आज के दरबार में बड़ी भीड़ थी। दरबारे आम में वैसे भी बड़ी भीड़ रहती है किंतु आज की भीड़ कुछ अलग किस्म की थी। आम दिनों में तो मांगने वालों और फरियादियों का तांता लगता है किंतु आज के दिन रियाया बादशाह को नये साल की मुबारिकबाद देने के लिये उपस्थित हुई थी।
आज के दिन से हिन्दुओं के विक्रम संवत का 1638वां साल आरंभ हो रहा था। हर साल नये विक्रम पर इस तरह के विशेष दरबार का आयोजन नहीं होता था किंतु रियाया हर साल बादशाह को नये साल की मुबारिकबाद कहने आती थी इसलिये अकबर ने इस साल से नये साल का विशेष दरबार करना आरंभ किया।
जब सारे मनसबदार, अमीर, उमराव और सरदार अपनी-अपनी पंक्ति में क्रमबद्ध खड़े हो गये तो बख्शी बादशाह को दरबार में लिवाकर लाया। अकबर ने एक भरपूर निगाह दरबार में उपस्थित लोगों पर डाली। बादशाह की दृष्टि रहीम पर जाकर रुकी। रहीम ने बादशाह की इच्छा जानकर बादशाह और सभासदों को नववर्ष की बधाई देते हुए कहा -‘जहाँपनाह! हिन्दुस्थान में नया साल आज के दिन से आरंभ होता है। इस मुबारक दिन की शुरूआत अच्छे कामों और अच्छी बातों से हो तो आज के दिन को यादगार बनाया जा सकता है।’
– ‘मिर्जाखाँ! आज के दिन तुम ही कोई इतनी अच्छी बात कहो जो हमें जीवन भर याद रहे।’
– ‘गरीबों और बेकसों पर रहम खाने वाले नेकदिल शंहशाह! आपका इकबाल युगों-युगों तक इस धरती पर बुलंद रहे। जहाँपनाह! आज धरती भर के बादशाहों में आपका प्रभुत्व सबसे बढ़ चढ़ कर है। आप सब प्रकार से सामर्थ्यवान हैं। प्रभुता आप पर फबती है किंतु आज के इस मुबारक दिन के उजाले में मेरा दिल कुछ और कहना चाहता है।’
– ‘तुम अपनी बात निश्चिंत होकर कह सकते हो मिर्जा!
– ‘जिल्ले इलाही! मेरा मन कहता है कि आदमी का प्रभुत्व वास्तव में ईश्वर का प्रभुत्व है। इसलिये वास्तव में प्रभुता ईश्वर को ही फबती है। उसके आगे बड़े से बड़ा बादशाह भी तुच्छ मनुष्य है। उस परम शक्तिशाली ईश्वर ने सब मनुष्यों को आजाद पैदा किया है तब फिर तुच्छ मनुष्य की क्या सामर्थ्य जो बादशाह होकर अपने ही जैसे मनुष्यों को गुलाम बनाये?’
– ‘तुम क्या कहना चाहते हो मिर्जा, खुलकर कहो।’ रहीम की रहस्यमयी बात सुनकर अकबर के कान खड़े हो गये।
– ‘जहाँपनाह! बादशाही सिपाहियों, अमीरों, उमरावों तथा और भी जो ताकतवर लोग इस धरती पर हैं उन्होंने अपने ही जैसे लाखों आदमियों को जबर्दस्ती पकड़ कर गुलाम बना रखा है। जिस अल्लाह ने ताकतवर लोगों को बनाया है उसी परवरदिगार ने बेकस और मजलूम गुलामों को बनाया है। उन्हें जबर्दस्ती पकड़ना और उनसे बलपूर्वक गुलामी करवाना उचित नहीं है। क्यों नहीं आज नये साल के मुबारक दिन में हम अपने गुनाह कबूल करें और गुलामों को अल्लाह की इच्छा के मुताबिक आजाद कर दें।’
मिर्जाखाँ की बात सुनकर बादशाह अचंभे के सागर में डूब गया। क्या ऐसा संभव है कि गुलामों को आजाद कर दिया जाये? हजारों साल से हमारे बाप-दादे गुलामों को पकड़ते आये हैं और उनसे अपनी सेवा करवाते आये हैं। यदि गुलाम न रहे तो हमारी सेवा टहल और नीच काम कौन करेगा?
दरबारियों ने भी इस विचित्र बात को सुना तो वे अचंभे से जड़ हो गये। अकबर ने हिन्दू सरदार राजा टोडरमल की ओर देखा
– ‘जहाँपनाह! मिर्जाखाँ अब्दुर्रहीम बजा फर्माते हैं। इंसानों को जबर्दस्ती गुलाम बनाया जाना ठीक नहीं है। बात-बात पर गुलामों को कोड़े मारना, बात-बात पर उनकी खाल खिंचवा लेना, यह अमानवीय है तथा ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध जान पड़ता है।’ राजा टोडरमल ने कहा।
– ‘यदि गुलाम न रहे तो फिर सेवा, चाकरी और नीच टहल के काम कौन करेगा?’ खानेजहाँ कोका ने ऐतराज किया।
– ‘यह काम स्वेच्छा से काम करने वाले सेवकों से करवाया जाये और इसके लिये उन्हें भृत्ति का भुगतान किया जाये।’ राजा टोडरमल ने सुझाव दिया।
– ‘राजा बीरबल! आप क्या कहते हैं?’ बादशाह ने बीरबल की ओर गर्दन घुमाईं
– ‘जहाँपनाह……….! ‘
– ‘सम्राट अकबर की जय। राजा टोडरमल की जय। मिर्जाखाँ अब्दुर्रहीम की जय। राजा बीरबल की जय………..।’ इससे पहले कि बीरबल कुछ जवाब देता, दरबारे आम में मौजूद सहस्रों लोगों की भीड़ बादशाह और उसके अमीरों की जय-जयकार बोलने लगी। राजा बीरबल ने मुस्कारकर अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
– ‘क्या किसी अमीर, उमराव, सरदार और राजा को इस सम्बंध में कुछ कहना है?’ अकबर ने पूछा।
परम्परा से गुलामों की निर्बाध सुविधा भोगने वाले तुर्क एवं मंगोल अमीरों को यह बात अच्छी नहीं लगी किंतु शहबाजखाँ का उदाहरण उनके सामने था। इस समय मिर्जाखाँ की इच्छा के विरुद्ध बोलने का एक ही अर्थ था और वह था बादशाह के कोप को आमंत्रण।
जब कोई अमीर-उमराव कुछ नहीं बोला तो अकबर ने उसी क्षण ऐलान किया कि आज से उसके राज्य में कोई भी व्यक्ति किसी को गुलाम नहीं बनायेगा। जो भी गुलाम इस समय जहाँ कहीं भी हैं वे मुक्त किये जाते हैं। वे अपने मर्जी के मुताबिक कहीं भी जाने को स्वतंत्र हैं। वे चाहें तो अपने वर्तमान मालिक के यहाँ चाकरी में रह सकते हैं लेकिन उनके मालिकों को उन्हें वेतन का भुगतान करना होगा। इस आदेश का उल्लंघन करने वाले सजा के हकदार होंगे।
बीसियों हिन्दू सरदार, जागीरदार और मनसबदार उसी समय बादशाह अकबर, मिर्जा रहीम और राजा टोडरमल की जय-जयकार बोलने लगे। आम जनता ने भी उनके कण्ठ से कण्ठ मिलाया।
नये साल के पहले दिन यह सचमुच एक बड़ा तोहफा था जो पूरे साढ़े तीन सौ साल बाद मिर्जा रहीम ने हिन्दुस्थान की प्रजा को दिलवाया था। कुतुबुदीन ऐबक ने 1193 ईस्वी में भारत में इस्लामी राज्य की स्थापना की थी। वह स्वयं मुहम्मद गौरी का जेर खरीद गुलाम था। उसके शासन काल में हजारों हिन्दुओं को जबर्दस्ती पकड़ कर गुलाम बनाया गया था। तब से ही हिन्दुस्थान में यह परम्परा चली आ रही थी लेकिन आज हिन्दुस्थान के हजारों गरीब, बेकस और मायूस इंसानों की जिंदगी में आशा की नवीन किरण का संचार हुआ।
आज का दिन रहीम का था। अभी उसका काम समाप्त नहीं हुआ था। उसने कहा- ‘जहाँपनाह! इस मुबारक बादशाही इच्छा के लिये मैं आपको मुबारक देता हूँ लेकिन एक और अर्ज किया चाहता हूँ।’
– ‘कहो मिर्जाखाँ, अपने दिल की बात जरूर कहो। आज का दिन तुम्हारा है।’
– ‘हुजूर! अल्लाह ने मासूम पंछियों के सीने में मासूम दिल छुपाया है। इन मासूम दिलों में घाव करना अल्लाह के बंदों के लिये उचित नहीं है। इन मासूम परिंदों पर दया की जानी चाहिये।’ रहीम ने निवेदन किया।
– ‘लेकिन हजारों आदमी चिड़ियों को पकड़ कर अपना रोजगार चलाते हैं। यदि परिंदों को मारने पर रोक लगाई गयी तो उन गरीब इंसानों का क्या होगा?’ अकबर मिर्जाखाँ के सुझाव पर हैरान था।
– ‘परवर दिगार! इंसान बहुत छोटे लाभ के लिये बड़ा अपराध करता है। छोटे-छोटे जीव-जंतु, चिड़ियां और मछलियाँ इस प्रकृति की नियामत हैं, इनके वध पर रोक लगनी चाहिये।’ मिर्जाखाँ अब भी अपनी बात पर अडिग था।
अकबर ने फिर से राजा टोडरमल की ओर देखा।
– ‘जहाँपनाह! मिर्जाखाँ की बात सही है। आदमी अपना पेट भरने के लिये यदि बड़ा जानवर मारे तो एक जानवर से कई इंसानों का पेट भरेगा किंतु एक इंसान का पेट भरने के लिये जाने कितने छोटे-छोटे परिंदों की जान चली जाती है।’
– ‘लेकिन बड़े जानवर! वे भी तो अल्लाह के बनाये हुए हैं। जब छोटे जानवरों को मारना उचित नहीं है तो क्या बड़े जानवरों को मारना उचित है?’ अकबर ने पूछा।
– ‘उचित तो उन्हें मारना भी नहीं है किंतु उन्हें मारने से पहले इंसान दस बार सोचता है और अत्यंत आवश्यक होने पर ही मारता है। जबकि निरीह परिंदों को तो वह बिना सोचे समझे, केवल अपने मौज, शौक और मनोरंजन के लिये मार डालता है।’ राजा बीरबल ने जवाब दिया।
– ‘खानेजहाँ, आपका क्या विचार है?’
– ‘बादशाह की इच्छा ही सर्वोपरि है जिल्ले इलाही।’ कोका ने सिर झुका कर जवाब दिया।
– ‘जब आप सबकी ऐसी ही इच्छा है तो हम आज के मुबारक दिन यह हुक्म देते हैं कि हमारे राज्य में बिना किसी कारण के किसी परिंदे और मछली आदि छोटे जीव को न मारा जाये। सब जीवों को अल्लाह की नियामत समझा जाये और अल्लाह का हुकुम मानकर उनकी रक्षा की जाये।’ अकबर अपनी बात पूरी करके क्षण भर के लिये ठहरा।
– ‘आज के इस मुबारक मौके पर हम एक ऐलान और किया चाहते हैं।’ सारे दरबार की निगाहें फिर से बादशाह की ओर घूम गयीं।
– ‘शहजादे सलीम के अतालीक का पद लम्बे समय से रिक्त है। हम बहुत दिनों से चिंतित थे कि शहजादे के योग्य अतालीक कहाँ से ढूंढ कर लायें। सौभाग्य से हमारे अपने दरबार में अत्यंत योग्य अतालीक मौजूद है किंतु हमारी निगाह उस ओर गयी ही नहीं। आज हम उसी योग्य और रहमदिल इंसान को अपने शहजादे का अतालीक मुकर्रर किया चाहते हैं।’ अकबर ने फिर से अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
कौन होगा शहजादे का नया अतालीक? समस्त दरबारियों की उत्सुक निगाहें अपने चारों ओर खड़े महत्वपूर्ण व्यक्तियों को खोजने लगीं।
– ‘जहाँपनाह! कौन वह सौभाग्यशाली है जिसे शहजादे का अतालीक मुकर्रर किया जाना तय किया गया है।’
– ‘मिर्जाखाँ अब्दुर्रहीम। वे हर तरह से इस कार्य के लिये उपयुक्त हैं। हम उन्हीं को शहजादे का नया अतालीक नियुक्त करते हैं। हमें भरोसा है कि मिर्जाखाँ के संरक्षण में शहजादे की उचित तालीम होगी और वह एक नेकदिल इंसान बन पायेगा।’ मिर्जाखाँ बादशाह की इस आकस्मिक कृपा से अभिभूत था। उसके पास बादशाह का आभार ज्ञापित करने के लिये शब्द नहीं थे।
इसी ऐलान के साथ नये साल का दरबार बर्खास्त हो गया। उस दिन आम रियाया, शिया अमीर और हिन्दू उमराव बादशाह अकबर, राजा टोडरमल और मिर्जाखाँ रहीम की जय जयकार बोलते हुए दरबार से निकले। चगताई, ईरानी और तूरानी सुन्नी अमीरों के चेहरों पर चिंता की नयी लकीरें उभर आयी थीं किंतु वे बादशाही कोप को गजबइलाही[1] से कम नहीं समझते थे इसलिये चिंता की उन लकीरों को छुपा कर रखने में ही अपनी भलाई समझते थे।
[1] ईश्वरीय प्रकोप।