Thursday, April 24, 2025
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बागी अमीरों का दमन करने के लिए उनकी खाल में भूसा भरा गया (131)

अफगानिस्तान में मंत्रियों को अमीर कहा जाता था। मुहम्मद बिन तुगलक के अमीरों ने बड़ी संख्या में विद्रोह किए। बागी अमीरों का दमन करने के लिए मुहम्मद बिन तुगलक ने उनकी खाल में भूसा भरवा कर देश भर में घुमाया।

पिछली कड़ी में हमने चर्चा की थी कि मुहम्मद बिन तुगलक ने करांचल, हिमाचल, नगरकोट एवं चीन पर आक्रमण करके अपनी सेनाओं को बहुत बड़ी क्षति पहुंचाई तथा ये योजनाएं असफल हो गईं जिससे सल्तनत की वास्तविक शक्ति को बहुत बड़ा आघात पहुंचा। इस कारण सल्तनत में चारों ओर विनाश के लक्षण दिखाई देने लगे।

इतिहासकारों के अनुसार मुहम्मद तुगलक के शासन काल के अन्तिम 16 वर्ष विपत्ति भरे थे। इस अवधि में सल्तनत के विभिन्न भागों में विद्रोह उठ खड़े हुए। ये विद्रोह अत्यन्त व्यापक क्षेत्र में विस्तृत थे। यदि एक विद्रोह उत्तर में होता तो दूसरा दक्षिण में और यदि एक विद्रोह पश्चिम में होता तो दूसरा सुदूर पूर्व में।

इससे सेना के संचालन में बड़ी कठिनाई होती थी। मुहम्मद बिन तुगलक के समय में चौंतीस विद्रोह हुए जिनमें से 27 दक्षिण भारत में हुए। इन विद्रोहों के कारण सल्तनत बिखरने लगी और कई स्वतन्त्र राज्यों की स्थापना हो गयी। बागी अमीरों का दमन करना आवश्यक हो गया।

सबसे पहला विद्रोह ई.1327 में मुहम्मद बिन तुगलक के चचेरे भाई वहाबुद्दीन गुर्शस्प ने किया जो गुलबर्गा के निकट सागर का सूबेदार था। शाही सेना ने इस विद्रोह को दबा दिया। मुहम्मद बिन तुगलक ने गुर्शस्प की खाल में भूसा भरवाकर उसे भारत के कई शहरों में प्रदर्शित करवाया और उसके शरीर का मांस चावल के साथ पकाकर उसके परिवार के पास खाने के लिए भेजा।

दूसरा विद्रोह ई.1328 में मुल्तान के सूबेदार बहराम आईबा उर्फ किश्लू खाँ ने किया। स्वयं मुहम्मद बिन तुगलक ने इस विद्रोह का दमन किया। बहराम आईबा का वध कर दिया गया। लाहौर का सूबेदार अमीर हुलाजू एक शक्तिशाली अमीर था। उसने भी मुहमद बिन तुगलक के विरुद्ध विद्रोह किया तथा शाही सेना द्वारा मारा गया।

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मुहम्मद बिन तुगलक के विरुद्ध तीसरा विद्रोह ई.1335 में मदुरा के गवर्नर जलालुद्दीन एहसान शाह ने किया। इस समय दो-आब में अकाल था और प्रजा में असन्तोष फैला हुआ था। इससे लाभ उठाकर जलालुद्दीन ने विद्रोह कर दिया। सुल्तान ने अपने प्रधानमन्त्री ख्वाजाजहाँ को इस विद्रोह का दमन करने के लिए भेजा परन्तु वह धार से वापस लौट आया।

अब मुहमद बिन तुगलक ने स्वयं दक्षिण के लिए प्रस्थान किया। जब सुल्तान तेलंगाना पहुँचा, तब वहाँ बड़े जोरों का हैजा फैल गया और मुहमद बिन तुगलक के बहुत से सैनिक मर गए। फलतः सुल्तान ने बागी अमीरों का दमन बीच में ही छोड़कर दिल्ली लौटने का निश्चय किया और एहसान शाह स्वतन्त्र हो गया।

एहसान शाह के विद्रोह का प्रभाव सल्तनत के अन्य भागों पर भी पड़ा। उत्तर तथा दक्षिण भारत में यह अफवाह फैल गई कि सुल्तान की मृत्यु हो गई है। फलतः ई.1335 में दौलताबाद के सूबेदार मलिक हुशंग ने विद्रोह कर दिया। सुल्तान की उस पर विशेष कृपा रहती थी परन्तु वह बड़ा महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति था। अतः अवसर पाकर उसने विद्रोह कर दिया। अन्त में उसे भाग कर हिन्दू सरदारों के यहाँ शरण लेनी पड़ी। हालांकि मुहम्मद तुगलक बागी अमीरों का दमन करता था, उन्हें क्षमा नहीं करता था किंतु उसने मलिक हुशंग को क्षमा कर दिया।

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मुहमद बिन तुगलक की मृत्यु की सूचना पाकर उत्तर में एहसान शाह के पुत्र सैयद इब्राहिम ने भी विद्रोह कर दिया। इब्राहिम, सुल्तान का बड़ा विश्वासपात्र था। अन्त में उसने आत्म-समर्पण कर दिया। फिर भी उसकी हत्या करवा दी गई। इन दिनों पूर्वी बंगाल में बहराम खाँ शासन कर रहा था। उसके अंगरक्षक फखरूद्दीन ने ई.1337 में उसकी हत्या कर दी और स्वयं पूर्वी बंगाल का शासक बन गया। दिल्ली सल्तनत की दुर्दशा देखकर उसने स्वयं को बंगाल का स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया और अपने नाम की मुद्राएँ चलाने लगा। इस प्रकार मुहमद बिन तुगलक की असमर्थता के कारण बंगाल भी स्वतंत्र हो गया। बंगाल के विद्रोह की सफलता देखकर कड़ा के सूबेदार निजाम भाई ने भी विद्रोह कर दिया। ई.1338 में उसकी जीवित खाल खिंचवा ली गई। अलीशाह दिल्ली सल्तनत का एक उच्च अधिकारी था। उसे मुहमद बिन तुगलक ने दक्षिण में मालगुजारी वसूल करने के लिए गुलबर्गा भेजा परन्तु उसने गुलबर्गा के हाकिम की हत्या करके शाही खजाने पर अधिकार कर लिया। इसके बाद उसने बीदर पर भी अधिकार कर लिया। कुतलुग खाँ ने उसे परास्त करके बन्दी बना लिया। कुछ दिनों बाद उसका वध कर दिया गया।

आइन-उल-मुल्क अवध तथा जफराबाद का गवर्नर था। उसने दिल्ली सल्तनत की बड़ी सेवाएँ की थी। एक बार मुहमद बिन तुगलक दक्षिण के गवर्नर कुतलुग खाँ ख्वाजा के काम से असन्तुष्ट हो गया। इसलिए उसने कुतलुग खाँ ख्वाजा को वापस बुला लिया। सुल्तान ने आइन-उल-मुल्क को दक्षिण का गवर्नर नियुक्त करके उसे अपने परिवार के साथ दक्षिण जाने की आज्ञा दी।

यद्यपि आइन-उल-मुल्क के लिए यह बड़े गौरव की बात थी परन्तु उसे लगा कि सुल्तान ने उसे अवध से हटाने के लिए ऐसा किया है। इसलिए उसने विद्रोह कर दिया। उसका विद्रोह सबसे भयानक था। फिर भी शाही सेना ने उसे परास्त करके बंदी बना लिया। जब वह सुल्तान के सामने लाया गया तो सुल्तान ने उसकी सेवाओं तथा उसकी विद्वता को देखते हुए उसे क्षमा कर दिया।

मुहमद बिन तुगलक को विपत्ति में देखकर शाहू अफगान लोदी ने मुल्तान के सूबेदार को कैद करके स्वयं को मुल्तान का स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया। विद्रोह की सूचना पाते ही मुहमद बिन तुगलक ने दिल्ली से मुल्तान के लिए प्रस्थान किया।

इसकी सूचना पाते ही शाहू अफगान मुल्तान छोड़कर पहाड़ों में भाग गया और सुल्तान के पास एक प्रार्थना पत्र भेजकर क्षमादान की याचना की। बागी अमीरों का दमन करने का निश्चय त्यागकर मुहमद बिन तुगलक दिपालपुर से ही दिल्ली लौट आया।

सुल्तान के एक लाख सैनिक करांचल के अभियान में मारे जा चुके थे। उसके हजारों सैनिकों को हिन्दुओं ने अन्य अभियानों में मार डाला था, इसलिए अब उसमें इतनी शक्ति नहीं बची थी कि वह पहाड़ों में जाकर शाहू अफगान का पीछा करे।

अब वे दिन लद चुके थे जब सुल्तान अमीरों की खाल में भूसा भरवाकर उन्हें पूरे भारत में घुमा सके। यदि सुल्तान शाहू अफगान के पीछे जाता तो दिल्ली सल्तनत मुट्ठी में बंद रेत की तरह उसके हाथों से फिसल जाती। यह भी संभव था कि पहाड़ों में स्वयं मुहम्मद का भी वही हाल होता जो करांचल के अभियान में उसकी सेना का हो चुका था।

इसलिए सुल्तान ने दिपालपुर से ही लौटने में भलाई समझी किंतु सुल्तान का यह निर्णय खतरे की किसी घण्टी से कम नहीं था। दिल्ली सल्तनत की कमजोरी पूरे देश के समक्ष आ गई जिसके दूरगामी परिणाम हुए।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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