शिवाजी द्वारा की गई सूरत की लूट मुगलों के इतिहास के लिए इतनी शर्मनाक थी कि उसकी मिसाल पूरे भारतीय इतिहास में और कहीं नहीं मिलती।
शाइस्ता खाँ के अभियान में शिवाजी को विपुल धन की हानि हुई थी। शिवाजी ने इस धन की भरपाई करने के लिए मुगलों के क्षेत्र लूटने की योजना बनाई। उन दिनों सूरत मुगल साम्राज्य का सर्वाधिक धनी नगर तथा भारत का प्रमुख बंदरगाह था। यहाँ से दुनिया भर के देशों के व्यापारिक जहाज आते-जाते थे।
मक्का जाने के लिए भी मुसलमानों द्वारा इसी बंदरगाह का उपयोग किया जाता था। मुगल बादशाह को इस बंदरगाह से प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए का राजस्व प्राप्त होता था। इस धन के बल पर मुगल सेनाएं पूरे देश में संचालित की जाती थीं। सूरत में उस समय लगभग 20-25 व्यापारी ऐसे भी थे जिनके पास करोड़ों की सम्पत्ति एकत्र हो गई थी।
शिवाजी ने सूरत को लूटने का निश्चय किया। चूंकि सूरत तक पहुंचने के लिए शिवाजी को बुरहानपुर होकर जाना पड़ता जहाँ मुगलों की बड़ी छावनी थी, इसलिए उन्होंने अपनी सेना के 4000 चुने हुए योद्धओं को छोटे-छोटे दलों में विभक्त किया तथा उन्हें बुरहानपुर से दूर हटकर चलते हुए सूरत से 29 किलोमीटर दूर गनदेवी नामक स्थान पर पहुंचने के निर्देश दिए। स्वयं शिवाजी भी 1 जनवरी 1664 को सूरत के लिए चल दिया। 6 जनवरी को ये टोलियां गनदेवी पहुंचकर आपस में मिल गईं। सूरत का मुगल गवर्नर इनायत खाँ बेईमान आदमी था। उसे सूरत शहर की रक्षा के लिए जितने सिपाही रखने का वेतन बादशाह से मिलता था, उसकी तुलना में वह बहुत कम सिपाही रखता था तथा सारा वेतन अपने पास रख लेता था। सूरत के चारों ओर किसी तरह का परकोटा भी नहीं था। इसलिए सूरत का लुट जाना अवश्यम्भावी था।
शिवाजी ने इनायत खाँ को तथा सूरत के बड़े सेठों को पत्र लिखकर सूचित किया कि मेरा उद्देश्य किसी को हानि पहुंचाने का नहीं है किंतु बादशाह ने जबर्दस्ती मुझ पर युद्ध थोप दिया है तथा मेरा कोष भी जब्त कर लिया है। यहाँ तक कि मेरा घर लालमहल भी छीन लिया है और मुझे दर-दर की ठोकरें खाने पर विवश कर दिया है।
इसलिए इन सब बातों की क्षतिपूर्ति बादशाह की छत्रछाया में व्यापार करने वाले व्यापारियों तथा सरकारी खजाने से करेंगे। या तो आप लोग शांतिपूर्वक मुक्ति-धन दे दें या कठोर कार्यवाही के लिए तैयार रहें। शिवाजी चाहता था कि सूरत के 20-25 धनी व्यापारी आपस में चंदा करके केवल 50 लाख रुपए दे दें। यह राशि इन व्यापारियों के लिए बहुत छोटी थी।
इन पत्रों के मिलने के बाद मुगल सूबेदार ने शिवाजी को सलाह भरा पत्र भेजा कि वह शक्तिशाली मुगलों से शत्रुता न करे और स्वयं भागकर एक किले में छिप गया। सूरत के व्यापारी, मुगलों के भरोसे अपने घरों से नहीं निकले। सूरत में अनेक अंग्रेज एवं डच व्यापारी भी रहते थे।
वे शिवाजी की शक्ति से परिचित थे। उन्होंने अपनी कोठियों पर सुरक्षा प्रबन्ध किए। अंग्रेजों ने एक ईसाई पादरी को शिवाजी के पास भेजकर अनुरोध किया कि वह हमारी निर्धन ईसाई बस्ती पर दया करे। शिवाजी ने पादरी को वचन दिया कि वह निर्धन लोगों पर आक्रमण नहीं करेगा। वैसे भी शिवाजी को अंग्रेजों से नहीं उलझना था क्योंकि उनके पास व्यापारिक सामान तो था किंतु सोना चांदी नहीं था।
पहले दिन जब कोई व्यापारी मिलने नहीं आया तो शिवाजी ने अपने सैनिकों को सूरत शहर के व्यापारियों के घर लूटने के निर्देश दिए। शिवाजी के सिपाही सूरत नगर में घुसकर व्यापारियों का धन छीनने लगे और शिवाजी के डेरे में लाकर ढेर लगाने लगे। इसी बीच सूरत के मुगल गवर्नर इनायत खाँ ने एक सिपाही के हाथों कपट-युक्त सुलहनामा भेजा।
इस सिपाही ने शिवाजी को गुप्त संदेश देने का बहाना किया तथा शिवाजी के बिल्कुल निकट पहुंच गया। उसने अचानक अपने कपड़ों में से कटार निकाली तथा शिवाजी के शरीर में घोंपने का प्रयास किया। शिवाजी का अंगरक्षक सतर्क था। उसने तत्काल उस सिपाही का हाथ काट दिया। इस कृत्य के बाद मराठों ने सख्ती बढ़ा दी।
मकानों, दुकानों, संदूकों और अलमारियों के किवाड़ तोड़कर धन निकाला जाने लगा। धनी व्यापारियों के मकान खोदकर सम्पदा निकाल ली गई। कई मुहल्ले अग्नि की भेंट कर दिए गए। शिवाजी के पास लगभग 2 करोड़ रुपयों की सम्पत्ति आ गई तथा सूरत, पूरी तरह से बेसूरत हो गया। मुगलों की प्रजा को कोई बचाने वाला नहीं था।
इनायत खाँ के सिपाही किले की दीवार से शिवाजी के सिपाहियों पर तोप के गोले बनसाने लगे। इससे सूरत नगर में कई स्थानों पर आग लग गई।
इसी बीच शिवाजी को समाचार मिला कि मुगलों की बहुत बड़ी सेना सूरत की तरफ बढ़ रही है। अतः उसने लूट में प्राप्त महंगे कपड़े, बर्तन एवं अन्य सामग्री सूरत की गरीब जनता में बांट दी और सोना-चांदी तथा रुपए लेकर 10 जनवरी को अचानक सूरत छोड़ दिया। इसके बाद भी लोगों में धीरज उत्पन्न नहीं हुआ और व्यापारियों का सूरत से पलायन जारी रहा।
शिवाजी के जाने के बाद मुगलों की सेना सूरत पहुंची। जिस सूरत के चर्चे पूरी दुनिया में शान से होते थे अब वहाँ एक वीरान और बदसूरत नगर बचा था। जिस समय शिवाजी सूरत को लूटने पहुंचे, उस समय अरब के कुछ अश्व-व्यापारी अपने घोड़े बेचने सूरत में आए हुए थे। उन्हें ज्ञात हुआ कि शिवाजी अपनी सेना सहित आया है तो वे अपने घोड़े लेकर शिवाजी के पास पहुंचे।
शिवाजी ने उनसे घोड़े ले लिए तथा व्यापारियों को पकड़कर बंदी बना लिया। जब शिवाजी लूट का धन लेकर सूरत से जाने लगा तो उसने अश्व-व्यापारियों को घोड़ों के मूल्य का भुगतान करके रिहा कर दिया। शिवाजी के इन्हीं गुणों के कारण शत्रु भी शिवाजी की प्रशंसा करते थे।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता