जूनागढ़ का नवाब रसूलखानजी कट्टर मुसलमान था। भारत की आजादी के समय उसने प्रयास किया कि जूनागढ़ रियासत पाकिस्तान में शामिल हो जाए। वस्तुतः हैदराबाद, जूनागढ़ और भोपाल नवाब एक ऐसा मुस्लिम गलियारा बनाना चाहते थे जिसका एक सिरा भारत में तो दूसरा सिरा पाकिस्तान में खुलता हो!
गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में जूनागढ़ रियासत स्थित थी। इसकी स्थापना ई.1735 में शेरखान बाबी नामक मुगल सिपाही द्वारा की गई थी। इस रियासत का कुल क्षेत्रफल 3,337 वर्ग मील तथा जनसंख्या 6,70,719 थी। रियासत की 80 से 90 प्रतिशत जनता हिन्दू थी किंतु इस पर जूनागढ़ नवाब शासन करते थे। सर मुहम्मद महाबत खान रसूलखानजी (तृतीय) 11 वर्ष की आयु में जूनागढ़ का नवाब बना था।
जूनागढ़ का नवाब मेयो कॉलेज अजमेर में रहकर पढ़ा था। उसे तरह-तरह के कुत्ते पालने तथा शेरों का शिकार करने का शौक था। उसके पास सैंकड़ों की संख्या में कुत्ते थे। एक बार उसने एक कुत्ते का एक कुतिया से विवाह करवाया जिस पर उसने बहुत धन व्यय किया तथा पूरे राज्य में अवकाश घोषित किया।
ई.1947 में मुस्लिम लीग के वरिष्ठ नेता सर शाह नवाज भुट्टो को कराची से बुलाकर जूनागढ़ राज्य का दीवान बनाया गया। शाह नवाज भुट्टो ने जूनागढ़ के नवाब को डराया कि यदि जूनागढ़ भारत में मिला तो सरकार, उसके कुत्तों को मार डालेगी तथा शेरों का राष्ट्रीयकरण कर देगी। जबकि पाकिस्तान में वह अपने कुत्तों को सुरक्षित रख सकेगा तथा निर्बाध रूप से शेरों के शिकार कर सकेगा। यह बात नवाब के मस्तिष्क में बैठ गई। जूनागढ़ रियासत चारों ओर से हिन्दू रियासतों से घिरी हुई थी किंतु रियासत की दक्षिण एवं दक्षिण पश्चिम सीमा अरब सागर से मिलती थी। इस कारण जूनागढ़ का नवाब सोचता था कि वह आसानी से पाकिस्तान में सम्मिलित हो सकता है। वास्तविकता यह थी कि जूनागढ़ रियासत तथा पाकिस्तान की सीमा के बीच 240 मील की दूरी में समुद्र स्थित था।
फिर भी जूनागढ़ का नवाब भारत में मिलने की बजाय पाकिस्तान में मिलने के लिये तैयार हो गया। वह यह भी भूल गया कि राज्य की 80 प्रतिशत जनता हिन्दू है तथा चारों ओर हिन्दू रियासतों से घिरी हुई है जो कि भारत में मिल चुकी हैं।
जब वायसराय की 25 जुलाई 1947 की दिल्ली बैठक के बाद भारत सरकार ने नवाब को इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन भिजवाया तो नवाब ने उस पर हस्ताक्षर नहीं किये तथा 15 अगस्त 1947 को समाचार पत्रों में एक घोषणा पत्र प्रकाशित करवाया- ‘पिछले कुछ सप्ताहों से जूनागढ़ की सरकार के समक्ष यह सवाल रहा है कि वह हिन्दुस्तान या पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला करे।
इस मसले के समस्त पक्षों पर सरकार को अच्छी तरह गौर करना है। यह ऐसा रास्ता अख्तयार करना चाहती थी जिससे अंततः जूनागढ़ के लोगों की तरक्की और भलाई स्थायी तौर पर हो सके तथा राज्य की एकता कायम रहे और साथ ही साथ असकी आजादी और ज्यादा से ज्यादा बातों पर इसके अधिकार बने रहें।
गहरे सोच विचार और सभी पहलुओं पर जांच परख के बाद सरकार ने पकिस्तान में शामिल होने का फैसला किया है और अब उसे जाहिर कर रही है। राज्य का विश्वास है कि वफादार रियाया, जिसके दिल में राज्य की भलाई और तरक्की है, इस फैसले का स्वागत करेगी।’ नवाब यह घोषणा करके सरदार पटेल को सीधी चुनौती दे बैठा।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता