जब निजाम हैदराबाद ने भारत में सम्मिलन के पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए तो पटेल ने कांग्रेस को हैदराबाद में सत्याग्रह आंदोलन चलाने का निर्देश दिया !
9 जून 1947 को निजाम ने वायसराय माउण्टबेटन को एक पत्र लिखा जिसमें उसने अपने मन की अकुलाहट को खुलकर व्यक्त किया- ‘पिछले कुछ दिनों में मैंने स्वाधीनता बिल का सातवां हिस्सा (क्लॉज) जैसा कि अखबारों में आया है, देखा। मुझे अफसोस है कि पिछले महीनों में जैसा अक्सर होता रहा, कि इस मामले में राजनैतिक नेताओं से अच्छी तरह बातचीत की गई और रजवाड़ों के प्रतिनिधियों से बातचीत तो दूर, उन्हें यह दिखाया भी नहीं गया।
यह देखकर मुझे दुःख हुआ कि यह बिल न सिर्फ एक तरफा ढंग से ब्रिटिश सरकार के साथ की गई संधियों और समझौतों को रद्द करती है बल्कि यह आभास भी देती है कि अगर हैदराबाद पाकिस्तान या हिन्दुस्तान का हिस्सा नहीं बन सका तो ब्रिटिश कॉमनवैल्थ में भी नहीं रह सकेगा।
जिन संधियों के आधार पर बरसों पहले ब्रिटिश सरकार ने विदेशी हमले और आंतरिक विद्रोह के खिलाफ मेरे खानदान और इस राज्य को बचाने का वादा किया था उसकी हमेशा दाद दी जाती रही और हिमायत होती रही।
इनमें सर स्टैफर्ड क्रिप्स का 1941 का वादा प्रमुख है। मैंने समझा था कि ब्रिटिश फौज और वादे पर मैं अच्छी तरह भरोसा कर सकता हूँ। मैं अपनी फौज नहीं बढ़ाने पर राजी हो गया, अपने कारखानों में हथियार नहीं तैयार करने के लिये राजी हो गया। और उधर हमारी सहमति तो दूर, हमसे या हमारी सरकार से सलाह किये बगैर बिल पास हो गया। आपको पता है कि जब आप इंग्लैण्ड में थे, मैंने मांग की थी कि जब अँग्रेज हिन्दुस्तान छोड़कर जायें तो हमें भी उपनिवेश का दर्जा मिले।
मैंने हमेशा महसूस किया है कि एक शताब्दी से ज्यादा की वफादार दोस्ती, जिसमें हमने अँग्रेजों को अपना सारा विश्वास दिया, का इतना तो नतीजा होगा ही कि बिना किसी सवाल के हमें कॉमनवेल्थ में रहने दिया जाये। लेकिन अब लगता है कि वह भी इन्कार किया जा रहा है।
मैं अब भी उम्मीद करता हूँ कि किसी तरह का मतभेद मेरे और ब्रिटिश सरकार के सीधे रिश्ते के बीच नहीं आयेगा। हाल में ही मुझे बताया गया कि आपने यह भार अपने ऊपर ले लिया है कि पार्लियामेंट में ऐसी घोषणा होगी ताकि ऐसे सम्बन्ध सम्भव हों।’
इस पर वासयराय माउण्टबेटन ने नवाब को सूचित किया कि हैदराबाद को उपनिवेश का दर्जा नहीं दिया जा सकता क्योंकि इसके चारों ओर उस देश का हिस्सा होगा जो इस स्थिति में दुश्मन बन जायेगा।
ब्रिटिश सरकार की दृष्टि में हैदराबाद के लिये एक ही रास्ता है कि वह हिन्दुस्तान में सम्मिलित हो जाये किंतु हैदराबाद के अधिकारियों एवं कोनार्ड कोरफील्ड के कहने पर चल रहे भारत सरकार के राजनैतिक विभाग के अधिकारियों ने नवाब को सलाह दी कि वह वायसराय की सलाह को न माने।
7 अगस्त 1947 को कांग्रेस ने सरदार के निर्देश पर हैदराबाद रियासत में एक सत्याग्रह आंदोलन आरम्भ किया। निजाम ने इस आंदोलन को सख्ती से कुचलने के लिये रियासती पुलिस के साथ-साथ कट्टर साम्प्रदायिक मुस्लिम रजाकारों को भी प्रोत्साहित किया। इस कारण यह आंदोलन हिंसक हो गया। इसी समय तेलंगाना में कम्युनिस्टों के नेतृत्व में एक शक्तिशाली किसान संघर्ष भी हुआ।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता