Monday, March 10, 2025
spot_img

अध्याय – 23 – प्राचीन भारत में शिक्षा का स्वरूप एवं प्रमुख शिक्षा केन्द्र (द)

प्राचीन भारत में जैन शिक्षा के प्रमुख केन्द्र

अनहिलपाटन (अन्हिलपाटन, अन्हिलवाड़ा)

गुजरात के चालुक्यवंशी शासकों की राजधानी अन्हिलपाटन पूर्व मध्य काल में शिक्षा-केन्द्र के रूप में विख्यात थी। यहाँ हिन्दू-धर्म-दर्शन के साथ-साथ जैन-धर्म और दर्शन की भी शिक्षा दी जाती थी। अनेक चालुक्यवंशी राजा ज्ञान और विद्या के उत्कर्ष में रुचि लेते थे। सोमप्रभाचार्य, हेमचन्द्र, रामचन्द्र, उदयचन्द्र, जयसिंह, यशपाल, वत्सराज एवं मेरूतुंग जैसे विद्वान् लेखकों ने अन्हिलपाटन के राज्याश्रय में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि विभिन्न भाषाओं में महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की।

इनमें हेमचन्द्र सर्वाधिक प्रसिद्ध विद्वान् हुआ, जिसने व्याकरण, छन्द, शब्द-शास्त्र, साहित्य, कोश, इतिहास, दर्शन आदि विभिन्न विषयों पर विभिन्न ग्रन्थों की रचना की। जब मुसलमानों ने गुजरात पर आक्रमण किए तब अन्हिलपाटन का शैक्षणिक एवं धार्मिक महत्व समाप्त हो गया।

जालोर

सातवीं-आठवीं शताब्दी ईस्वी में जालोर जैनों का बड़ा केन्द्र था। आठवीं शती में उद्योतन सूरी ने कुवलयमाला नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की। प्रसिद्ध जैन विद्वान हेमचन्द्र की प्रेरणा से कुमारपाल चौलुक्य ने ई.1164 में जालोर में कुवर विहार जिनालय बनवाया। ई.1185 में राजा समरसिंह के मंत्री यशोवीर ने इस जिनालय का जीर्णोद्धार करवाया। इस कारण जालोर जैन-ग्रंथों के अध्ययन का प्रमुख केन्द्र बन गया। आजादी के बाद मुनि जिन विजय जालोर जिनालय के ग्रंथों को अहमदाबाद ले गए।

कांची

पहली शताब्दी ईस्वी में कांची में कुण्ड कुण्डाचार्य द्वारा जैन-धर्म का प्रसार किया गया। तीसरी शताब्दी ईस्वी में अकलंक द्वारा जैन-धर्म का प्रसार किया गया। पल्लवों के पूर्ववर्ती कल्भर राजाओं ने जैन-धर्म स्वीकार किया। इस प्रकार कांची में राजकीय संरक्षण मिल जाने के कारण जैन-धर्म का खूब प्रसार हुआ। पल्लव राजा सिंहविष्णु, महेन्द्र वर्मन तथा सिंहवर्मन (ई.550-560) ने भी जैन-धर्म का अनुसरण किया।

Related Articles

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source