Thursday, November 21, 2024
spot_img

नेहरू से असंतुष्ट थे पटेल ! (112)

गांधी के दबाव पर पटेल ने नेहरू को प्रधानमंत्री की कुर्सी तो दे दी किंतु दोनों के व्यक्तित्व बिल्कुल अलग थे।काश्मीर, गोआ, चीन, तिब्बत और नेपाल को लेकर नेहरू से असंतुष्ट थे पटेल !

सरदार पटेल और जवाहरलाल नेहरू ने अपना पूरा जीवन कांग्रेस में बिताया था। दोनों ही गांधीजी के निकट सहयोगी माने जाते थे किंतु दोनों के व्यक्तित्व में आकाश और पाताल जैसा अंतर था।

सरदार वल्लभ भाई पटेल - www.bharatkaitihas.com
To Purchase this Book Please Click on Image

दोनों ने इंग्लैण्ड में जाकर बैरिस्टर की उपाधि प्राप्त की किंतु सरदार पटेल वकालात में नेहरू से बहुत आगे थे तथा उन्होंने सम्पूर्ण ब्रिटिश साम्राज्य के विद्यार्थियों में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया। नेहरू प्रायः सोचते रहते थे किंतु पटेल उसे कर डालते थे। नेहरू शास्त्रों के ज्ञाता थे किंतु पटेल शास्त्र और नीति दोनों के ज्ञाता थे। नेहरू केवल भाषणों के माध्यम से विरोधियों को आंख दिखाते थे किंतु पटेल भाषण के साथ-साथ सेनाओं का उपयोग करना भी जानते थे। पटेल ने भी नेहरू जितनी ही ऊँची शिक्षा पाई थी किंतु पटेल में अहंकार नहीं था। वे स्वयं कहते थे कि मैंने कला या विज्ञान के विशाल गगन में ऊंची उड़ानें नहीं भरीं। मेरा विकास कच्ची झौंपड़ियों में गरीब किसान के खेतों की भूमि और शहरों के गंदे मकानों में हुआ है।

पं. नेहरू को गांव की गंदगी तथा जीवन से चिढ़ थी। पं. नेहरू अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के इच्छुक थे तथा समाजवादी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। नेहरू से असंतुष्ट पटेल ने 1950 में नेहरू को पत्र लिखकर उन्हें चीन तथा चीन की तिब्बत नीति के प्रति सावधान किया और चीन के रवैये को कपटपूर्ण तथा विश्वासघाती बताया। पटेल ने अपने पत्र में चीन को अपना दुश्मन, उसके व्यवहार को अभद्रतापूर्ण और चीन के पत्रों की भाषा को भावी शत्रु की भाषा बताया।

सरदार ने लिखा कि तिब्बत पर चीन का कब्जा नई समस्याओं को जन्म देगा। कम्युनिस्टी आभा से ग्रस्त नेहरू ने पटेल की बात नहीं सुनी तथा हिन्दी-चीनी भाई-भाई का नारा लगाते रहे। इसका दुष्परिणाम 1962 में भारत को चीन के आक्रमण के रूप में भुगतना पड़ा। 1950 में नेपाल के सदंर्भ में लिखे पत्रों में भी पटेल ने नेहरू की नीति के प्रति अपनी असहमति एवं असंतोष व्यक्त किया।

1950 में गोवा की स्वतंत्रता के सम्बन्ध में चली दो घण्टे की कैबिनेट बैठक में लम्बी वार्त्ता सुनने के बाद पटेल ने नेहरू से केवल इतना ही पूछा, क्या हम गोवा जायेंगे, केवल दो घण्टे की बात है ? नेहरू इससे बड़े नाराज हुए। यदि पटेल की बात मान ली गई होती तो गोवा को अपनी स्वतंत्रता के लिये 1961 तक प्रतीक्षा न करनी पड़ती।

पटेल जहाँ पाकिस्तान की छद्म कार्यवाहियों एवं शत्रुता पूर्ण चालों से सतर्क रहते थे वहीं नेहरू को विघटनकारी तत्वों से भी सावधान करते थे। पटेल, भारत में मुस्लिम लीग तथा कम्युनिस्टों की विभेदकारी तथा रूस के प्रति उनकी राजभक्ति से परिचित थे।

विद्वानों का मत है कि पटेल बिस्मार्क की तरह थे किंतु लंदन के टाइम्स ने लिखा था- बिस्मार्क की सफलताएं पटेल के समक्ष महत्वहीन हैं। यदि जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल के कहने पर चलते तो काश्मीर, चीन, तिब्बत और नेपाल की परिस्थितियां आज जैसी न होतीं। पटेल सही अर्थों में मनु के शासन की कल्पना थे। उनमें कौटिल्य की कूटनीतिज्ञता तथा छत्रपति महाराज शिवाजी जैसी दूरदृष्टि थी।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source