जब नेहरू ने भारत में रह गए मुसलमानों के लिए अल्पसंख्यक आयोग स्थापित करने का प्रयास किया तो पटेल ने अल्पसंख्यक आयोग का विरोध किया।
भारत का विभाजन हिन्दू एवं मुसलमान जनसंख्या के आधार पर किया गया था। चूंकि भारत के मुसलमानों ने हिन्दुओं के साथ रहने से मना कर दिया था, इसी आधार पर भारत में से पाकिस्तान अस्तित्व में आया था।
जवाहर लाल नेहरू को हिन्दू जनसंख्या के लिए बने भारत देश का प्रधानमंत्री बनाया गया किंतु नेहरू का झुकाव हिन्दू प्रजा की बजाय मुसलमानों की तरफ अधिक था। नेहरू को न केवल भारत में रह गए मुसलमानों से सहानुभूति थी अपितु पाकिस्तान में चले गए मुसलमानों के लिए भी सहानुभूति थी।
दूसरी ओर सरदार पटेल का मानना था कि मुसलमानों को अपना अलग देश मिल गया है, अब उनके लिए कैसी सहानुभूति! अब हमें देश के हिन्दुओं की समस्या पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए!
नेहरू को अपने मुस्लिम प्रेम के लिए मोहनदास कर्मचंद गांधी से पूरा समर्थन मिलता था। इस कारण सरदार पटेल देश की राजनीति में अलग-थलग पड़ते रहे थे।
1949 में पूर्वी पाकिस्तान से पश्चिमी बंगाल, असम एवं त्रिपुरा में 8 लाख से अधिक शरणार्थी घुस आये। इन शरणार्थियों को पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा बलपूर्वक भारतीय क्षेत्रों में धकेला जा रहा था। ये हिंसा और उत्पीड़न के मारे हुए हिन्दू नागरिक थे।
इस समय तक गांधी की हत्या हो चुकी थी और अब नेहरू अधिक मुखरता से मुसलमानों का पक्ष नहीं ले पाते थे।
नेहरू ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खां को इस समस्या का शांतिपूर्वक समाधान निकालने के लिये आमंत्रित किया। नेहरू के तरीके से असंतुष्ट होकर पटेल ने लियाकत अली खां से भेंट की तथा उसे सख्त लहजे में संदेश दिया कि वह इस तरह की हरकतों से बाज आये।
इस पर नेहरू ने लियाकत अली खां के समक्ष प्रस्ताव रखा कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही देश अल्पसंख्यक आयोगों की स्थापना करे। पटेल ने अल्पसंख्यक आयोग का विरोध किया तथा नेहरू के इस प्रस्ताव की कड़ी आलोचना की। श्यामा प्रसाद मुखर्जी तथा के. सी. नेगी ने नेहरू की तुष्टिकरण की नीतियों से नाराज होकर मंत्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता