Thursday, November 21, 2024
spot_img

11. प्लाओसान बौद्ध मंदिर

प्लाओसान बौद्ध मंदिर भी एक मंदिर समूह है जिसमें मंदिरों के खण्डहर स्थित हैं। यह मंदिर परमबनन मंदिर के उत्तर-पश्चिम में केवल एक किलोमीटर की दूरी पर है। इस स्थान को बुगिसान गांव कहते हैं। यह सेंट्रल जावा के परमबनन जिले की क्लाटेन रीजेंसी का कस्बे जैसा गांव है जहाँ पक्की दुकानों की पंक्तियां बनी हुई हैं। मंदिर के निकट लगभग 200 मीटर की दूरी से होकर डेंगोक नामक नदी बहती है। मंदिर के चारों ओर धान के खेत हैं। केले और नारियल के झुरमुट यत्र-तत्र दिखाई देते हैं।

प्लाओसान बौद्ध मंदिर परिसर 2000 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला हुआ है तथा समुद्र की सतह से मात्र 148 मीटर ऊपर स्थित है। प्लाओसान बौद्ध मंदिर परिसर 2000 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला हुआ है तथा समुद्र की सतह से मात्र 148 मीटर ऊपर स्थित है। इसका निर्माण काल भी नौवीं शताब्दी इस्वी का है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण राजकुमारी काहुलुन्नान अथवा प्रमोदवर्द्धिनी ने करवाया जो कि शैलेन्द्र वंश के सम्राट-उन्गा अथवा समरातुंगा की पुत्री थी। इस राजकुमारी का विवाह पूरे हिन्दू विधि विधान से राकाई पिकातान से हुआ था जो कि ई.850 के आसपास मध्य जावा का माताराम वंश (संजय वंश) का शासक था।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

इस मंदिर समूह में दो प्रकार के बौद्ध मंदिर हैं- प्लाओसान लोर एवं प्लाओसान किडुल। इन दोनों प्रकार के मंदिरों को एक सड़क द्वारा अलग किया गया है। प्लाओसान लोर उत्तर में एवं प्लाओसान किडुल दक्षिण की ओर स्थित है। प्लाओसान मंदिर परिसर में 174 छोटे भवन हैं। इनमें से 116 स्तूप हैं तथा 58 चैत्य हैं। बहुत से भवनों पर शिलालेख उत्कीर्ण हैं।

इनमें से दो लेख यह सूचित करते हैं कि यह मंदिर राकाई पिकातान द्वारा उपहार स्वरूप बनाए गए हैं। इन लेखों की तिथियां 825-850 ईस्वी के बीच की हैं जबकि परमबनन मंदिर की तिथि 856 ईस्वी की है। इन दोनों मंदिरों का निर्माण एक ही राजा के द्वारा करवाया गया किंतु इनके शिल्प में पर्याप्त अंतर है। परमबनन मंदिर विशुद्ध हिन्दू स्थापत्य विधि से बने थे जबकि प्लाओसान मंदिरों का निर्माण परम्परागत बौद्ध शैली में कराया गया था। प्लाओसान लोर में दो मुख्य मंदिर हैं जिन्हें जुड़वां मंदिर कहा जा सकता है। दोनों मंदिरों के प्रवेश द्वार पर द्वारपाल बैठे हुए हैं।

इनका खुला हुआ भाग मण्डप कहलाता है। इन मंदिरों को उच्च एवं निम्न स्तरों में विभक्त किया गया है तथा तीन कक्षों में विभक्त किया गया है। निम्न स्तर के कक्षों में बहुत सी प्रतिमाएं स्थित थीं किंतु वर्तमान में प्रत्येक कक्ष के दोनों ओर बोधिसत्व की एक-एक प्रतिमा ही स्थित है। मुख्य आधार की केन्द्रीय प्रतिमा गायब हो गई है। यह कांसे की बुद्ध प्रतिमा थी जिसके दोनों ओर पत्थर की बोधिसत्व प्रतिमाएं विराजमान थीं। इतिहासकारों का अनुमान है कि प्रत्येक मुख्य मंदिर में कुल 9 प्रतिमाएं रही होंगी जिनमें से 6 बोधिसत्व प्रस्तर प्रतिमाएं तथा 3 कांस्य बुद्ध प्रतिमाएं थीं। इन प्रकार दोनों जुड़वा मंदिरों में कुल 18 प्रतिमाएं रही होंगी। इन जुड़वा मंदिरों के एक कक्ष में एक खमेर राजा की प्रतिमा भी खुदी हुई है जो संभवतः बाद में खोदी गई होगी। इस प्रतिमा को उसके मुकुट से पहचाना जा सकता है।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source