Saturday, December 21, 2024
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4. मुहम्मद बिन कासिम ने भारत का जेहाद से प्रथम परिचय करवाया!

खलीफाओं को भारत आने वाले अरबी व्यापारियों के माध्यम से भारत की अपार सम्पत्ति की जानकारी थी। उन्हें यह भी ज्ञात था कि भारत के लोग ‘बुत-परस्त’ अर्थात् मूर्ति-पूजक हैं। इसलिए खलीफाओं ने भारत की सम्पत्ति लूटने तथा मूर्ति-पूजकों के देश पर आक्रमण करके इस्लाम का प्रचार करने का निश्चय किया।

अरब वालों के भारत पर आक्रमण करने के चार प्रमुख लक्ष्य प्रतीत हेाते हैं। उनका पहला लक्ष्य भारत की अपार सम्पत्ति को लूटना था। उनका दूसरा लक्ष्य भारत के स्त्री-पुरुषों एवं बच्चों को पकड़कर उन्हें गुलाम बनाने एवं मध्यएशिया में ले जाकर बेचने का था। अरब वालों का तीसरा लक्ष्य भारत में इस्लाम का प्रचार करना तथा मूर्तियों और मन्दिरों को तोड़कर कुफ्र मिटाना था। उनका चौथा लक्ष्य भारत में अपना साम्राज्य स्थापित करना था।

आठवीं शताब्दी ईस्वी के प्रारम्भ में अरब व्यापारियों के एक जहाज को सिन्ध के लुटेरों ने लूट लिया। इस पर ईरान के गवर्नर हज्जाज को, जो खलीफा के प्रतिनिधि के रूप में ईरान पर शासन करता था, सिंध पर आक्रमण करने का बहाना मिल गया। उसने खलीफा अव वालिद (प्रथम) से आज्ञा लेकर अपने भतीजे मुहम्मद बिन कासिम की अध्यक्षता में एक सेना सिन्ध पर आक्रमण करने के लिए भेजी। हज्जाज का यह भतीजा, हज्जाद का दामाद भी था।

इन दिनों सिंध में दाहिरसेन नामक हिन्दू राजा शासन कर रहा था। मुहम्मद बिन कासिम ने ई.711 में विशाल सेना लेकर देबुल नगर पर आक्रमण किया। इस नगर में हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग रहते थे। ये लोग शांति के पुजारी थे तथा युद्ध कला से अपरिचित थे। कासिम की सेनाओं द्वारा किए गए आक्रमण से देबुलवासी अत्यन्त भयभीत हो गए और वे मुस्लिम सेना का किंचित् भी प्रतिरोध नहीं कर सके। इस कारण देबुल पर बड़ी आसानी से मुसलमानों का अधिकार हो गया।

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मुहम्मद बिन कासिम ने देबुलवासियों को आज्ञा दी कि वे मुसलमान बन जाएं। चूंकि भारत में राजाओं द्वारा अपनी प्रजा को इस तरह के आदेश दिए जाने की परम्परा नहीं थी, इसलिए सिंध के शांतिप्रिय लोगों ने मुहम्मद बिन कासिम का यह आदेश मानने से मना कर दिया। इस पर मुहम्मद बिन कासिम ने अपनी सेनाओं को आदेश दिया कि वे उन देबुलवासियों की हत्या कर दें जो मुसलमान बनने से मना कर रहे हैं।

ईरानी गर्वनर हज्जाज के भतीेज और दामाद मुहम्मद बिन कासिम के आदेश पर ईरानी सेनाओं ने देबुल नगर में रहने वाले सत्रह वर्ष से ऊपर की आयु के समस्त पुरुषों को तलवार के घाट उतार दिया। देबुल की स्त्रियों तथा बच्चों को गुलाम बना लिया गया, नगर को लूटा गया और लूट का सामान मुस्लिम सैनिकों में बाँट दिया गया।

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देबुल पर अधिकार कर लेने के बाद मुहम्मद बिन कासिम की विजयी सेना आगे बढ़ी। नीरून, सेहयान आदि नगरों पर प्रभुत्व स्थापित कर लेने के उपरान्त वह सिंध के शासक दाहिरसेन की राजधानी ब्राह्मणाबाद पहुँची। यहाँ पर राजा दाहिरसेन उसका सामना करने के लिए पहले से ही तैयार था। उसने बड़ी वीरता तथा साहस के साथ शत्रु का सामना किया परन्तु दाहिरसेन परास्त हो गया और उसने रणक्षेत्र में ही वीरगति प्राप्त की। उसकी रानी ने अन्य स्त्रियों के साथ चिता में बैठकर अपने सतीत्व की रक्षा की।

ब्राह्मणाबाद पर प्रभुत्व स्थापित कर लेने के बाद मुहम्मद बिन कासिम ने ‘मूलस्थान’ की ओर प्रस्थान किया जिसे अब ‘मुल्तान’ कहा जाता है। मूलस्थान के शासक ने बड़ी वीरता तथा साहस के साथ शत्रु का सामना किया परन्तु लम्बी घेराबंदी के कारण मूलस्थान के दुर्ग में जल का अभाव हो जाने के कारण मूलस्थान के शासक को आत्म-समर्पण करना पड़ा। यहाँ भी मुहम्मद बिन कासिम ने भारतीय सैनिकों की हत्या करवाई और उनकी स्त्रियों तथा बच्चों को गुलाम बना लिया।

मूलस्थान के जिन लोगों ने मुहम्मद बिन कासिम को जजिया देना स्वीकार कर लिया, उन्हें मुसलमान नहीं बनाया गया। यहाँ पर हिन्दुओं के मन्दिरों को भी नहीं तोड़ा गया परन्तु उनकी सम्पत्ति लूट ली गई। मूलस्थान पर विजय के बाद मुहम्मद बिन कासिम को अत्यधिक धन की प्राप्ति हुई जिससे उसके मन में बेईमानी आ गई। उसने भारत से लूटा गया समस्त धन, स्त्रियाँ तथा गुलाम अपने पास रख लिए। इस कारण खलीफा अव वालिद, मुहम्मद बिन कासिम से अप्रसन्न हो गया। खलीफा ने उसे सम्मानित करने के बहाने से बगदाद बुलवाया तथा उसकी हत्या करवा दी।

सिन्ध पर अधिकार कर लेने के उपरान्त अरबी आक्रमणकारियों को सिन्ध क्षेत्र के शासन की व्यवस्था करनी पड़ी। चूंकि मुसलमान विजेता थे, इसलिए कृषि करना उनकी शान के विरुद्ध था। फलतः कृषिकार्य हिन्दुओं के पास रहा। हिन्दू किसान, मुस्लिम विजेताओं को भूमि-कर देने लगे। यदि किसी क्षेत्र के किसान सिंचाई के लिए राजकीय नहरों का प्रयोग करते थे तो उन्हें अपनी उपज का 40 प्रतिशत और यदि राजकीय नहरों का प्रयोग नहीं करते थे तो उपज का 25 प्रतिशत भूराजस्व देना पड़ता था।

जिन हिन्दुओं ने इस्लाम को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था, उन्हें भूमि-कर के साथ-साथ जजिया भी देना पड़ता था। इससे हिन्दुओं की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी। हिन्दू प्रजा को अनेक प्रकार की असुविधाओं का सामना करना पड़ा। वे अच्छे वस्त्र नहीं पहन सकते थे। घोड़े की सवारी नहीं कर सकते थे। न्याय का कार्य काजियों के हाथों में चला गया जो कुरान के नियमों के अनुसार फैसले करते थे। इसलिए हिन्दुओं के साथ प्रायः अत्याचार होता था। अरब वाले बहुत दिनों तक सिन्ध में अपनी प्रभुता स्थापित नहीं रख सके और उनका शासन अस्थाई सिद्ध हुआ।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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