मुस्लिम लीग पाकिस्तान के निर्माण के लिए बड़ी तेजी से काम कर रही थी। लीग के नेताओं ने मरो और मारो की नीति अपना ली थी जिसके कारण मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में पाकिस्तान का प्रस्ताव पारित कर दिया गया। इसे लाहौर प्रस्ताव भी कहा जाता है।
24 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग ने अपने लाहौर अधिवेशन में पाकिस्तान बनाने का प्रस्ताव पारित कर दिया जिसमें कहा गया कि-
‘ऑल इण्डिया मुसलिम लीग के इस अधिवेशन का यह दृढ़ मत है कि कोई भी वैधानिक योजना इस देश में सफल नहीं हो सकती और न वह मुसलमानों को स्वीकार हो सकती है जब तक कि यह निम्नलिखित बुनियादी सिद्धांतों पर तैयार नहीं की जाती: भौगोलिक दृष्टि से सटे प्रांतों (यूनिटों) को मिलाकर अंचल बना दिए जाएं। ये अंचल भूमि के आवश्यक आदान-प्रदान के साथ इस तरह बनाए जाने चाहिए जिससे वे क्षेत्र, जिनमें संख्या की दृष्टि से मुसलमानों का बहुमत है जैसे हिंदुस्तान के उत्तर-पश्चिमी और पूर्वी हिस्सों में, मिलाकर स्वाधीन राज्य बना दिए जाएं जिनमें उनके घटक यूनिट स्वायत्त और सार्वभौम होंगे।’
मुस्लिम लीग के इस लाहौर-प्रस्ताव में पाकिस्तान शब्द का प्रयोग नहीं किया गया था किंतु इसे पाकिस्तान-प्रस्ताव के नाम से ही जाना जाता है। इस अधिवेशन में जिन्ना ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा- ‘मैं चाहता हूँ कि आप अपने आप को संगठित करने का महत्त्व समझें …… आप अपनी आंतरिक शक्ति के अतिरिक्त अन्य किसी पर भरोसा नहीं कर सकते। अपने आप पर निर्भर रहो। अपने अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए अपने में शक्ति पैदा करो। …… अंग्रेज सरकार द्वारा भारत के भविष्य के संविधान के संदर्भ में कोई घोषणा बिना हमारी सहमति नहीं की जानी चाहिए …….।
यदि ऐसी कोई घोषणा की जाती है और बिना हमारी स्वीकृति और सहमति के कोई अंतरिम समझौता किया जाता है तो भारत के मुसलमान इसका विरोध करेंगे। …… एक हजार वर्षों के सम्पर्क के बावजूद ऐसी राष्ट्रीयताएं जो सदा की भांति भिन्न और अलग-अलग हैं, केवल प्रजातंत्रीय प्रणाली की स्थापना से किस प्रकार एक राष्ट्र बन सकती हैं?
…..भारत की समस्या अंतर्जातीय न होकर अन्तर्राष्ट्रीय है। यदि अंग्रेज सरकार इस उपमहाद्वीप के लोगों की सुख और समृद्धि की इच्छुक है तब एक मात्र विकल्प यही है कि भारत को कई राज्यों में विभक्त करके यहाँ की बड़ी कौमों को पृथक्-पृथक् भाग दे दिए जाएं।
….. यह एक स्वप्न है कि भारत में हिन्दू और मुसलमान एक सम्मिलित राष्ट्रीयता प्राप्त कर सकेंगे। ये दोनों सम्प्रदाय बिल्कुल भिन्न हैं। …… वर्तमान कृत्रिम एकता केवल अंग्रेजी राज्य की देन है …… भारत के मुसलमान किसी भी ऐसे संविधान को स्वीकार नहीं करेंगे जिसमें बहुसंख्यक हिन्दुओं की सरकार स्थापित हो सके। मुसलमान एक अल्पसंख्यक समुदाय नहीं है
……. वे प्रत्येक परिभाषा के अनुसार एक कौम (नेशन) हैं और उन्हें अपना वतन, राज्य तथा क्षेत्रफल मिलना चाहिए ….. हम अपने लक्ष्य से डरा-धमकाकर विचलित नहीं किए जा सकते …..।’
गांधीजी ने मुस्लिम लीग के पाकिस्तान प्रस्ताव पर तुरंत प्रतिक्रिया दी। 30 मार्च 1940 के हरिजन में उन्होंने लिखा-
‘विभाजन एक स्पष्ट असत्य है। मेरी पूरी आत्मा इस विचार के खिलाफ है कि हिंदुत्व और इस्लाम- दो विरोधी संस्कृतियों तथा सिद्धांतों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसे सिद्धांत को मानना मेरे लिए ईश्वर को नकारना है। मैं अपनी पूरी आत्मा के साथ यह विश्वास करता हूँ कि कुरान का ईश्वर, गीता का भी ईश्वर है। मैं इस विचार का विरोध करता हूँ कि करोड़ों हिन्दुओं ने अपने धर्म के रूप में इस्लाम को स्वीकार करने के बाद अपनी राष्ट्रीयता बदल दी।’
डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने दुःख के साथ कहा-
‘द्विराष्ट्र का सिद्धांत एकता की संवेदनशील इच्छा के विकास की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ेगा।’ डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भविष्यवाणी की- ‘विभाजन को सबसे अधिक सम्बद्ध लोगों की सद्भावना से प्राप्त करने की संभावना नहीं है, यह वैमनस्य दोनों ओर विद्यमान रहेगा।’
हिन्दू नेताओं द्वारा दी जा रही प्रतिक्रियाओं को नकारते हुए, लाहौर अधिवेशन में पाकिस्तान प्रस्ताव का समर्थन करने वाले मुस्लिम लीगी नेता खलीकुज्जमाँ ने कहा-
‘यदि हिंदुओं तथा मुसलमानों के बीच मुद्दों को तलवार के बल पर सुलझाना है तो मुसलमानों को कोई डर नहीं है।’
मई 1940 में मुस्लिम लीग के बम्बई प्रादेशिक अधिवेशन में जिन्ना ने कहा-
‘अखिल भारतीय मुस्लिम लीग ने भारत के मुसलमानों को सही दिशा दिखा दी है। उन्हें एक उत्तम कार्यक्रम, एक नीति, एक मंच और एक ध्वज प्रदान किया है
…… भारतीय राष्ट्र केवल कांग्रेस हाईकमाण्ड के मस्तिष्क में ही विद्यमान है। हमारा प्रस्ताव यह है कि हिन्दू और मुसलमान दो सम्मानपूर्ण कौमों की भांति साथ-साथ अच्छे पड़ौसियों की भांति रहें न कि हिन्दू उच्च और मुसलमान निम्न कौम की भांति रहें जिसमें हिन्दू बहुमत मुसलमानों पर नियंत्रण करे। भारत विभाजन की योजना साम्प्रदायिक नहीं अपितु राजनीतिक समस्याओं का हल है क्योंकि इस योजना के अधीन हिन्दू और मुसलमान समान अधिकार और स्थान प्राप्त कर सकेंगे। ‘
के. एम. मुंशी ने अपनी पुस्तक पिलग्रिमेज टू फ्रीडम में लिखा है कि इसके तुरंत ही पीछे मुस्लिम लीग के नेताओं ने, जहाँ-जहाँ भी उनसे हो सका, बलवे कराने आरंभ कर दिये। ढाका, अहमदाबाद, बम्बई के बलवे तो अधिक भयंकर हुए थे।
मुहम्मद अली जिन्ना का कहना था कि पाकिस्तान के लिए संघर्ष अंग्रेजों से नहीं बल्कि कांग्रेस से था। नवम्बर 1940 में जिन्ना ने कहा-
‘हम इंग्लैण्ड से अपनी स्वतंत्रता प्राप्त करना चाहते हैं। यही कारण है कि हमने आरम्भ से ही इंग्लैण्ड के मार्ग में रुकावटें नहीं डालीं। यद्यपि पाकिस्तान ही हमारी नौका का लक्ष्य है फिर भी हमने इंग्लैण्ड सरकार के समर्थन को प्राप्त करने के लिए पाकिस्तान की मांग को पूर्व-शर्त के रूप में नहीं रखा। हमने केवल यह आश्वासन चाहा कि इंग्लैण्ड सरकार कांग्रेस से कोई स्थाई समझौता करके हमारा साथ न छोड़ दे।’
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता