कश्मीर समस्या के तीन मुख्य सूत्रधार थे- शेख अब्दुल्ला, जवाहरलाल नेहरू और महाराजा हरिसिंह! तीन की महत्वाकांक्षाओं ने कश्मीर में अलगाववाद को बढ़ावा दिया तथा कश्मीर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर की समस्या बना दिया। यह समस्या आज भी पूरी तरह नहीं सुलझ सकी है।
शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के पूर्वज कश्मीरी ब्राह्मण थे। शेख अब्दुल्ला का परदादा सूफी सम्प्रदाय में शामिल होकर मुसलमान बन गया और कश्मीरी शॉल बेचकर अपना पेट भरने लगा। जिस समय भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन चल रहा था, उस समय बहुत से देशी राज्यों में राजाओं के विरुद्ध भी आंदोलन चल रहे थे। शेख को यह पसंद नहीं था कि कश्मीर के मुसलमानों पर कोई हिन्दू राजा राज्य करे। इस कारण उसने महाराजा हरिसिंह के विरुद्ध आंदोलन चलाया।
जब महाराजा हरिसिंह ने राजगद्दी नहीं छोड़ी और देश आजाद हो गया तो शेख अब्दुल्ला ने प्रयास किया कि कश्मीर को भारत और पाकिस्तान दोनों से अलग एक स्वतंत्र मुसलमान राज्य बना लिया जाए। महाराजा हरिसिंह चाहता था कि कश्मीर को भारत और पाकिस्तान से अलग एक हिन्दू शासित राज्य बनाए रखा जाए। आजादी के कुछ दिनों बाद पाकिस्तान की सेना ने कबायलियों के साथ मिलकर कश्मीर राज्य पर आक्रमण किया। इस पर हरिसिंह ने भारत में सम्मिलित होने की घोषणा कर दी तो शेख तिलमिला गया। उसने अपना आंदोलन तेज कर दिया किंतु जवाहर लाल नेहरू ने महाराजा हरिसिंह पर दबाव डालकर शेख अब्दुल्ला को कश्मीर का प्रधानमंत्री बनवा दिया। इसके बाद भी शेख की अलगाववादी कार्यवाहियां जारी रहीं।
1949 में संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठक में सम्मिलित होने गये भारतीय प्रतिनिधि मण्डल में शेख अब्दुल्ला भी शामिल था। जब यह प्रतिनिधि मण्डल वापस लौट रहा था तब शेख अब्दुल्ला ने लंदन में डेली टेलिग्राफ को एक साक्षात्कार दिया जिसमें शेख ने पहली बार सार्वजनिक तौर पर कश्मीर को स्वतंत्र राज्य बनाने के अपने स्वप्न का खुलासा किया।
भारत के गृहमंत्री सरदार पटेल ने शेख अब्दुल्ला को दिल्ली बुलाकर कहा कि यदि उसे स्वतंत्रता चाहिये तो वे भारतीय सेना को काश्मीर से वापस बुलाने के लिये तैयार हैं। शेख का मुंह पीला पड़ गया क्योंकि उसे यह भलीभांति ज्ञात था कि भारतीय सेना के काश्मीर से निकलते ही पाकिस्तान घाटी पर अधिकार कर लेगा और शेख को अपना शेष जीवन कारावास में व्यतीत करना होगा।
इस घटना के बाद जब तक सरदार पटेल जीवित रहे, शेख ने अपना मुंह नहीं खोला किंतु 15 दिसम्बर 1950 को पटेल की मृत्यु के बाद शेख ने अपनी विभाजनकारी गतिविधियां फिर से चालू कर दीं। 8 अगस्त 1953 को जवाहर लाल नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को प्रधानमंत्री पद से हटाकर जेल में डाल दिया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता