वास्तविकता से आंखें मूंदकर गांधीजी का अंधानुकरण करते थे पटेल
सरदार पटेल का व्यक्तित्व इतना महान् था कि उसमें कोई कमी ढूंढना संभव नहीं है किंतु उनकी अच्छाई ही कई बार उनके व्यक्तित्व का दोष बन गई प्रतीत होती है। सरदार पटेल ने स्वयं को गांधीजी का अनुयायी बना लिय था और वे वास्तविकता से आंखें मूंदकर गांधीजी का अंधानुकरण करते थे। गांधीजी निजी जीवन में तो अव्यवहारिक थे ही, सार्वजनिक जीवन में भी अव्यवहारिक थे किंतु पटेल ने उनका कभी भी विरोध नहीं किया। गांधजी के कारण ही भारत के प्रधानमंत्री की कुर्सी पटेल की बजाय नेहरू को चली गई तथा पटेल ने इसे भी स्वीकार कर लिया। पटेल के व्यक्तित्व की इस अच्छाई ने देश का बहुत नुक्सान किया।
जर्मनी पहले विश्वयुद्ध में मिली अपनी भयानक पराजय का बदला लेने के लिये ई.1939 में हिटलर के नेतृत्व में भयंकर हथियार लेकर अंग्रेजों तथा उनके मित्र देशों पर चढ़ बैठा। जब उसकी सेनाएं पौलेण्ड को रौंदकर आगे बढ़ीं तो जर्मनी को रोका जाना अनिवार्य हो गया। इंग्लैण्ड तथा उसके मित्र देशों ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी तथा भारत को भी उसमें जबर्दस्ती घसीट लिया।
कांग्रेस की विचित्र स्थिति थी। पहले विश्वयुद्ध में भी अंग्रेजों ने भारत के लोगों से पूछे बिना भारत को विश्वयुद्ध में धकेल दिया था और गांधीजी ने वायसराय से समझौता करके भारतीय नौजवानों को सेना में भरती होने का अभियान चलाया था। इस बार भी पहली बातों की ही पुनरावृत्ति होने जा रही थी।
गोरी सरकार के इस कदम से नाराज होकर कांग्रेस की सरकारों ने समस्त प्रांतों में इस्तीफे दे दिये। सरदार पटेल ने स्पष्ट घोषणा की कि अंग्रेज भारत को तत्काल आजाद करें, उसके बाद भारत से द्वितीय विश्वयुद्ध में सहयोग मांगें। जैसे ही सरदार पटेल ने यह घोषणा की, गांधीजी, पटेल के विरोध में उतर आये। गांधीजी ने कहा कि संकट की घड़ी में भारत, बिना किसी शर्त के अंग्रेजों को सहयोग दे। अंग्रेजी सरकार समझ गई कि गांधीजी भले ही अपनी बात कहते रहें किंतु इस बार वे पटेल के रवैये के कारण, कांग्रेस से इस बात को नहीं मनवा पायेंगे कि भारत को विश्वयुद्ध में बिना शर्त के सहयोग देना चाहिये। इसलिये 16 अक्टूबर 1939 को वायसराय ने चालाकीपूर्ण घोषणा की कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद, भारत को पूर्ण स्वायत्तता देने पर विचार किया जा सकता है।
सरदार पटेल ने इस पर तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि युद्ध का क्या परिणाम होगा, कौन जानता है ? यदि महायुद्ध के बाद भारत भूमि पर किसी अन्य जाति का कब्जा हुआ तो अंग्रेज अपने वचन को कैसे निभायेंगे ? इसलिये कुछ देना ही है तो आज ही दे दें। महात्मा गांधी ने फिर पटेल का विरोध किया।
इस पर पटेल ने व्यथित होकर कहा कि मुझे पूर्ण स्वायत्तता की अपनी मांग में किसी तरह की कमी दिखाई नहीं देती, फिर भी यदि बापू मेरे आग्रह के उपरांत भी सहमत नहीं होते हैं तो मैं इसे भी भूलकर उनका हर आदेश मानने को तैयार हूँ, लेकिन तब तक पूरी कांग्रेस, गांधीजी के तर्क को छोड़कर पटेल के तर्क से सहमत हो चुकी थी।
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने एक बार कहा था कि मैं गांधीजी का अंधभक्त हूँ किंतु पटेल उनके ऐसे विलक्षण भक्तों में से हैं, जिनके विशाल नेत्र हैं जिनसे वह सब कुछ स्पष्ट देखने की क्षमता रखते हैं। पर फिर भी वह कई बार वास्तविकता से आंखें मूंदकर गांधीजी का अंधानुकरण करते हैं।
एक बार पुनः राजाजी की बात सही सिद्ध होने जा रही थी। पटेल स्पष्टतः सही थे किंतु वे गांधीजी का आदेश मानने के लिये पूरी तरह तैयार थे। ऐसा लगता था कि सरदार नहीं चाहते थे कि कांग्रेस में नेतृत्व करने वाला कोई दूसरा सिर भी तैयार हो।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता