ई.305 में कॉन्स्टेंटीन (प्रथम) रोम का शासक हुआ। उसे कॉन्स्टेंटीन द ग्रेट भी कहा जाता है। वह 14 वर्ष की आयु से सम्राट डियोक्लेटियन के साथ सैन्य-अभियानों में भाग लेने लगा था। पूर्ववर्ती सम्राट डियोक्लेटियन के समय से ही महान् रोमन साम्राज्य दो महाप्रांतों- पूर्वी रोमन साम्राज्य एवं पश्चिमी रोमन साम्राज्य में विभक्त हो चुका था तथा सम्राट डियोक्लेटियन रोम में न रहकर पूर्वी रोमन साम्राज्य में स्थित क्रोएशिया रहा करता था।
महान् रोमन साम्राज्य की राजधानी का स्थानान्तरण
जब कॉन्स्टेंटीन महान् रोमन साम्राज्य का स्वामी हुआ तो वह ई.324 में अपनी राजधानी रोम से हटाकर अपने साम्राज्य की पूर्वी सीमा पर काला सागर एवं भूमध्य सागर के बीच दर्रे-दानियाल के किनारे पर स्थित ‘बिजैन्तिया’ (बैजेन्टाइन) नामक नगर में ले गया ताकि वह अपने साम्राज्य की पूर्वी सीमाओं पर लड़ रही सेनाओं का नेतृत्व कर सके और उन्हें नियंत्रण में रख सके।
कुछ समय बाद उसने बिजैन्तिया के निकट ‘कांस्टेंटिनोपल’ नामक नवीन नगर की आधारशिला रखी और उसी को अपनी राजधानी बनाया। आगे चलकर यह नगर कुस्तुंतुनिया कहलाया। सम्राट कॉन्सटैन्टाइन ने कैथोलिक चर्च और उसके पादरियों को करों से मुक्त कर दिया और उन्हें कई विशेषाधिकार दिए।
कुस्तुंतुनिया द्वारा रोम के लिए सह-शासकों की नियुक्ति
राजधानी के रोम से हटकर बैजेन्टाइन अथवा कुस्तुंतुनिया चले जाने से रोमन साम्राज्य के विभाजन की संभावनाएं प्रबल हो गईं। हालंकि कुस्तुंतुनिया के सम्राटों द्वारा पश्चिमी रोमन साम्राज्य के लिए सह-शासकों की नियुक्ति की जाती रही। ई.306 में सम्राट कॉन्स्टेंटीन द्वारा वेलेरियस सेवेरस को रोम का कनिष्ठ सम्राट (सीजर) घोषित किया गया
मैक्सेण्टियस द्वारा रोम पर बलपूर्वक अधिकार
ई.307 में उसे मैक्सेण्टियस नामक एक रेामन सामंत ने रोम के अधिकृत शासक वेलेरियस सेवेरस को पकड़ लिया तथा उसे आत्मघात करने के लिए विवश कर दिया। इसके बाद मैक्सेण्टियस ने राजधानी रोम तथा पश्चिमी रोमन साम्राज्य पर जबर्दस्ती अधिकार कर लिया।
ई.308 में कुस्तुंतुनिया के सम्राट कॉन्सटैन्टाइन (प्रथम) ने अपने मामा लिसिनियस (प्रथम) को रोम का सम्राट घोषित किया किंतु मैक्सेण्टियस ने रोम खाली नहीं किया। अंत में ई.312 में सम्राट कॉन्सटैन्टाइन ने मैक्सेण्टियस को मिलिवियान ब्रिज के युद्ध में मार डाला।
कॉन्स्टेन्टीन द्वारा ईसाई धर्म ग्रहण
सम्राट कॉन्स्टेंटीन ईसाई धर्म के प्रति सहिष्णु था किंतु वह स्वयं पेगन धर्म को मानता था। इस काल तक ईसाई धर्म के कुछ प्रचारक शासन तंत्र में अपना प्रभाव जमाने में सफल हो गए थे। कुछ इतिहासकारों के अनुसार ई.337 में सम्राट कॉन्स्टेंटीन को मृत्यु-शैय्या पर जबर्दस्ती ईसाई बनाया गया था।
इसके बाद ईसाई धर्म को राजकीय धर्म के रूप में मान्यता दी गई। इसके बाद न केवल पूर्वी रोमन साम्राज्य में अपितु पश्चिमी रोमन साम्राज्य एवं राजधानी रोम में भी ईसाई धर्म का प्रभाव बढ़ने लगा तथा प्राचीन काल से प्रचलित बहुदेववादी एवं मूर्ति-पूजक रोमन धर्म (पेगन धर्म) पर रोक लगा दी गई।
राज्य द्वारा की गई जबर्दस्ती के कारण कुछ ही सालों में प्राचीन बहुदेववादी रोमन धर्म, रोमन साम्राज्य से विलुप्त हो गया। इस प्रकार लगभग तीन सौ साल की प्रारम्भिक उपेक्षा के बाद रोम के बिशप की शक्ति धर्माध्यक्ष के रूप में बढ़ गई तथा पोप के रूप में वह रोम के शासन-तंत्र को प्रभावित करने की शक्ति भी प्राप्त कर गया।
कॉन्सटैन्टाइन के उत्तराधिकारी
ई.337 में सम्राट कॉन्सटैन्टाइन (प्रथम) की मृत्यु के बाद उसका पुत्र कॉन्सटैन्टाइन (द्वितीय) रोम का शासक बना। ई.340 में वह अपने भाई कॉन्स्टेन्स (प्रथम) के विरुद्ध युद्ध करता हुआ मारा गया। ई.340-56 तक कॉन्सटैन्टाइन (प्रथम) का पुत्र कॉन्स्टेन्स (प्रथम) और ई.356-61 तक कॉन्सटैन्टाइन (प्रथम) का अन्य पुत्र कॉन्स्टेन्टियस (द्वितीय) पश्चिमी रोमन साम्राज्य का स्वामी हुआ। उसके बाद इसी परिवार का राजकुमार जूलियन रोम का राजा हुआ।
सम्राट जूलियन ई.363 में एक युद्ध में मृत्यु को प्राप्त हुआ। इसके बाद से रोमन साम्राज्य का तेजी से पतन होता चला गया। जूलियन के बाद जूलियन की सेना का सेनापति जोवियन रोम का राजा हुआ किंतु वह आठ माह बाद ही 33 वर्ष की आयु में आग एवं धुएं में घिर जाने से दम घुट जाने के कारण मर गया। ये समस्त राजा पूर्वी रोमन साम्राज्य एवं पश्चिमी रोमन साम्राज्य दोनों के शासक थे। आगे चलकर पूर्वी एवं पश्चिमी साम्राज्य के शासक पुनः अलग-अलग शासकों में विभक्त हो गए।
हालांकि पूर्वी सम्राट द्वारा पश्चिमी साम्राज्य के शासक को सह-शासक के रूप में नियुक्त किया जाता रहा किंतु पश्चिमी साम्राज्य पर पूर्वी सम्राट का नियंत्रण नाम मात्र का ही था।