देशी राज्यों का विलय स्वतंत्र भारत के सामने एक उलझन भरी समस्या बन गया। राजा लोग किसी भी कीमत पर न अपने राज्य छोड़ना चाहते थे और न अधिकार।
भारत संघ में रह गये 554 देशी राज्यों में से अधिकांश, आर्थिक दृष्टि से इतने कमजोर एवं छोटे थे कि वे अपने संसाधनों से एक छोटी सी सड़क भी नहीं बनवा सकते थे। बड़ी रियासतों में भी शासन की पद्धति इतनी पुरानी और मध्यकालीन थी कि प्रजा का सहज विकास संभव नहीं था।
अतः पटेल ने देशी राज्यों का एकीकरण करके संतुलित प्रशासनिक इकाइयां गठित करने का निर्णय लिया। यह काम आसान नहीं था। राजाओं को अपने स्वर्ण मुकुट और चमकीली पगड़ियां उतारने, गगनचुम्बी राजप्रासादों का त्याग करने तथा दीन-हीन प्रजा पर शासन करने का अबाध अधिकार छोड़ने के लिये मनाना एक तरह से असंभव को संभव कर दिखाने जैसा था। अंग्रेजों के जाने के बाद छोटे-से छोटे राजा को अपनी निरीह प्रजा को फांसी पर चढ़ाने का मनमाना अधिकार मिल गया था। इस अधिकार को राजा लोग भला क्यों त्यागने वाले थे ?
राजाओं को अपने राज्य के समस्त प्राकृतिक संसाधनों एवं प्रजा से मिलने वाले विभिन्न करों को खर्च करने का अधिकार मिल गया था, ऐसे खीर भरे कटोरे को भला कौन राजा त्यागने को तैयार होता ?
सरदार पटेल जानते थे कि देशी राज्यों का विलय करने से पहले एक जोर का झटका इन राजाओं को दिया जाना आवश्यक है। सौभाग्य से देश की परिस्थितियां सरदार पटेल के अनुकूल थीं। देशी राज्य हमेशा के लिये भारत में आ चुके थे, वे भागकर बाहर नहीं जा सकते थे। उनका संरक्षण करने वाला अंग्रेज, सात समंदर पार जा चुका था। राजाओं को विद्रोह के लिये उकसाने वाला जिन्ना पाकिस्तान में अपनी जीत का जश्न मना रहा था। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को वैसे ही देशी राजाओं के नाम से चिढ़ थी। अतः 554 रियासतों के राजाओं से उनके मुकुट उतरवाना, पटेल के जीवन का अंतिम लक्ष्य बन गया।
पटेल को सूचना मिली कि बस्तर नामक रियासत में सोने का बड़ा भण्डार है। इस भूमि को दीर्घकालिक पट्टे के आधार पर हैदराबाद का निजाम खरीद रहा है। सरदार ने उसी दिन अपना थैला उठाया और वी. पी. मेनन के साथ बस्तर चल पड़े। बस्तर से निबटकर सरदार पटेल और वी. पी. मेनन उड़ीसा पहुंचे तथा उस क्षेत्र के 23 राजाओं को उड़ीसा नामक प्रांत में एकीकृत होने के लिये तैयार कर लिया।
इसके बाद पटेल और मेनन नागपुर पहुंचे तथा वहाँ के 38 राजाओं से मिले। इन्हें सैल्यूट स्टेट कहा जाता था। पटेल ने इन राज्यों से आखिरी सलामी ली और इन्हें भी प्रजातांत्रिक व्यवस्था में ले आया गया। इसके बाद पटेल काठियावाड़ पहुंचे जहाँ 250 बौनी रियासतें थीं। पटेल ने इन रियासतों का भी एकीकरण कर लिया।
पटेल का अगला पड़ाव बम्बई हुआ। वहाँ उन्होंने दक्षिण भारत की रियासतों को अपनी गठरी में बांधा और पंजाब आ गये। पटियाला का खजाना खाली था, सरदार ने परवाह नहीं की। फरीदकोट के राजा ने आनाकानी की तो पटेल ने फरीदकोट के नक्शे पर लाल पैंसिल घुमाते हुए पूछा कि क्या मर्जी है ?
राजा कांप उठा और पटेल की बात मानने पर सहमत हो गया। इस प्रकार राजाओं को उनके सिंहासनों से उतारकर सामान्य इंसान बना दिया गया। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बन गया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता