सदार पटेल ने माउण्टबेटन से कहा कि वे ब्रिटिश भारत के समस्त राजे-रजवाड़े स्वतंत्र भारत की झोली में डाल दें!
भारत के 566 देशी राज्यों में से 12 राज्य, प्रस्तावित पाकिस्तान की भौगोलिक सीमा में स्थित थे जबकि शेष 554 में से अधिकांश, भारतीय क्षेत्रों से घिरे हुए थे। कुछ राज्य प्रस्तावित भारत-पाकिस्तान की सीमा पर स्थित थे। भारत पाकिस्तान सीमा पर स्थित समस्त राज्य हिन्दू बहुल प्रजा एवं हिन्दू शासकों द्वारा शासित थे। इस कारण स्वाभाविक रूप से भारत में ही सम्मिलित किये जाने थे किंतु मुस्लिम लीग ने अब दोहरी चाल चली।
उसने देशी राज्यों के साथ बड़ा मुलायम रवैया अपनाया। उसके लिये ऐसा करना सुविधाजनक था। जिन्ना यह प्रयास कर रहे थे कि अधिक से अधिक संख्या में देशी रियासतें अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दें अथवा पाकिस्तान में सम्मिलित हो जायें ताकि भारतीय संघ स्थायी रूप से दुर्बल बन सके।
इसलिये जिन्ना ने लुभावने प्रस्ताव देकर भारतीय रियासतों को पाकिस्तान में सम्मिलित करने का प्रयास किया। उसने घोषित किया कि मुस्लिम लीग, देशी राज्यों में बिल्कुल हस्तक्षेप नहीं करेगी और यदि देशी राज्य स्वतंत्र रहें तो भी मुस्लिम लीग की ओर से उन्हें किसी प्रकार की तकलीफ नहीं दी जायेगी। भारत राजे-रजवाड़े के बहुत से जिन्ना की बातों में आ गए!
उन्हीं दिनों लंदन इवनिंग स्टैण्डर्ड में कार्टूनिस्ट डेविड लॉ का एक कार्टून ‘योअर बेबीज नाउ’ शीर्षक से छपा जिसमें भारत के राष्ट्रीय नेताओं के समक्ष भारतीय राजाओं की समस्या का सटीक चित्रण किया गया था। इस कार्टून में नेहरू तथा जिन्ना को अलग-अलग कुर्सियों पर बैठे हुए दिखाया गया था जिनकी गोद में कुछ बच्चे बैठे थे। ब्रिटेन को एक नर्स के रूप में दिखाया गया था जो यूनियन जैक लेकर दूर जा रही थी। नेहरू की गोद में बैठे हुए बच्चों को राजाओं की समस्या के रूप में दिखाया गया था जो नेहरू के घुटनों पर लातें मार कर चिल्ला रहे थे। मद्रास के तत्कालीन गवर्नर तथा बाद में स्वतंत्र भारत में ब्रिटेन के प्रथम हाई कमिश्नर रहे, सर आर्चिबाल्ड नेई को भारत सरकार तथा देशी रजवाड़ों के बीच किसी प्रकार की संधि होने में संदेह था।
राष्ट्रीय नेताओं तथा देशी राज्यों के शासकों में प्रायः अच्छे सम्बन्ध नहीं रहे थे जबकि माउंटबेटन देशी राजाओं से भी बात कर रहे थे।
इसलिये उन्हें देशी राजाओं की इच्छाओं का पता था। सरदार पटेल ने देशी रियासतों को भारत में सम्मिलित होने के लिये सहमत करने हेतु, माउण्बेटन से सहयोग मांगा। पटेल ने माउण्टबेटन से कहा कि यदि इस काम में आपने सहयोग दिया तो भारत की जनता सदियों तक आपकी ऋणी रहेगी।
माउंटबेटन ने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया। उन्होंने पटेल से कहा कि यदि राजाओं से उनकी पदवियां न छीनी जायें, महल उन्हीं के पास बने रहें, उन्हें गिरफ्तारी से मुक्त रखा जाये, प्रिवीपर्स की सुविधा जारी रहे तथा अंग्रेजों द्वारा दिये गये किसी भी सम्मान को स्वीकारने से न रोका जाये तो वायसराय, राजाओं को इस बात पर राजी कर लेंगे कि वे अपने राज्य भारतीय संघ में मिलायें और स्वतंत्र होने का विचार त्याग दें।
सरदार पटेल ने भी माउंटबेटन के सामने शर्त रखी कि वे माउंटबेटन की शर्त को स्वीकार कर लेंगे यदि माउंटबेटन उन सारे राजे-रजवाड़े भारत की झोली में डाल दें जो कि स्वतंत्र भारत की धरती में आते हैं। यदि सारे रजवाड़े भारत में मिल जाते हैं तो विभाजन का घाव काफी कम हो जायेगा।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता