह इस मकबरे की नक्काशी ताजमहल से भी अधिक सुंदर है। इस मकबरे के मध्य में एशियाई शैली का गुम्बद स्थित है। यहाँ के बगीचे और रास्ते इसकी सुंदरता को और भी बढ़ाते हैं। यह भारत में बना पहला मकबरा है जो पूरी तरह सफेद संगमरमर से बनाया गया। मकबरे को बड़े बगीचे में बनया गया है। मकबरे में रोशनी लाने के लिए जालीदार संगमरमर लगाया गया है।

मकबरे की दीवारों पर पेड़ पौधों, जानवरों और पक्षियों एवं मनुष्यों के चित्र उकेरे गए हैं। जबकि इस्लाम में मनुष्य आकृति को सजावट के रूप में इस्तेमाल करने की मनाही है। बटेश्वर से मिले शिलालेख के अनुसार यह मूलतः कच्छवाहा राजा परमार्दिदेव का महल था।

शाहजहाँ ने ई.1637 में आगरा में अंगूरी बाग का निर्माण करवाया। यह चारबाग शैली का उद्यान है तथा इसमें संगमरमर की बारादरियां, हौज, फव्वारे एवं बरामदे बने हुए हैं। बाग के उत्तर-पूर्व में शाही हम्माम बना हुआ है जिसमें आकर्षक भित्ति चित्र बने हैं। यह उद्यान लाल किले के खास बाग का हिस्सा है तथा शाहजहाँ के हरम की औरतों द्वारा प्रयुक्त किया जाता था। उस काल में इस बाग में उत्तम किस्म के अंगूरों की बेलें लगाई गई थीं।

जहाँगीर के समय अन्य नगरों में निर्मित भवन : प्रयागराज में स्थित खुसरो बाग का निर्माण जहाँगीर ने कवाया था। उसने इस उद्यान में अपनी कच्छवाही बेगम मानबाई, उसके पुत्र खुसरो मिर्जा तथा पुत्री सुल्ताना निथार बेगम के मकबरे बनवाए। ये मकबरे मुगल शाहजादों एवं बेगमों के मकबरों की तुलना में बहुत छोटे तथा साधारण हैं।

जहाँगीर ने अपनी बेगम मेहरुन्निसा के लिये श्रीनगर में डल झील के किनारे शालीमार बाग बनवाया। इस बाग में चार स्तर पर उद्यान बने हैं एवं जलधारा बहती है। इसकी जलापूर्ति निकटवर्ती हरिवन बाग से होती है। जहाँगीर की बेगम नूरजहां ने जालंधर से 40 किलोमीटर दूर नूरमहल सराय का निर्माण करवाया। यह लाल पत्थर से बना हुआ दो मंजिला भवन है। इसे अष्टकोणीय बनाया गया है।

इसके पश्चिमी दरवाजे को लाहौर दरवाजा कहा जाता है। इसके बाहरी पैनल्स पर पशु-पक्षी उत्कीर्ण हैं। हाथियों की लड़ाई तथा घुड़सवारों द्वारा चौगान खेलने के दृश्य भी बनाए गए थे।

ई.1607 में जहाँगीर ने पंजाब में लौहार से 38 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में शेखुपुरा नामक उपनगर की स्थापना की जो अब पाकिस्तान में है। जहाँगीर ने यहाँ स्थित प्राचीन दुर्ग में कई निर्माण करवाए तथा अपने एक प्रिय हिरन ‘मनसिराज’ की स्मृति में ‘हिरन मीनार’ का निर्माण करवाया। यह संभवतः अकेला स्मारक है जो मुगलों ने किसी पशु की स्मृति में करवाया था।

फतेहपुर सीकरी में भी हिरन मीनार है किंतु वह हिरनों के शिकार के लिए है। हिरन मीनारों के नाम से अन्य स्थानों पर भी मीनारें मिलती हैं। अकबर ने कोस मीनारों पर उन हिरनों के सींग लगाए थे जिना शिकार उसने या उसके सैनिकों ने किया था।

जहाँगीर ने अजमेर में आनासागर झील के किनारे दौलत बाग बनवाया जिसमें संगमरमर की बारादरियां एवं मेहराबयुक्त दरवाजे बनवाए। जहाँगीर ने दौलत बाग से कैसर बाग जाने वाले मार्ग पर कुछ महल बनवाये जिनके कुछ खण्डहर आज भी देखे जा सकते हैं। जहाँगीर ने यहाँ पर कुछ बारादरियां भी बनवाईं। दौलतबाग की तरफ आनासागर झील की सुंदर रेलिंग भी संभवतः जहाँगीर द्वारा बनवाई गई थी। झील के तट पर बने ऊंचे चबूतरे पर जहाँगीर द्वारा कुछ खूबसूरत मेहराबदार दरवाजे बनाए गए थे। ये दरवाजे भी संगमरमर से बने हैं।

तारागढ़ की पश्चिमी घाटी में जहाँगीर ने सुन्दर और विशाल महल का निर्माण करवाया जो ई.1615 में बनकर तैयार हुआ। तारागढ़ की घाटी में जहाँगीर ने एक शिकारगाह का भी निर्माण करवाया। जहाँगीर तथा उसके अमीरों एवं बेगमों ने लाहौर तथा उसके आसपास के नगरों में कई इमारतें बनवाईं। इनमें अनारकली का मकबरा, मकातिब खाना, बेगम शाही मस्जिद, वजीर खाँ मस्जिद, जहाँगीर का मकबरा अधिक प्रसिद्ध हैं।

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