जब ई.1920 में आरम्भ हुआ असहयोग आंदोलन अथवा सत्याग्रह आंदोलन ई.1922 में बिना किसी सफलता के बंद हो गया तब अंग्रेज अधिकारियों के हौंसले बढ़ गए। उन्होंने जनता को और अधिक प्रताड़ित करना आरम्भ कर दिया। इसके चलते नागपुर के कलक्टर ने झण्डा जुलूस पर पाबंदी लगा दी।
असहयोग आंदोलन की असफलता के कारण जनता के मन में बड़ी खीझ थी। इसलिए अब बात-बात पर जनता सरकारी मशीनरी से झगड़ा करने पर उतारू हो जाती थी। अंग्रेजों के लिए अब जनता को नियंत्रण में रख पाना कठिन होता जा रहा था।
उस काल में बहुत कम आयु के अंग्रेज लड़के बिना कोई समुचित प्रशिक्षण दिए ब्रिटिश भारत के जिलों में कलक्टर लगा दिए जाते थे। ये अनुभवहीन एवं प्रशिक्षणहीन अंग्रेज लड़के जनता पर मनमर्जी का कानून थोप देते थे जिसे उन दिनों व्यंग्य से पॉकेट रूल कहा जाता था।
मई 1923 में नागपुर के अंग्रेज जिलाधीश ने तिरंगा झण्डा लेकर चलने पर प्रतिबंध लगा दिया। इस पर स्वराजियों के जत्थे झण्डे लेकर निकलने लगे और गिरफ्तारियां देने लगे। एक दिन जमनालाल बजाज ने स्वराजियों का नेतृत्व करते हुए झण्डा जुलूस निकाला। उन्हें भी बंदी बना लिया गया।
जब यह समाचार, सरदार पटेल को मिला तो वे भी आंदोलन का नेतृत्व करने नागपुर पहुंचे। उन्होंने जिलाधीश के आदेश को अमान्य ठहराते हुए झण्डा आंदोलन जारी रखने की घोषणा की। इस पर जिलाधीश ने सरदार पटेल को वार्त्ता के लिये बुलाया। सरदार पटेल जिलाधीश के कार्यालय पहुंचे और उसे समझाया कि इस प्रकार के आंदोलनों पर रोक लगाने का न कोई औचित्य है और न कोई कानूनी आधार।
जिलाधीश समझ चुका था कि जब सरदार पटेल आंदोलन में कूद पड़े हैं तो उसका परिणाम ब्रिटिश शासन के लिये अच्छा नहीं होगा इसलिये जिलाधीश ने पटेल की बात मान ली और तिरंगा झण्डा लेकर चलने पर रोक हटा ली। उसने बंदी बनाये गये समस्त सत्याग्रहियों को भी रिहा कर दिया। इसके बाद नागपुर में जनता ने बड़ी शान से झण्डा जुलूस निकाला।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता