गांधीजी की दाण्डी यात्रा को भारत के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। इस यात्रा ने पूरे देश के लोगों का ध्यान कांग्रेस के कार्यक्रमों की तरफ खींचा। जब गांधीजी पैदल चले तो सैंकड़ों भावुक भारतीय भी इस आशा में उनके साथ हो लिए कि एक दिन यही व्यक्ति भारत को आजादी दिलवाएगा।
उधर गांधी, दाण्डी यात्रा की तैयारी कर रहे थे और इधर गांधीजी की दाण्डी यात्रा को सफल बनाने के लिये सरदार पटेल अपना झोला उठाये गांव-गांव जाकर भाषणों से आग बरसा रहे थे। सरदार ने लोगों को जानकारी दी कि सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान करबंदी, लगानबंदी, शराबबंदी, नमक सत्याग्रह, जंगल सत्याग्रह, गांजा, भांग और विदेशी कपड़ों की दुकानों पर धरना देने, सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और आदालतों का बहिष्कार करने एवं सरकारी कार्यक्रमों से असहयोग करने आदि कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे।
पटेल के भाषणों से लोगों की समझ में आने लगा था कि सविनय अवज्ञा आंदोलन का क्या अर्थ है ! सरदार के इस अलख-जागरण से गोरी सरकार भयभीत हो गई। उसने सरदार के भाषणों पर रोक लगा दी किंतु सरदार ने अपना काम जारी रखा। दाण्डी यात्रा आरम्भ होने में अब केवल सात दिन बचे थे। 7 मार्च 1930 को बोरसद के निकट रास गांव में सरदार एक विशाल जनसभा को सम्बोधित करने के लिये पहुंचे।
जब वे सभा में जाने लगे तो मजिस्ट्रेट ने उन्हें रोककर भाषण न देने का आदेश दिया। सरदार ने इस आदेश को मानने से मना कर दिया। इस पर उन्हें तत्काल बंदी बनाकर बोरसद ले जाया गया जहाँ उन्हें तीन माह की कैद की सजा सुनाई गई। सरदार रास में एक शब्द भी भाषण नहीं दे पाये थे फिर भी उन्होंने इस सजा को सहर्ष स्वीकार कर लिया।
एक दिन जिस युवक के नाम की पूरे लंदन में धूम मच गई थी आज उसी युवक को लंदन से आये गोरों ने उसके अपने देश में बंदी बना लिया था। जब यह समाचार देशवासियों को मिला तो देश में आक्रोश की ज्वाला फूट पड़ी। स्थान-स्थान पर धरने, प्रदर्शन, जनसभाएं होने लगीं। अहमदाबाद में विशाल जनसभा हुई। इस सभा में 75 हजार कण्ठ एक साथ यह शपथ लेने के लिये खुले कि जब तक देश स्वतंत्र नहीं होगा, वे सत्य तथा अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए, संघर्ष करते रहेंगे तथा अन्याय के समक्ष नहीं झुकेंगे। रास गांव से आये 500 लोग भी इस सभा में थे जहाँ सरदार अपना भाषण नहीं दे पाये थे। उन्होंने शपथ ली कि वे भी सत्याग्रह में सक्रिय भागीदारी निभायेंगे।
सरदार की लोकप्रियता अपने चरम पर पहुंच चुकी थी। सैंकड़ों लोगों ने उनके मार्ग पर चलने के लिये सरकारी नौकरियां छोड़ दीं। ये त्यागपत्र इस बात की गवाही देते थे कि लोग अपने सरदार से कितना प्रेम करते थे। 12 मार्च 1930 को गांधीजी ने 79 कार्यकर्ताओं के साथ साबरमती आश्रम से समुद्र तट पर स्थित दाण्डी के लिये पैदल यात्रा आरम्भ की।
जिस समय गांधीजी की दाण्डी यात्रा आरम्भ हुई उस समय जेल में सरदार पटेल ने स्नान-ध्यान करके गीता का पाठ किया तथा भगवान से प्रार्थना की कि वे गांधी की यात्रा को सफल बनायें ताकि भारत की आजादी का मार्ग खुल सके। गांधी ने लगभग 200 मील की यात्रा 24 दिन में पूरी की।
5 अप्रैल 1930 को गांधीजी दाण्डी पहुंचे। 6 अप्रेल को आत्म-शुद्धि के उपरान्त गांधीजी ने समुद्र के जल से नमक बनाकर, नमक कानून भंग किया। गांधीजी की दाण्डी यात्रा को जो प्रसिद्धि मिली, उसके पीछे एक मात्र सरदार पटेल की ही तपस्या काम कर रही थी।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता