शिमला सम्मेलन 1945 वायसराय लॉर्ड वैवेल की तरफ से की गई एक अच्छी पहल थी किंतु गांधीजी और जिन्ना की जिद के कारण यह सम्मेलन विफल हो गया। गांधीजी मौलाना अबुल कलाम आजाद को भारत सरकार में मंत्री बनवाना चाहता था किंतु मुहम्मद अली जिन्ना मौलाना के नाम पर सहमत नहीं था।
मई 1945 में लॉर्ड लिनलिथगो के स्थान पर लॉर्ड वैवेल भारत का गवर्नर जनरल एवं वायसराय बनकर आया। वह भारत की समस्या को सुलझाने के लिये नये सिरे से प्रयास करने लगा।
समस्या यह थी कि कांग्रेस चाहती थी कि गोरे, भारत को जैसा है, वैसा ही छोड़कर तत्काल चले जायें। जिन्ना के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग चाहती थी कि अंग्रेज भारत को आजादी देने से पहले इसके दो टुकड़े करें तथा मुसलमानों के लिये पाकिस्तान नामक अलग देश बनायें। डॉ. भीमराव अम्बेडकर चाहते थे कि स्वतंत्र भारत में दलित जातियों को उचित स्थान दिया जाये। अंग्रेज चाहते थे कि भारत को पूर्ण स्वतंत्रता न देकर डोमिनियन स्टेटस दिया जाये।
डोमिनियन स्टेटस का मतलब यह था कि आंतरिक शासन के मामले में भारत सरकार पूरी तरह स्वतंत्र रहे किंतु वैश्विक स्तर पर वह ब्रिटिश ताज की अध्यक्षता वाली कॉमनवैल्थ नामक संस्था का सदस्य रहे। कांग्रेस 31 दिसम्बर 1929 को पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पारित कर चुकी थी इसलिये वह डोमिनियन स्टेटस के नाम से भड़कती थी। इस प्रकार समस्त पक्ष अपने-अपने तर्कों पर अड़े हुए थे और भारत की आजादी का रास्ता साफ नहीं हो रहा था।
इंग्लैण्ड दो मुंहे सांप की तरह व्यवहार कर रहा था। एक ओर तो द्वितीय विश्वयुद्ध में उसके नौजवान इतनी बड़ी संख्या में मार दिये गये थे कि अब उसके पास भारत जैसे विशाल देश में कलक्टर और कमिश्नर नियुक्त करने के लिये अंग्रेज लड़के नहीं मिल रहे थे जबकि वह तहसीलदारों के पद भी अंग्रेज लड़कों को देना चाहता था। जिन जहाजों में बैठकर इंग्लैण्ड के नौजवान, भारत पर शासन करने के लिये आते थे, इंग्लैण्ड के पास उन जहाजों में कोयला डालने तक के पैसे नहीं बचे थे। इसलिये वह चाहता था कि किसी तरह भारत की आजादी को साम्प्रदायिक प्रश्न में उलझा दिया जाये ताकि वह कुछ और वर्षों तक भारत पर शासन करके अपनी गरीबी दूर कर सके।
नये वायसराय वैवेल ने अंतरिम सरकार के गठन पर विचार करने के लिये 25 जून 1945 को शिमला सम्मेलन बुलाया। इसलिये पटेल सहित जेलों में बंद समस्त कांग्रेसी नेता रिहा किये गये। गांधीजी बीमार होने के कारण 6 मई 1945 को ही रिहा किये जा चुके थे। कांग्रेस को विश्वास था कि वह 100 प्रतिशत हिन्दू, सिख एवं अन्य मतों के लोगों का तथा 90 प्रतिशत मुसलामनों का नेतृत्व करती है। मुस्लिम लीग मानती थी कि लीग को देश के 90 प्रतिशत मुसलामनों का समर्थन प्राप्त है। जिन्ना कहता था कि मुस्लिम लीग ही मुसलमानों का प्रतिनिधित्व कर सकती है।
जबकि गांधीजी का कहना था कि कांग्रेस, हिन्दू और मुसलमान दोनों का प्रतिनिधित्व करती है। गांधीजी ने शिमला सम्मेलन में कांग्रेस की ओर से मौलाना अबुल कलाम को सम्मिलित किया। इस पर जिन्ना अड़ गया कि अंतरिम सरकार में केवल चार मुस्लिम प्रतिनिधि होंगे और वे चारों, मुस्लिम लीग के होंगे।
कांग्रेस को केवल हिन्दुओं को अपना प्रतिनिधि बनाने का अधिकार है। जिन्ना के फच्चर फंसा देने पर शिमला सम्मेलन विफल हो गया।