मुलायम सिंह यादव नहीं रहे…… इसमें दुख की कोई बात नहीं है। सभी लोग मरते हैं….. सबको यहाँ मरना है…… कोई भी यहाँ जिन्दा बैठा नही रहेगा। मनुष्य का आकलन उसके कर्मों से होता है। यह एक व्हाटसैप ग्रुप में जोधपुर के एक बंधु द्वारा की गई टिप्पणी थी, जो मेरे भीतर बहुत कुछ झिंझोड़ गई।
हमारी संस्कृति कहती है कि मृत्यु के बाद मनुष्य की बुराई नहीं की जाती। मरने वाला मर गया, उसके साथ सारी शत्रुता खत्म। सारी शिकायतें समाप्त और केवल उसकी आत्मा के लिए शांतिपाठ….। तो क्या मृत्यु वह साबुन है जो मनुष्य के अतीत को धो डालता है, चाहे वह कैसा भी क्यों न रहा हो!
10 अक्टूबर 2022 को जिस दिन मुलायमसिंह की देह पूरी हुई, देश जैसे दो हिस्सों में बंट गया। एक ओर टेलिविजन चैनलों पर देश के सियासती लोग मुलायमसिंह की मौत पर आठ-आठ आंसू ढार रहे थे तो दूसरी ओर व्हाटसैप समूहों एवं अन्य सोशियल मीडिया प्लेटफार्मों पर लाखों लोग मुलायमसिंह के अतीत पर तीखी टिप्पणियां कर रहे थे।
सियासती लोगों की यह मजबूरी हो सकती है कि वे स्वयं को अजातशत्रु घोषित करने के लिए उस आदमी की मौत पर भी रोदन करें जिसकी शक्ल तक देखना वे पसंद नहीं करते थे किंतु पब्लिक की ऐसी कोई मजबूरी नहीं होती। सियासती लोगों को मुलायमसिंह की मृत्यु के बाद उनके वोटर्स को रिझाने के लिए भी आंसू बहाना ही एकमात्र मार्ग दिखाई देता है किंतु पब्लिक को किसी के वोट नहीं लेने होते, इसलिए पब्लिक अपनी प्रतिक्रियाएं बिना किसी लाग-लपेट के देती है।
सोशियल मीडिया में जो संदेश चल रहे थे उनमें कहा गया था कि मुलायम सिंह यादव ही तब उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे जब 30 अक्टूबर तथा 2 नवम्बर 1990 को अयोध्या में निहत्थे कारसेवकों पर अंधाधुंध गोलियां चलाई गईं। सैकड़ों रामभक्त मारे गए। रातों-रात हिन्दू श्रद्धालुओं के शव सरयू मे फैंक दिए गए। सैंकड़ों ललनाओं की मांगों के सिंदूर लुट गए। सैंकड़ों चूल्हे उजड़ गए। सैंकड़ों आंखों के तारे बुझ गए।
कलकत्ता के कोठारी बंधु शरद कोठारी और राम कोठारी की याद आज भी करोड़ों हिंदुओं की आंखें नम कर देती है जो अपनी पितृविहीन छोटी बहिन का विवाह छोड़कर भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम के चरणों में अपनी विनम्र और मूक सेवा अर्पित करने आए थे। उन्हें तब गोली मारी गई जब वे एक सुनसान गली में किसी सहृदय हिन्दू के घर में शरण लिए हुए थे। जोधपुर के प्रोफेसर महेन्द्र नाथ अरोड़ा का शव ही वापस लौटा था। जोधपुर जिले के परिहार माली परिवार का 18-19 साल का एक लड़का था, उसका भी शव ही जोधपुर लौटकर आया।
ऐसे सैंकड़ों रामसेवक थे जिनके शव भी उनके घर नहीं लौट सके। सैंकड़ों लोगों के तो नाम तक सामने नहीं आए जिन्हें मुलायम सिंह ने बड़ी बेरहमी से मरवाया। बहुत से किस्से ऐसे थे जो कभी भी अखबारों की रिपोर्ट नहीं बने। ऐसा ही एक किस्सा यहाँ लिखता हूँ।
मेरी जब झालावाड़ में नियुक्ति थी, तब मेरे पास रमेशचंद्र नामक एक ड्राइवर था। वह रोज मुलायमसिंह को गाली दिया करता था। मेरे पूछने पर उसने बताया कि- ”जब मैं स्कूल में पढ़ता था, तब एक दिन घर लौटते समय मैंने एक बस खड़ी हुई देखी जिसके बाहर खड़ा आदमी आवाज लगा रहा था कि यदि किसी को रामजी का मंदिर बनवाने अयोध्या चलना है तो बस जा रही है। मैं भी रामजी का मंदिर बनाने के लिए स्कूल के बस्ते सहित उस बस में चढ़ गया और अयोध्या चला गया। वहाँ जब गोलियां चलीं तो मेरी आंखों के सामने लोग गोलियां लगने से गिरने लगे। हजारों लोग गलियों में भागने लगे। इस दौरान मैं अपने ग्रुप से से बिछुड़ गया। मैंने लोगों की लाशों को अपनी आंखों के सामने सरयूजी में फैंके जाते हुए देखा। उस दिन मैंने सौगंध खाई कि यदि मुलायम सिंह मिल जाए तो उसे गोली मार दूं। मुझे मालूम नहीं था कि झालावाड़ कैसे पहुंचते हैं। मेरी जेब में एक भी पैसा नहीं था। मैं भीख मांगकर रोटी खाता और किसी भी ट्रेन में चढ़ जाता। एक महीने भटकने के बाद मैं किसी तरह अपने घर पहुंचा। मेरे घर वालों का रो-रो कर बुरा हाल था। किसी ने उन्हें बता दिया था कि मैं अयोध्या जाने वाली बस में चढ़ा था। मेरे घर वाले समझते रहे कि मैं अयोध्या में मर गया। ऐसे किस्से असंख्य हैं।”
मुलायम सिंह को अयोध्याजी में रामभक्तों पर गोलियां चलाने का कोई मलाल नहीं था। वे कई बार इस बात को दोहराते रहे कि यदि जरूरत होती तो वे और गोलियां चलवाते।
मुलायम सिंह ही वह नेता थे जिन्होंने दिन-दहाड़े ठाकुर परिवारों के 22 निर्दोष सदस्यों का बेरहमी से रक्त बहाने वाली कुख्यात डकैतन फूलन देवी को अपनी पार्टी से टिकट देकर लोकसभा पहुंचाया।
जिस उत्तर प्रदेश से लालबहादुर शास्त्री, गोविंद वल्लभ पंत, चंद्रभान गुप्ता, चौधरी चरणसिंह और कल्याणसिंह जैसे नेता भारतीय राजनीति में अपना नाम अमर कर गए, उसी उत्तर प्रदेश में मुलायमसिंह पहले ऐसे नेता थे जिन्होंने मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद जैसे दर्जनों माफियाओं और गुन्डों को अपनी पार्टी से एमएलए, एमपी और मंत्री बनाया।
मुलायमसिंह यादव ही वह नेता थे जिन्होंने उत्तर प्रदेश की पॉलिटिक्स में एमवाई फैक्टर (मुस्लिम एवं यादव घटक) तैयार करने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस फिटमेंट बोर्ड में मुसलमानों एवं यादवों को डंके की चोट पर भर्ती कराया। इतना ही नहीं मुलायमसिंह ने इस घटक के लोगों को अंधाधुंध तरीके से प्रांतीय सरकार की बहुत सी नौकरियों में भर्ती कराया।
एमवाई फैक्टर लालू यादव ने भी बिहार में तैयार किया था किंतु उन्होंने रामरथ यात्रा पर गोलियां नहीं चलवाईं, केवल लालकृष्ण आडवानी को बंदी बनाया। जबकि मुलायमसिंह ने तो रामभक्तों पर बेहिचक गोलियां चलवाईं।
मुलायमसिंह ही वे नेता थे जिन्होंने लड़कियों के साथ बलात्कार जैसे जघन्य अपराध करने वालों को यह कहकर कानूनी प्रक्रिया से बचाने का प्रयास किया कि लड़कों से गलती हो जाती है।
मुलायमसिंह ही वह नेता थे जिन्होंने भारत सरकार द्वारा सिमी के स्लीपर सैल के सदस्यों को पकड़ लिए जाने पर उन्हें छुड़वाने के लिए ऐढ़ी-चोटी का जोर लगाया था।
मुलायमसिंह ही वे नेता थे जिनकी पार्टी के लोगों ने बहिन मायावती की प्रतिष्ठा को धूल में मिलाने के लिए गेस्टहाउस में उनके कपड़े तक फाड़ दिए थे। जब बहिन मायावती ने कहा कि समाजवादी गुण्डे मेरा बलात्कार करना चाहते थे तो मुलायमसिंह ने कहा था कि मायावती में ऐसा क्या है जो कोई उससे बलात्कार करेगा?
मुलायमसिंह ही वह नेता थे जिन्होंने अलग पहाड़ी प्रदेश (उत्तराखण्ड) बनाने की मांग कर रही औरतों पर जुल्म ढहाए थे। तत्कालीन मीडिया रिपोर्टों की मानें तो मुलायम की पुलिस ने आंदोलनकारी औरतों को खेतों में खींचकर उनसे बलात्कार किए। ऐसा जघन्य काण्ड भारत के किसी अन्य राज्य में हुआ हो, ऐसा याद नहीं पड़ता।
मुलायमसिंह ही वह नेता थे जिन्होंने अपने भाइयों, पुत्रों, पुत्रवधुओं, भतीजों आदि को थोक के भाव भारत की संसद, उत्तर प्रदेश की विधानसभा एवं विधान परिषद में पहुंचाया।
मुलायम के राजनीतिक गुरु तथा जवाहरलाल नेहरू के धुर विरोधी राममनोहर लोहिया का एक किस्सा बड़ा प्रसिद्ध है। जिस समय जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु हुई, उस समय लोहिया यूरोप में थे। जब उन्हें ज्ञात हुआ कि नेहरू की मृत्यु हो गई तो उन्होंने वहीं पर नेहरू के लिए अपशब्दों का प्रयोग किया। आज जब उन्हीं राममनोहर लोहिया के चेले मुलायमसिंह का निधन हुआ है तो लोग भला मुलायम के विरुद्ध अपने मन की पीड़ा व्यक्त करने से कैसे रोक पाएंगे।
जब हम इतिहास की पुस्तकों को खोलते हैं तो उनमें जिन लोगों की बुराइयां लिखी हुई हैं उन तमाम लोगों को मरे हुए सैंकड़ों या हजारों साल हो चुके हैं। मुलायमसिंह की मृत्यु पर उदासीन अथवा निरपेक्ष नहीं रहा जा सकता। लोग कुछ तो कहेंगे, लोगों से यह अधिकार छीना नहीं जा सकता।
जहाँ तक सियासी लोगों की बात है, उनकी तो हालत यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने जनसंघ की आधारशिला रखने वाले चार नेताओं में से एक बलराज मधोक के निधन पर उतने आंसू खर्च नहीं किए जितने उन्होंने मुलायम की मौत पर बहाए हैं।
सियासी मजबूरी होने और नहीं होने के अंतर को यहीं पर देखा जा सकता है कि मुरलीमनोहर जोशी ने मुलायम के निधन पर कहा है कि मुलायम ऐसी शख्सियत थे जो किसी भी आदमी के साथ दो तरह का व्यवहार कर सकते थे। एक तरफ तो वे उस आदमी से दोस्ती रख सकते थे और दूसरी तरफ वे उस आदमी के साथ दुर्व्यवहार भी कर सकते थे। साफ समझ में आता है कि मुरलीमनोहर जोशी को अब किसी के वोट नहीं चाहिए।
इतना सब होने पर मुलायम सिंह द्वारा राष्ट्र के प्रति की गई एक सेवा को नहीं भुलाया जा सकता। वे मुलायमसिंह ही थे जिन्होंने एक विदेशी मूल की महिला को भारत के प्रधानमंत्री पद पर आरूढ़ होने से रोक दिया था। उनके तथा सुब्रमण्यम स्वामी के अतिरिक्त यह साहस और किसी राजनेता अथवा राजनीतिक दल में नहीं था।
ज्ञातव्य है कि सुब्रमण्यम स्वामी भारत का संविधान लेकर भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति के पास पहुंचे थे और उन्हें बताया था कि भारतीय संविधान के अनुसार विदेशी मूल का कोई व्यक्ति भारत का प्रधानमंत्री नहीं बन सकता।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता