देशी रियासतों के राजाओं के पास अपनी जनता को सजा देने के अधिकार थे। वे किसी को भी फांसी पर चड़ा सकते थे।सरदार पटेल नहीं चाहते थे कि भारत की आजादी के बाद भी राजाओं के पास प्रजा को फांसी चढ़ाने का अधिकार हो!
देशी राज्यों को भारत में सम्मिलित कर लेना सरदार पटेल की बड़ी सफलता थी किंतु यह सफलता तब तक अधूरी थी जब तक देशी राज्यों में प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था स्थापित न हो जाये। स्वतंत्र भारत में मिलने से पहले देशी राज्य अंग्रेजों के अधीन थे तथा अंग्रेजों को इन राज्यों में अबाध राज्य करने का अधिकार था।
यहाँ तक कि किसी भी राज्य में कोई राजा तब तक ही अपने सिंहासन पर बना रह सकता था जब तक कि अंग्रेज उससे खुश था। यह खुशी प्रायः तब तक ही बनी रहती थी जब तक उस राज्य का खजाना, अंग्रेजों को लूट के लिये उपलब्ध रहता था। बड़े से बड़े राज्य में उत्तराधिकारी भी अंग्रेज अपनी पसंद से चुनता था और उसे राजा बनाता था किंतु स्वतंत्र भारत में राजाओं की स्थिति बदल चुकी थी। उन्होंने केवल रक्षा, संचार और विदेश मामले ही भारत सरकार को समर्पित किये थे। शेष मामलों में वे पूरी तरह स्वतंत्र हो गये थे।
अंग्रेजों के जाने के बाद देशी राजा बड़ी शान से अपने स्वर्ण मुकुट और चमकीली पगड़ियां पहन सकते थे तथा अपने गगनचुम्बी राजप्रासादों में विलासिता का जीवन जी सकते थे। वे अपनी दीन-हीन प्रजा को बात-बात पर फांसी पर चढ़ा सकते थे और अपने राज्य के समस्त प्राकृतिक संसाधनों एवं प्रजा से मिलने वाले विभिन्न करों को अपनी विलासिता पर खर्च कर सकते थे। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि भारत की आजादी का असली मजा राजा लोगों को ही आने वाला था।
पटेल नहीं चाहते थे कि दो गांवों से लेकर बड़े से बड़े राजा के पास प्रजा को फांसी चढ़ाने का अधिकार बना रहे। इसलिये इन रियासतों को लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के अंतर्गत लाना अनिवार्य हो गया। पटेल ने भारतीय नरेशों को समझाया कि आधुनिक विश्व की तरह देशी राज्यों में भी राजसत्ता का प्रयोग जनता के द्वारा एवं जनता के कल्याण के लिए होना चाहिए। उन्होंने राजाओं को चेतावनी दी कि किसी भी देशी राज्य में अशान्ति एवं अव्यवस्था सहन नहीं की जायेगी। देशी रियासतों में प्रजा मण्डल आंदोलन, आजादी के पहले से ही चल रहे थे
किंतु उन्हें अपने प्रयासों में आंशिक सफलता ही मिली थी। कुछ बड़े राज्यों में लोकप्रिय मंत्रिमण्डलों का गठन हुआ था किंतु उनमें प्रधानमंत्री से लेकर सामान्य मंत्रियों के अधिकांश पद राजाओं के रिश्तेदारों के पास थे। कुछ राज्यों में स्थानीय संविधानों का निर्माण भी हुआ था किंतु उनमें भी जागीरदारों को सामान्य जनता से अधिक अधिकार दिये गये थे।
कुछ देशी राज्यों में निर्वाचन पद्धति के आधार पर भी सरकारों का गठन हुआ था किंतु उनके संविधानों का निर्माण इस प्रकार किया गया था कि अधिक संख्या में जमींदार ही चुने जा सकें।
पटेल चाहते थे कि समस्त देशी रियासतों की प्रजा को भी भारतीय प्रांतों की प्रजा के समान आर्थिक, शैक्षणिक एवं अन्य क्षेत्रों में समान अवसर एवं सुविधाएं मिलें परन्तु राजाओं और उनके जागीरदारों के बने रहने तक ऐसा हो पाना संभव नहीं था।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता