मृत्यु! एक ऐसा शब्द है जिससे प्रत्येक प्राणी का सामनाा एक न एक दिन होता ही है। यह शब्द अच्छों-अच्छों के हृदय में भय उत्पन्न कर देता है। बड़े-बड़े बलवान, धनवान, गुणवान, रूपवान और सामर्थ्यवान व्यक्ति मृत्यु के नाम से भय खाते हैं। यही कारण है कि अधिकतर लोग इस शब्द को भूले हुए ही रहना चाहते हैं। उसका स्मरण भी नहीं करना चाहते।
सबको पता है कि मृत्यु होनी निश्चित है किंतु वे मानकर चलते हैं कि अभी वह बहुत दूर है। हम यह भी जानते हैं कि जब वह आयेगी तो बता कर नहीं आयेगी, अवांछित अतिथि की भांति बलपूर्वक अचानक ही आ धमकेगी किंतु हम यह भी मानते हैं कि वह अभी इसी क्षण तो नहीं आयेगी।
बहुत से लोग मानते हैं कि जब वह आनी ही है और उस पर हमारा कोई वश नहीं है तो फिर उसका चिंतन क्यों? उस के बारे में सोच-सोच कर अपना वर्तमान क्यों खराब करें? इसके स्मरण से जीवन में कड़वाहट उत्पन्न होती है।
सदियों और सहस्राब्दियों से मनुष्य की आकांक्षा रही है कि वह मृत्यु पर विजय प्राप्त करे। उसे अमरत्व की प्राप्ति हो। इसके लिये उसने कभी अमृत की कल्पना की तो कभी अमरत्व प्रदान करने वाले वरदानों की। कभी उसने न मरने वाले देवताओं की बात की तो कभी सशरीर स्वर्ग जाने वाले इंसानों की।
संसार की लगभग समस्त सभ्यताएं अतीत में देवताओं तथा भूतों का अस्तित्व स्वीकारती हैं, स्वर्ग और नर्क का अस्तित्व स्वीकारती हैं, देवताओं के धरती पर आने और मनुष्यों के स्वर्ग तक जाने की बात स्वीकारती हैं किंतु वर्तमान में ऐसा कहीं देखने में नहीं आता।
हर सम्यता में देवता का अर्थ है न मरने वाला अतीन्द्रिय व्यक्ति। भूत का अर्थ है ऐसी आकृति जो दिखायी तो देती है किंतु उसके पास शरीर नहीं है। स्वर्ग का अर्थ है कष्टों से रहित स्थान जो पुण्य कर्मों के संचय से प्राप्त होता है और नर्क का अर्थ है अशुभ कर्मों की सजा भुगतने के लिये प्राप्त होने वाला स्थान।
संसार की समस्त सभ्यताएं पुनर्जन्म में विश्वास रखती हैं तथा बारम्बार ऐसे दावे भी किये जाते हैं। भारत जैसे आस्था प्रधान देश में ही नहीं अपितु अत्यंत आधुनिक माने जाने वाले देशों में भी मृतकों की शांति के लिये कुछ न कुछ क्रियाएं अवश्य की जाती हैं। वस्तुतः ये सब धारणाएं भी मृत्यु और उसके बाद की संभावनाओं पर केंद्रित हैं।
-डॉ. मोहन लाल गुप्ता
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