औरंगजेब ने नेताजी पाल्कर को जबर्दस्ती मुसलमान बनाकर उसका नाम कुली खाँ रखा किंतु कई साल बाद मौका मिलते ही वह फिर से हिन्दू धर्म में लौट आया। लाल किले को धता बताकर नेताजी पाल्कर फिर से हिन्दू बन गया!
ईस्वी 1976 में घटित यह अद्भुत ऐतिहासिक घटना छत्रपति शिवाजी के साथी नेताजी पाल्कर से सम्बन्धित है जिसे छत्रपति शिवाजी के जीवन काल में ही द्वितीय शिवाजी कहा जाता था किंतु वह लाल किले के षड़यंत्रों में फंसकर मुसलमान हो गया था और औरंगजेब ने उसका नाम मुहम्मद कुली खाँ रखा था। इस ऐतिहासिक घटना की पृष्ठभूमि जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे चलना पड़ेगा।
10 नवम्बर 1659 को जब छत्रपति शिवाजी ने बीजापुर के सेनापति अफजल खाँ का वध किया था तो शिवाजी के दो सेनापति नेताजी पाल्कर तथा तथा पेशवा मोरोपंत भी अपने कुछ सैनिकों को लेकर शिवाजी के साथ बीहड़ जंगल में गए थे जहाँ शिवाजी की अफजल खाँ से भेंट होनी तय थी।
जब भेंट के दौरान अफजल खाँ ने शिवाजी को मारने की चेष्टा की तो शिवाजी ने ही शेर की तरह उछल कर अफजल खाँ को मार डाला। इस पर बीजापुर की मुस्लिम सेना ने शिवाजी को वहीं पर घेर लिया। शिवाजी के अंगरक्षक तानाजी मलसुरे तथा जीवमहला बड़ी बहादुरी से शिवाजी की रक्षा करने लगे।
पलक झपकते ही नेताजी पाल्कर और पेशवा मोरोपंत झाड़ियों से निकल आए और अपने प्राणों की बाजी लगाकर शिवाजी को वहाँ से निकाल ले गए। इस घटना के बाद नेताजी पाल्कर हर समय शिवाजी की छाया बनकर उनके साथ रहने लगा। वह इतना बहादुर था कि उसे महाराष्ट्र में द्वितीय शिवाजी कहा जाने लगा।
दुर्भाग्य से जब 11 जून 1665 को मिर्जाराजा जयसिंह एवं शिवाजी में पुरंदर की संधि हुई तब शिवाजी एवं नेताजी पाल्कर में मतभेद हो गया और नेताजी पाल्कर शिवाजी का साथ छोड़कर बीजापुर की सेना में भर्ती हो गया। मिर्जाराजा जयसिंह नहीं चाहता था कि नेताजी पाल्कर बीजापुर की सेवा में रहे। इसलिए मिर्जाराजा ने नेताजी पाल्कर को बहुत सारा धन देकर अपने पक्ष में मिला लिया। इस प्रकार नेताजी पाल्कर शिवाजी का सहायक न रहकर मुगलों का सेनापति हो गया।
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जब छत्रपति शिवाजी आगरा से निकल भागे तो औरंगजेब ने शिवाजी का मनोबल तोड़ने के लिए एक खतरनाक योजना बनाई। उसने मिर्जाराजा जयसिंह को लिखा कि वह शिवाजी के पूर्व साथी नेताजी पाल्कर को बंदी बनाकर दिल्ली भेज दे। औरंगजेब का आदेश पाकर जयसिंह ने नेताजी पाल्कर को छल से बंदी बना लिया और उसे दिल्ली भेज दिया।
जब नेताजी पाल्कर को औरंगजेब के समक्ष प्रस्तुत किया गया तो औरंगजेब ने उससे कहा कि या तो वह मुसलमान बनकर मुगल सल्तनत की सेवा करे या फिर मृत्यु का वरण करे। नेताजी पाल्कर ने मुसलमान होना स्वीकार किया। औरंगजेब ने एक मुस्लिम युवती का पाल्कर के साथ विवाह करा दिया तथा पाल्कर को अफगानिस्तान युद्ध में भेज दिया।
नेताजी पाल्कर 8 साल तक मुगलों के लिए लड़ता रहा और औरंगजेब की कृपा प्राप्त करता रहा। जब औरंगजेब ने मिर्जाराजा जयसिंह से दक्खिन की सूबेदारी छीनकर शहजादे मुअज्जम को वहाँ का सूबेदार बनाया तो जोधपुर नरेश जसवंतसिंह को भी अपनी सेना के साथ दक्खिन के मोर्चे पर भेजा गया।
जब मुअज्जम, जसंवतसिंह एवं दिलेर खाँ को शिवाजी के विरुद्ध कोई सफलता नहीं मिली तो औरंगजेब को नेताजी पाल्कर की याद आई जो पिछले आठ सालों से मुहम्मद कुली खाँ के नाम से अफगानिस्तान के मोर्चे पर लड़ रहा था।
औरंगजेब ने मुहम्मद कुली खाँ को शिवाजी के विरुद्ध झौंकने का निर्णय लिया। औरंगजेब कभी किसी हिन्दू राजा का विश्वास नहीं करता था। जो लोग बादशाह के दबाव में हिन्दू धर्म छोड़कर मुसलमान बन जाते थे, उनकी विश्वसनीयता भी संदिग्ध होती थी। इस दृष्टि से औरंगजेब को मुहम्मद कुली खाँ पर विश्वास नहीं करना चाहिए था किंतु अब औरंगजेब के पास शिवाजी से लड़ने के लिए कोई ऐसा सेनापति ही नहीं बचा था जो शिवाजी के मुकाबले में टिक सके।
मुहम्मद कुली खाँ को शिवाजी के राज्य की भौगोलिक एवं सामरिक परिस्थितियों की पूरी जानकारी थी। इतना ही नहीं, औरंगजेब जानता था कि केवल मुहम्मद कुली खाँ ही यह पूर्वानुमान लगा सकता था कि शिवाजी किन परिस्थितियों में क्या निर्णय लेगा!
इसलिए औंरगजेब ने दिलेर खाँ को दक्खिन का फौजदार नियुक्त किया तथा मुहम्मद कुली खाँ को उसके साथ दक्षिण के मोर्चे पर भेज दिया। दिलेर खाँ पहले भी बरसों तक दक्षिण में सेवाएं दे चुका था तथा उसे शिवाजी से लड़ने का लम्बा अनुभव था। इन दोनों मुगल सेनापतियों ने शिवाजी की राजधानी सतारा के निकट अपना डेरा जमाया।
औरंगजेब को पूरा विश्वास था कि शहजादा मुअज्जम, महाराजा जसवंतसिंह, फौजदार दिलेर खाँ और मुहम्मद कुली खाँ जैसे चार प्रबल सेनापति मिलकर छत्रपति शिवाजी को पकड़ लेंगे या मार डालेंगे किंतु औरंगजेब का दुर्भाग्य उससे दो कदम आगे चल रहा था।
जब मुहम्मद कुली खाँ को बादशाह की तरफ से यह प्रस्ताव मिला कि वह शिवाजी से लड़ने के लिए दक्खिन जाए तो मुहम्मद कुली खाँ उर्फ नेताजी पालकर अत्यंत खुशी से दक्खिन के मोर्चे पर जाने को तैयार हो गया। उसे अफगानिस्तान में लड़ते हुए आठ साल बीत चुके थे और अब वह अपने देश लौट जाना चाहता था। इसके साथ ही उसके मन में एक और योजना चल रही थी जिसके बारे में उसने किसी को भनक तक नहीं लगने दी।
मुहम्मद कुली खाँ केवल अपने देश ही नहीं लौटना चाहता था अपितु वह फिर से अपने धर्म में, अपने परिवार में और छत्रपति शिवाजी की शरण में लौट जाने को आतुर था। इन सब बातों के लिए यह अच्छा अवसर था कि औरंगजेब स्वयं ही उसे दक्खिन के मोर्चे पर भेज रहा था।
जब दिलेर खाँ और मुहम्मद कुली खाँ ने सतारा के पास अपने डेरे गाढ़े तो उन दिनों छत्रपति शिवाजी सतारा में ही थे। एक दिन मुहम्मद कुली खाँ अचानक मुगल डेरे से भाग निकला और सीधा अपने पुराने स्वामी छत्रपति शिवाजी की शरण में जा पहुँचा। उसने छत्रपति से अनुरोध किया कि मेरी शुद्धि करवाकर मुझे फिर से हिन्दू बनाया जाए। शिवाजी ने अपने पुराने साथी के सारे अपराध एवं सारी गलतियां क्षमा कर दीं और उसे फिर से हिन्दू धर्म में लेने की व्यवस्थाएं कीं।
इस प्रकार छत्रपति की कृपा से 19 जून 1676 को नेताजी पाल्कर फिर से हिन्दू धर्म में प्रविष्ट हो गया। इसके बाद वह आजीवन शिवाजी एवं संभाजी की सेवा करता रहा। इस प्रकार छत्रपति के विरुद्ध औरंगजेब का यह वार भी खाली चला गया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता